भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने सुप्रीम कोर्ट के परस्पर विरोधी और अलग-अलग फैसलों की व्याख्या करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों से हमेशा एक स्वर में बोलने की अपेक्षा करना गलत होगा। 'कैपिटल फाउंडेशन एनुअल लेक्चर' में जस्टिस रमना ने कुछ जमानत देने से संबंधित अलग-अलग मामलों में निर्णय लेने के लिए विभिन्न न्यायाधीशों द्वारा अपनाए गए अलग-अलग आधारों की ओर इशारा किया।
पिछले सात दशकों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों पर उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट से कई तरह की राय निकली है। एक संस्था के रूप में न्यायपालिका को किसी एक राय के आधार पर नहीं आंका जा सकता है। देश यह उम्मीद नहीं कर सकता है कि 30 से अधिक स्वतंत्र न्यायाधीश सदैव एक स्वर में बोलें।" न्यायमूर्ति रमना ने कहा, "एक स्वर में बोलने वाली संस्था स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं होगी।"
न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वैकेंसी को भरने, न्यायिक बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और न्याय वितरण प्रणाली में तेजी लाने के लिए टेक्नोलॉजी को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया था।
आपको बता दें कि देश के विभिन्न अदालतों में आज चार करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। लॉकडाउन और महामारी के दौरान मामलों की फिजिकल सुनवाई नहीं होने से स्थिति और गंभीर हुई। कोर्ट में मामले और बढ़े।