राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की तैयारी
में हैं और हाईकमान ने उन पर भरोसा भी जताया था, लेकिन उनका मुख्यमंत्री
पद का मोह पार्टी और गांधी फैमिली के लिए संकट खड़ा करता दिख रहा है।
शनिवार तक अशोक गहलोत यही कह रहे थे कि हाईकमान जिसे चाहेगा, वही सीएम
बनेगा। लेकिन रविवार रात को उन्होंने अपने समर्थक 82 विधायकों का इस्तीफा
दिलाकर नया दांव चल दिया। इन विधायकों का कहना है कि गहलोत के विकल्प के
रूप में वह सचिन पायलट को स्वीकार नहीं करेंगे। अब कांग्रेस हाईकमान
मुश्किल में दिख रहा है और उसके लिए इससे पार पाना सियासी परीक्षा को पास
करने जैसा ही होगा।
क्या दोनों पद पर बने रह सकते हैं अशोक गहलोत
फिलहाल कांग्रेस हाईकमान यानी सोनिया और राहुल गांधी के पास 4
विकल्प हैं, लेकिन सबमें एक मुश्किल है। पहला विकल्प यह है कि कांग्रेस
हाईकमान अशोक गहलोत को ही अध्यक्ष और सीएम दोनों पदों पर रहने दे। इससे
चुनाव तक सियासी संकट टल जाएगा, लेकिन अशोक गहलोत फिर अध्यक्ष के तौर पर
ज्यादा सक्रिय रहेंगे या फिर सीएम पद पर ज्यादा काम करेंगे। यह भी देखने
वाली बात होगी। इस विकल्प में बड़ी चिंता यह भी है कि कांग्रेस खुलेआम
दोहराती रही है कि एक नेता और एक पद की नीति को लागू किया जाएगा। ऐसे में
गहलोत को दो पद देने से कांग्रेस अपनी ही घोषित नीति से पलट जाएगी।
गहलोत खेमे को ही सीएम का पद देने का विकल्प
कांग्रेस के पास एक विकल्प यह भी है कि गहलोत खेमे के ही किसी नेता को सीएम बना दे। ऐसा होने पर अशोक गहलोत अध्यक्ष के तौर पर पूरा समय दे पाएंगे और राजस्थान की बगावत भी थम जाएगी। लेकिन इस विकल्प की समस्या यह है कि अशोक गहलोत का खेमा तो मान जाएगा, लेकिन सचिन पायलट ग्रुप की बगावत जारी रहेगी। इस स्थिति में राजस्थान में कांग्रेस की हालत पंजाब सरीखी हो जाएगी, जहां चन्नी और नवजोत सिद्धू की आपसी कलह में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसलिए पंजाब का सबक लेकर आगे बढ़ना भी कांग्रेस के लिए अहम होगा।
गहलोत की जगह किसी और को बनाय़ा जाएगा अध्यक्ष
कांग्रेस हाईकमान के पास एक विकल्प यह भी है कि अध्यक्ष पद पर अशोक गहलोत को लाने का इरादा ही छोड़ दिया जाए। उनके स्थान पर किसी और नेता को अध्यक्ष बनाने का फैसला ले लिया जाए। इससे कांग्रेस को राजस्थान का सिय़ासी संकट टालने में फिलहाल मदद मिल सकती है क्योंकि विधानसभा चुनाव में अब एक साल का भी वक्त नहीं बचा है। ऐसे में गुटबाजी से बचना ही सबसे जरूरी है। लेकिन इसके लिए पार्टी को नए सिरे से अध्यक्ष के तौर पर किसी और चेहरे की तलाश करनी होगी।