जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने केंद्र सरकार की तरफ से अपना पक्ष रख रहे जनरल तुषार मेहता से कहा कि, सरकार को उन भारतीय छात्रों की मदद करनी चाहिए जिससे छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे देशों में आसानी से एडमिशन मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक वेब पोर्टल शुरू करें, जिसमें विदेशों में मौजूद विश्वविद्यालय की खाली सीटों, फीस जैसी जानकारी दी जाए और ये भी सुनिश्चित करें कि इसमें एजेंटों का कोई रोल न हो। आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, सरकार को अपने संसाधनों का इस्तेमाल यूक्रेन से अपनी पढ़ाई को छोड़कर भारत लौटे छात्रों की मदद के लिए करना चाहिए।
सरकार की तरफ से अपना पक्ष रख रहे जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, वो छात्रों के प्रतिकूल रुख नहीं अपना रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के सुझावों पर सरकार से बात करेंगे। जिसके लिए जनरल तुषार मेहता ने समय मांगा है।
इसके अलावा जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में बताया कि, केंद्र ने छात्रों की मदद के लिए कई उपाय किए हैं, उनके लिए अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के लिए अनुमति दी गई है और यह भी तय किया गया कि वे अपनी डिग्री यूक्रेन से प्राप्त करेंगे, साथ ही अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम भी किया गया। यहां पहले अपको ये बता दें कि, अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम क्या है। जिन भारतीय एमबीबीएस छात्रों को वापस आना पड़ा था, वे अब अस्थायी रूप से कुछ अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों में अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, संभवत यूरोप में, लेकिन वे मूल यूक्रेनी विश्वविद्यालय के छात्र बने रहेंगे।
सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि, सरकार को भारतीय कॉलेजों में 20,000 छात्रों को प्रवेश देने में समस्या है और छात्रों को वैकल्पिक अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम का लाभ उठाने के लिए विदेशों में जाना होगा, और केंद्र को समन्वय करना चाहिए, सभी आवश्यक मदद करनी चाहिए।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानी एनएमसी अधिनियम, 2019 के तहत प्रावधान के अभाव में मेडिकल छात्रों को भारतीय विश्वविद्यालयों में एडमिशन नहीं किया जा सकता है और अगर इस तरह की कोई छूट दी जाती है तो यह देश में मेडिकल की शिक्षा के मानकों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
वहीं एक हलफनामे में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के केंद्रीय मंत्रालय ने कहा, इन रिटर्न छात्रों को भारत में मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर यानी दाखिला करने की अपील न केवल भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956, और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के नियमों का उल्लंघन करेगी। साथ ही इसके तहत बनाए गए नियम, देश में स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा के नियमों को भी गंभीर रूप से बाधित करेगी।
शुक्रवार की सुनवाई के दौरान, एक वकील ने सुझाव दिया कि केंद्र को जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार यूक्रेन से लौटे 20,000 छात्रों को युद्ध पीड़ित घोषित करना चाहिए और उन्हें राहत देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मौखिक रूप से कहा कि, वकील को इसे उस स्तर तक नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि छात्र खुद ही मर्जी से वहां गए थे।
केंद्र सरकार के वकील मेहता ने कहा कि, एनएमसी ने विदेशी विश्वविद्यालयों में अकादमिक गतिशीलता की अनुमति दी है, जिससे वे छात्र अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों से अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं और अदालत को यह भी बताया कि छात्रों के साथ समन्वय करने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन सी किस्में संगत हैं।
इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, एक अधिकारी 20,000 छात्रों को नहीं संभाल सकता है और सरकार छात्रों के लिए सूचना पहुंचने के लिए वेब पोर्टल विकसित कर सकती है।
वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने भाषा और फीस के मुद्दों पर ध्यान खींचते हुए कहा कि, एक छात्र जो एक यूक्रेनी विश्वविद्यालय में पढ़ता है, उसे दूसरे विश्वविद्यालय के अनुकूल होना मुश्किल हो सकता है, और फीस से संबंधित मुद्दे भी खड़े हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वे पोर्टल पर सभी जानकारी देंगे। अगर छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहते हैं, तो कोई रास्ता निकालना ही होगा।
दूसरी तरफ कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने कहा कि, यदि विदेशी विश्वविद्यालय छात्रों को अपने वहां दाखिला दे सकते हैं तो भारतीय विश्वविद्यालय भी ऐसा कर सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आपका भारतीय विश्वविद्यालयों पर अधिकार नहीं है।
अब इस मामले में अगली सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर का दिन तय किया है।
सुप्रीम कोर्ट उन छात्रों की तरफ से दायर याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें भारत में अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मांग रही है। क्योंकि, इन छात्रों को युद्धग्रस्त यूक्रेन से लौटना पड़ा था।