भारत में 2021 में सड़क हादसों में 1,55,622 मौतें हुईं, जबकि जापान में सिर्फ 3 हजार। हर साल देश की GDP का 3 से 5% हिस्सा सड़क हादसों से निपटने में ही खर्च हो रहा है। ऐसे में हमें जापान से सीखने की जरूरत है।
1970 के दशक तक जापान में सड़क हादसे सबसे बड़ी समस्याओं में से एक थे। टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ताक्शी ओगुची कहते हैं, परिवार समेत बुलेट ट्रेन का सफर कार से महंगा था, लेकिन सिस्टम इतना मजबूत था कि लोगों ने कार से सफर कम कर दिया। जापान में 61% लोगों के पास कारें हैं, लेकिन लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करना पसंद करते हैं। भारत में सिर्फ 8% परिवारों के पास कारें हैं।
1964 में बुलेट ट्रेन लाए, रेलवे ट्रैक पर ट्रैफिक डायवर्ट किया
जापान
ने ट्रेनों का जाल बिछाया। 1964 में बुलेट ट्रेन चलाई। 10 लाख से ज्यादा
की आबादी वाले सभी 12 शहरों को बुलेट ट्रेन की कनेक्टिविटी से जोड़ा। गति और
सिस्टम और सुविधाएं इतनी मजबूत कि रोड ट्रैफिक ट्रेन पर डायवर्ट होने लगा।
टोक्यो और ओसाका की 535 किमी की दूरी सिर्फ ढाई घंटे में तय होने लगी। सड़क
से यह 6 घंटे का सफर था। बड़े शहरों में मेट्रो चलाईं। अकेले टोक्यो में
285 मेट्रो स्टेशन हैं।
सड़कों पर पार्किंग बंद कर दी गई, गैराज सर्टिफिकेट अनिवार्य
जापान
ने सड़क पार्किंग पर पूरी तरह रोक लगा दी। हर कार मालिक के लिए गैराज
सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया गया। इसके तहत उन्हें बताना होता था कि उनके
घर या किसी गैराज में कार पार्क करने के लए निश्चित जगह है। कार पार्किंग
के लिए जगह लेना खर्चीला हो गया। सड़कों पर कार पार्क करने पर जुर्माना
लगाया गया।
शहरों में छोटी गाड़ियां लॉन्च कीं, सब्सिडी दी और रफ्तार तय की
भारत
में जहां बड़ी-बड़ी गाड़ियां विकास और रसूख का पैमाना हैं, वहीं हादसे कम
करने के लिए जापान ने अपने यहां छोटी गाड़ियों को प्राथमिकता दी। इन गाड़ियों
पर सब्सिडी दी। शहरों के अंदर चलने के लिए तैयार की गईं इन गाड़ियों की
रफ्तार 40 किमी/ प्रति घंटा और लेन तय थी। गलियों में कार चलाते हुए 19
किमी/प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार नहीं रखी जा सकती। ये गाड़ियां लोग
हाईवे पर नहीं चलाते। इससे हादसे कम हुए।