जानकारी के अनुसार आरोपों में कहा गया है कि फर्जी दस्तावेजों, फर्जी एफिडेविट तैयार की गई और इसके लिए बाकायदा वकीलों को फौज तैयार की गई. पीड़ितों को गुमराह करते हुए जो घटनाएं कभी घटी ही नहीं, ऐसी काल्पनिक कहानियों पर हस्ताक्षर लिए गए. दस्तावेज अंग्रेजी में थे लिहाजा पीड़ितों की समझ से बाहर थे. अगर कोई पीड़ित, तीस्ता का साथ देने तैयार नहीं होता तो उसे डराया-धमकाया जाता था. पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार ने एक गवाह को फोन करके धमकाया था.
गवाह को धमकाया और तीस्ता से सुलह करने को कहा
गवाह से कहा था कि वो तीस्ता से सुलह कर ले. नहीं तो मुसलमान तेरे विरोधी
बनेंगे, आतंकवादियों का तू टारगेट बन जाएगा. साथ मिलकर काम करते हैं हम,
अंदर-अंदर लड़ने लगे तो दुश्मनों को फायदा होगा और मोदी को सीधा फायदा
होगा. पीड़ितों को गुजरात के बाहर अलग-अलग जगहों पर ले जाकर उनके दुख-दर्द
के नाम पर चंदा इकट्ठा किया गया. SIT के मुताबिक तीस्ता और भारतीय नेशनल
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मिलकर दंगा पीड़ितों के कैंप में जाकर गुजरात
में न्याय नहीं मिलेगा, ऐसी भ्रामक बातें बताकर, मामला गुजरात से बाहर की
कोर्ट में ले जाने के लिए उकसाया और काम्पीटेंट अथॉरिटी के सामने दस्तावेज
फाइल करवाए.
तीस्ता और संजीव भट्ट एक दूसरे के संपर्क में थे
तीस्ता और संजीव भट्ट एक दूसरे के संपर्क में थे. वहीं, संजीव भट्ट नामी
पत्रकारों, कुछ एनजीओ और गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष से ईमेल के जरिए
संपर्क में थे. और इन सभी को एमिकस क्यूरी, कोर्ट और बाकी लोगों पर प्रभाव
खड़ा करने को समझाया था. अलग-अलग पिटिशन में साजिश पूरी करने के मकसद से
काम किया और सभी को लगातार ईमेल भी करते रहे. तीस्ता के मुताबिक एफिडेविट
नहीं करने वाले एक गवाह का तो पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट ने अपहरण भी किया था
और जबरन फर्जी एफिडेविट करवाई थी. इन आरोपियों की मंशा तत्कालीन
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक पारी खत्म करना और उनकी साख को
नुकसान पहुंचाने की थी.