पाकिस्‍तान में निकला चीन का दिवाला, बर्बादी की कगार पर CPEC, शहबाज पीएम मोदी को दे रहे हैं न्‍योता

Updated on 07-07-2023 07:16 PM
इस्‍लामाबाद: पाकिस्‍तान और चीन के बीच बेल्‍ट एंड रोड परियोजना के तहत चाइना-पाकिस्‍तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) के 10 साल पूरे हो गए हैं। पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस परियोजना की जमकर तारीफ की है। यही नहीं उन्‍होंने भारत को भी न्‍योता दे डाला है कि वह इसमें शामिल होकर लाभ उठाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान जहां सीपीईसी परियोजना का जश्‍न मना रहा है, वहीं इस कंगाल देश में 25 अरब डॉलर तक उड़ा देने वाले चीन का दिवाला निकल गया है। एक तरफ कंगाल पाकिस्‍तान की सरकार सीपीईसी परियोजनाओं का पैसा नहीं दे पा रही है, वहीं बलूच विद्रोही चीनी नागरिकों पर खूनी हमले कर रहे हैं।

वाइस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी हमलों और कर्ज के अदायगी पर चीन और पाकिस्‍तान में मतभेद बढ़ गया है और इस वजह से सीपीईसी परियोजना अधर में लटक गई है। रिपोर्ट में अधिकारियों और आलोचकों के हवाले से यह जानकारी दी गई है। चीन और पाकिस्‍तान के बीच 10 साल पहले यह परियोजना शुरू हुई थी। चीन ने इस दुनिया के लिए रोल मॉडल के तौर पर पेश करने के लिए 25 अरब डॉलर तक का अब तक निवेश कर डाला है। चीन का इरादा पाकिस्‍तान के रास्‍ते सीधे हिंद महासागर तक प्रवेश करने का था। अब यह निवेश उसके लिए गले की फांस बन गया है।

सीपीईसी में साल 2030 तक 62 अरब डॉलर का निवेश!

चीन ने इस भारी भरकम निवेश के जरिए पाकिस्‍तान के रणनीतिक रूप से अहम ग्‍वादर पोर्ट तक रास्‍ता बनाया और बिजली व्‍यवस्‍था को बेहतर किया। चीन का इरादा ग्‍वादर को नेवल बेस के रूप में विकसित करने का है। अधिकारियों का कहना है कि चीन के निवेश से 8 हजार मेगावाट बिजली का उत्‍पादन बढ़ गया है जिससे देश में बिजली संकट खत्‍म हुआ। चीन का इरादा साल 2030 तक 62 अरब डॉलर के निवेश का है। चीन कई औद्योगिक जोन बना रहा है जो साल 2030 तक पूरा हो जाएंगे।

चीनी दूतावास की प्रभारी पांग चुनशू कहती हैं कि मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है और गर्व हो रहा है कि सीपीईसी बीआरआई के सबसे सफल प्रॉजेक्‍ट में से एक है। उन्‍होंने कहा कि भविष्‍य में भी मिलकर काम करते रहेंगे। चीन भले ही सार्वजनिक रूप से इसकी सफलता का दावा कर रहा है लेकिन पाकिस्‍तान में उसकी खास रुचि की वजह से वह आतंकियों के निशाने पर आ गया है। इसी वजह से चीन को अब अपनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्‍तानी सेना की मदद लेनी पड़ी है। आलोचकों का कहना है कि यह वजह है कि 10 साल पूरे होने के बाद चीन का कोई बड़ा नेता पाकिस्‍तान नहीं पहुंचा है।

चीनी दूतावास के कर्मचारियों को सता रहा डर

आलोचकों ने कहा कि यह पाकिस्‍तान और चीन के बीच सुरक्षा तथा आर्थिक मुद्दों पर बढ़ रहे विवाद को दर्शाता है। इससे पहले चीन के प्रधानमंत्री ली किआंग ने पिछले महीने ही कहा था, 'चीन आशा करता है कि पाकिस्‍तान पूरी ताकत से और प्रभावी तरीके से विभिन्‍न आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। साथ ही चीनी कंपनियों और नागरिकों की पाकिस्‍तान में सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।' पिछले साल नवंबर में शहबाज शरीफ से बातचीत में चीनी राष्‍ट्रपति ने अपने नागरिकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था।

पाकिस्‍तानी सांसद और डिफेंस कमिटी के चेयरमैन मुशाहिद हुसैन कहते हैं, 'चीनी मानते हैं कि सीपीईसी को आगे बढ़ाने में सुरक्षा का मुद्दा एक बड़ी बाधा बन गया है।' उन्‍होंने कहा कि चीनी नेताओं ने संकेत दिया है कि पाकिस्‍तान चीनी नागरिकों को पूरी सुरक्षा मुहैया कराने में फेल साबित हुआ है। उन्‍होंने कहा कि अगर इसे प्रभावी तरीक से नहीं निपटा गया तो पाकिस्‍तान और चीन के बीच आर्थिक सहयोग और चीन के निवेश पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इन हमलों में अब तक कई चीनी नागरिक मारे गए हैं। यही नहीं चीन के दूतावास पर भी हमले का खतरा है। दूतावास के कर्मचारी इस्‍लामाबाद में ज्‍यादा निकल नहीं रहे हैं। चीन के कर्जों का इतना ज्‍यादा बोझ हो गया है कि पाकिस्‍तान चुका नहीं पा रहा है और आईएमएफ से कर्ज लेना पड़ा है।




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