चीन समर्थक प्रचंड बने नेपाल के प्रधानमंत्री:पहली बार PM बनते ही चीन पहुंचे थे

Updated on 27-12-2022 06:14 PM

पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड नेपाल के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उन्हें सोमवार को शपथ दिलाई। उन्होंने 25 दिसंबर को प्रचंड की नियुक्ति की घोषणा की थी। वो तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। पहली बार वे 2008 से 2009 और दूसरी बार 2016 से 2017 में प्रधानमंत्री बने थे।

प्रचंड ने पूर्व प्रधानमंत्री और चीन के करीबी माने जाने वाले कम्युनिस्ट नेता केपी शर्मा ओली समेत 5 अन्य गठबंधन पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई है। इनके बीच एक समझौता हुआ है। इसके तहत शुरुआती ढाई साल तक प्रचंड PM रहेंगे। इसके बाद CPN-UML सत्ता संभालेगी। इसके मायने ये हुए कि पूर्व PM केपी शर्मा ओली एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगे।

अब तक नेपाल में जब भी सरकार बनी तो प्रधानमंत्री का पहला विदेशी दौरा भारत का रहा है। लेकिन 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद जब प्रचंड PM बने तो सीधे चीन पहुंच गए थे। हालांकि इस बार सरकार बनने से 5 महीने पहले जुलाई में वे भारत आए थे। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वो नहीं मिल पाए।

भारत और चीन ने बधाई दी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड को प्रधानमंत्री बनने पर बधाई दी। PM मोदी ने ट्वीट किया- भारत और नेपाल के बीच अद्वितीय संबंध हैं। गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव है। दोनों देशों के रिश्ते लोगों के बीच गर्मजोशी भरे संबंधों पर आधारित है। मैं इस दोस्ती को और मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं।

नेपाल में चीनी दूतावास ने अंग्रेजी और नेपाली भाषा में ट्वीट किया। लिखा- नेपाल के 44वें प्रधानमंत्री बनने पर प्रचंड को बधाई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भी उन्हें बधाई दी।

पहली बार सत्ता मिलने के पीछे भारत का अहम योगदान

  • 1996-2006 तक नेपाल में सरकार और माओवादियों के बीच सिविल वॉर छिड़ा हुआ था। उस समय प्रचंड भारत आ गए थे। इसके बाद भारत की ओर से प्रचंड समेत नेपाल के माओवादी नेताओं से शांति समझौते पर बात की गई। नवंबर 2006 में नई दिल्ली में माओवादियों की 7 पार्टियों ने एक समझौते पर साइन किए थे। इसके बाद साल 2008 से 2009 तक प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। उन्हें पहली बार सत्ता मिलने के पीछे भारत का अहम योगदान था।
  • 2009 में प्रचंड के इस्तीफे के बाद माधव कुमार नेपाल को नया PM बनाया गया। लेकिन जब माधव नेपाल संसद में नया संविधान लागू नहीं कर पाए तो प्रचंड ने एक बार फिर भारत से अपने संबंध ठीक करने शुरू कर दिए। उन्होंने दोबार चुनाव करवाए। हालांकि इसमें हार के बाद वो चीन के पक्ष में चले गए थे।
  • जुलाई 2022 में प्रचंड ने एक बार फिर संबंध सुधारने शुरू किए। उन्होंने भारत का दौरा किया। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। उनकी पार्टी के एक नेता गणेश शाह ने कहा था- इस दौरे का लक्ष्य भारत में सत्ताधारी पार्टी भाजपा और CPN माओवादी पार्टी के बीच मजबूत संबंध स्थापित करना था।
  • भारत की जगह चीन के दौरे पर पहुंच गए​​​​​​​

    • साल 2008 से 2009 तक प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। उन्हें पहली बार सत्ता मिलने के पीछे भारत का अहम योगदान था। बावजूद इसके उन्होंने भारत को पसंद नहीं आने वाली चीजें की जैसे- PM पद संभालने के बाद वो भारत की जगह चीन के दौरे पर पहुंच गए। दरअसल, नेपाल में जब भी कोई प्रधानमंत्री बनता था तो पहला आधिकारिक दौरा हमेशा भारत का करता था। लेकिन प्रचंड ने यह परंपरा बदल दी।
    • प्रचंड को 2009 में PM पद से इस्तीफा देने पड़ा था। इसकी वजह वो भारत को मानते हैं। इसके बाद उन्होंने कहा दिया था कि वो भारत के आगे कभी अपना सिर नहीं झुकाएंगे। दरअसल, प्रचंड ने नेपाल आर्मी चीफ रुकमंगड़ कटवाल को पद से हटा दिया था, भारत इसके खिलाफ था। भारत के गतिरोध के बीच उन्हें इस्तीफा देने पड़ा। इसके बाद उनकी नजदीकियां चीन से बढ़ने लगी। इस्तीफे के बाद वो कई बार चीन के निजी दौरे पर गए।
    • प्रचंड ने कई बार भारत विरोधी बयान दिए। उन्होंने ये तक कहा दिया था कि भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते हुए हैं, उन्हें खत्म कर देना चाहिए। 2016-2017 में भी प्रचंड के हाथ में सरकार की कमान रही। इस दौरान उन्होंने कहा था- नेपाल अब वो नहीं करेगा, जो भारत कहेगा।


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