किंग चार्ल्‍स की हुकूमत 14 राष्‍ट्रमंडल देशों पर ,कई जगह शाही शासन का विरोध

Updated on 14-09-2022 05:30 PM
किंग चार्ल्‍स III अब ब्रिटिश साम्राज्‍य के उत्‍तराधिकारी हैं। उनके राजा बनने के बाद कैरिबियाई द्वीप में राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन्‍हें उनके राष्‍ट्राध्‍यक्ष के तौर पर हटाने की मांग शुरू कर दी है। इस ताजा घटनाक्रम के साथ ही राष्‍ट्रमंडल देशों में किंग चार्ल्‍स के नेतृत्‍व में राजशाही के भविष्‍य पर बहस शुरू हो गई है। बतौर महाराज चार्ल्‍स दुनिया के 56 देशों पर राज करेंगे। ये वो देश हैं जो राष्‍ट्रमंडल के तहत आते हैं। महारानी एलिजाबेथ की मृत्‍यु के बाद इन देशों में कई बदलाव हुए हैं। ये तमाम देश ब्रिटेन के उपनिवेश रह चुके हैं और यहां पर उन्‍होंने शासन किया था।

56 में से 14 राष्‍ट्रमंडल देश
राष्‍ट्रमंडल देशों की लिस्‍ट में इस समय टोगो और गैबॉन नए सदस्‍य बने हैं। हालांकि ये दोनों देश कभी भी ब्रिटेन के गुलाम नहीं रहे। 56 देशों में से 14 राष्‍ट्रमंडल देश शाही शासन के तहत आते हैं और यहां पर अभी किंग चार्ल्‍स का ही शासन रहेगा। महारानी एलिजाबेथ ने सन् 1952 में जब राजगद्दी संभाली तो कुछ देशों को आजादी मिल गई थी तो कुछ ने राजशाही को मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन एलिजाबेथ ने राष्‍ट्रमंडल को उस विकल्‍प के तौर पर देखा जिसके जरिए वह देशों को अपने करीब रख सकती थीं। साल 2018 में जब राष्‍ट्रमंडल देशों के नेताओं का सम्‍मेलन हुआ तो उन्‍होंने इस बात की पुष्टि की कि महारानी के निधन के बाद चार्ल्‍स इस संगठन के मुखिया होंगे।

जिन 14 देशों पर चार्ल्‍स बतौर महाराज राज करेंगे उनमें यूके के अलावा एंटीगुआ और बारबूडा, ऑस्‍ट्रेलिया, बहामासा, बेलजी, कनाडा, ग्रेनेडा, जमैका, न्‍यूजीलैंड, पापुआ न्‍यू गिनी, सेंट किट्स और नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विन्‍सेंट और ग्रेनाडाइंस, सोलोमन द्वीप और तुवालू शामिल हैं। मगर अब धीरे-धीरे कुछ देशों में विरोध की आवाज उठने लगी है। कुछ देशों ने तो स्‍वतंत्र गणतंत्र के तौर पर सामने के लिए आवाज उठाना भी शुरू कर दिया है।

कुछ देशों को अब चाहिए बदलाव
जो देश अब बदलाव में रूचि रखते हैं, उनमें एंटीगुआ और बरबूडा, जमैका, सेंट विन्‍सेंट और ग्रेनाडाइंस शामिल हैं। जैसे ही चार्ल्‍स एंटीगुआ और बरबूडा के राजा बने, यहां के पीएम गैस्‍टॉन ब्राउन ने कहा वह एक जनमत संग्रह कराना चाहते हैं। ब्राउन की मानें तो अगले तीन सालों में यह जनमत संग्रह करा लिया जाएगा। पीएम ब्राउन के शब्‍दों में, 'इस जनमत संग्रह से यह नहीं समझना चाहिए कि राजशाही और एंटीगुआ और बरबूडा के बीच मतभेद हैं। बल्कि यह पूरी आजादी की तरफ बढ़ाया गया एक कदम है।'


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