याचिकाकर्ताओं की ओर से राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एक जज थे जो तिलक लगाते थे और एक पगड़ी पहनते थे। कोर्ट नंबर-2 में एक तस्वीर लगी है जिसमें जज को पगड़ी पहने दिखाया गया है। सवाल यह है कि क्या महिलाओं को ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए जो सरकार ने तय किया है। और क्या हिजाब इस्लाम की अनन्य धार्मिक प्रथा है। यूनिफॉर्म निर्धारित करने की शक्ति सरकार को नहीं दी गई थी और यदि कोई व्यक्ति यूनिफॉर्म पर अतिरिक्त चीज पहनता है तो यह यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होगा। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि पगड़ी हिजाब के बराबर नहीं है यह धार्मिक नहीं है, इसकी तुलना हिजाब से नहीं की की जा सकती। यह शाही राज्यों में पहनी जाती थी, मेरे दादा जी कानून की प्रेक्टिस करते हुए उसे पहनते थे। इसकी तुलना हिजाब से मत कीजिए। स्कार्फ पहनना एक आवश्यक प्रथा हो सकती है या नहीं, सवाल यह हो सकता है कि क्या सरकार महिलाओं के ड्रेस कोड को विनियमित कर सकती है।
क्या स्कूल में धर्म पालन का अधिकार है?
याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि हिजाब प्रतिबंध से महिलाएं शिक्षा
से वंचित रह सकती हैं। इस पर पीठ ने कहा कि राज्य यह नहीं कह रहा है कि वह
किसी भी अधिकार से इनकार कर रहा है। राज्य यह कह रहा है कि आप उस ड्रेस
में आएं जो विद्यार्थियों के लिए निर्धारित है। किसी भी व्यक्ति को धर्म का
पालन करने का अधिकार है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अधिकार निर्धारित
यूनिफॉर्म वाले स्कूल में भी लागू हो सकता है। क्या कोई विद्यार्थी उस
स्कूल में हिजाब पहन सकती है जहां निर्धारित ड्रेस है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने कहा कि यह मुद्दा काफी सीमित है और यह शैक्षणिक संस्थानों में अनुशासन से संबंधित है। इस पर अदालत ने उनसे भी सवाल किया, अगर कोई लड़की हिजाब पहनती है तो स्कूल में अनुशासन का उल्लंघन कैसे होता है। इस पर एएसजी ने कहा, अपनी धार्मिक प्रथा या धार्मिक अधिकार की आड़ में कोई यह नहीं कह सकता कि मैं ऐसा करने का हकदार हूं, इसलिए मैं स्कूल के अनुशासन का उल्लंघन करना चाहता हूं। इसके बाद अदालत ने सुनवाई बुधवार के लिए टाल दी।