राफेल पर लट्टू हुई सेना! अब 114 जेट खरीदना चाहती है नेवी, क्या फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट मानेगी यह शर्त?

Updated on 09-10-2024 01:10 PM
नई दिल्ली: फ्रांसीसी कंपनी का युद्धक विमान राफेल भारतीय सेना को भा गया है। मारक क्षमता में बेजोड़ होने के साथ-साथ राफेल भारत के डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के स्टैंडर्ड पर खरा उतरा है, इसलिए अब नौसेना भी अपने लिए राफेल के मरीन वर्जन का विमान चाहती है। इसके लिए फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन से बातचीत भी चल रही है। लेकिन सेना और सरकार में इस बात को लेकर विशेष मंथन चल रहा है कि विमानों की खरीद में कॉस्ट इफेक्टिवनेस का शर्त नजरअंदाज नहीं हो। इस उद्देश्य में राफेल मरीन की कीमत की गणना पद्धति आड़े आ रही है। कीमत राफेल डील के आधार पर ही तय हो रही है। भारत की जरूरतों के लिहाज से तैयार राफेल की जो कीमत तय 2016 में हुई थी, उसकी दर महंगाई के हिसाब से बढ़ाने की बात है। ऐसे में नौसेना को प्रति राफेल पर वायुसेना के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे।

तत्कालीन रक्षा मंत्री का लागत पर था जोर


दरअसल, तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने 2015 में राफेल फाइटर जेट खरीदने की बढ़ती लागत को लेकर सख्त चेतावनी जारी की थी। भारतीय वायुसेना ने पहले पहल 126 राफेल खरीदने की बातचीत शुरू की थी। डसॉल्ट तीन साल से भी ज्यादा वक्त तक भारतीय रक्षा मंत्रालय के साथ बातचीत करता रहा, लेकिन मुख्य रूप से विमान की उच्च लागत और स्थानीय उत्पादन की शर्तों को लेकर चिंताओं के कारण बातचीत ठप हो गई थी।

पर्रिकर ने कॉस्ट इफेक्टिव डील की जरूरत पर जोर दिया था। उनका इरादा स्पष्ट था कि भारत युद्धक विमान की खरीद पर बेतहाशा खर्च सहन नहीं कर सकता है। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा भी था कि वायुसेना को अपने लड़ाकू विमान खरीद के बजट पर विचार करने की आवश्यकता है। वैसे तो उन्होंने किस दर पर डील हो रही है, इसका खुलासा तो नहीं किया था, लेकिन देश के रक्षा बजट पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंता जताई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि कैसे राफेल डील संभावित रूप से भारत के रक्षा पूंजीगत बजट का आधा हिस्सा खा सकता है।

इसके अलावा, पर्रिकर ने टेंडर की प्रमुख शर्तों को पूरा करने में डसॉल्ट की अनिच्छा पर निराशा व्यक्त की थी। वायुसेना के शुरुआती प्रस्ताव के तहत डसॉल्ट को 108 राफेल लड़ाकू विमानों की गारंटी देनी थी, जिन्हें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) भारत में बनागा जबकि पहले 18 जेट फ्रांस से पूरी तरह से तैयार होकर आएंगे। डसॉल्ट कथित तौर पर एचएएल के बनाए लड़ाकू विमानों की गुणवत्ता और समयसीमा की पूरी जिम्मेदारी लेने में हिचकिचा रहा था।

ज्यादा कीमत के कारण 126 की जगह आए सिर्फ 36 राफेल


इस कारण बातचीत में बाधा आ गई लेकिन पर्रिकर अपनी शर्तों पर टस से मस नहीं हुए। उन्होंने बताया था कि कैसे उन्होंने डसॉल्ट को साफ-साफ कह दिया था कि वह मतभेद सुलझाने के लिए एक व्यक्ति को भेजे। उन्होंने कहा कि बात कोई भी हो लेकिन टेंडर की शर्तों को पूरा करना होगा। उन्हें कमजोर नहीं किया जा सकता है।

फिर डसॉल्ट के साथ बातचीत का लंबा दौर चला और भारत सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों की प्रारंभिक योजना को घटाकर 36 राफेल जेट कर दिया, जिन्हें 2016 में भारत और फ्रांस के बीच सरकार-से-सरकार सौदे के माध्यम से खरीदा गया था। इन 36 राफेल जेट की लागत लगभग €7.87 अरब (उस समय लगभग 59 हजार करोड़ रुपये) थी, जिसमें विमान, भारत की जरूरतों के हिसाब से उसमें जोड़-घटाव, हथियार और रखरखाव की गारंटी शामिल थी।

राफेल ने जीता दिल, अब नौसेना भी मुग्ध

अब जब राफेल के नौसैनिक संस्करण, राफेल मरीन को नौसेना भी अपने बेड़े में शामिल करने को उत्सुक है तो मूल्य निर्धारण एक अड़चन बना हुआ है। नई डील 2016 के आधार मूल्य पर आधारित होगी, ऊपर से आठ वर्षों में बढ़ी महंगाई का भी ध्यान रखा जाएगा। मुद्रास्फीति समायोजन (इन्फ्लेशन एडजस्टमेंट) के साथ राफेल मरीन की कीमत 2016 के सौदे की तुलना में काफी अधिक होने की उम्मीद है।

वायुसेना 114 राफेल मरीन खरीदना चाह रही है, लेकिन मूल्य निर्धारण की यह रणनीति का दबाव भी महसूस कर रही है। इसका सीधा असर वायुसेना की मीडियम मल्टि रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) के टेंडर पर पड़ रहा है। यदि राफेल जेट की 2016 की लागत को मुद्रास्फीति और भारत में मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी की स्थापना की लागत को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाता है, तो प्रत्येक जेट की कीमत और भी अधिक हो सकती है।

क्या यह शर्त मानेगी डसॉल्ट?


भारत में मैन्युफैक्चरिंग की शर्त एमआरएफए डील की सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। यह डील को और जटिल बना रहा है। इस शर्त पर डसॉल्ट को महत्वपूर्ण टेक्नॉलजी ट्रांसफर और भारत में असेंबली लाइनें बनाने की आवश्यकता होती है। इसका खर्च फाइनल प्राइस को काफी बढ़ा देगा। एमआरएफए टेंडर में अधिकांश विमानों का उत्पादन भारत में करने की बात कही गई है।

असेंबली लाइनें स्थापित करना, श्रमिकों को प्रशिक्षित करना और भारत में निर्मित राफेल की गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए डसॉल्ट और एचएएल, दोनों को भारी निवेश करना होगा। इससे यह सवाल उठता है कि इन्फ्लेशन एडजस्टेड कीमतों और स्थानीय उत्पादन की उच्च लागत को जोड़कर देखें तो सवाल उठता है कि क्या राफेल अभी भी भारत के लिए लंबी अवधि में कॉस्ट इफेक्टिव ऑप्शन है जिस पर पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का खासा जोर था। ध्यान रहे कि वायुसेना के लिए 2016 में खरीदे गए 36 राफेल जेट पूरी तरह से फ्रांस में निर्मित थे।

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