नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अगर पत्नी शादी को बरकरार रखना चाहती
है तो वह पति की याचिका पर विवाह को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत
अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगा। पीठ ने कहा, "भारत में शादी कोई
आकस्मिक घटना नहीं है। हम आज शादी और कल तलाक जैसे पश्चिमी परिपाटी तक नहीं
पहुंचे हैं। आप दोनों शिक्षित हैं। आपक इस पश्चिमी दर्शन को अपना सकते
हैं। लेकिन अगर एक पक्ष शादी को बरकरार रखने के लिए तैयार है तो विवाह को
रद्द करने यानी तलाक देने के लिए 142 का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।"
पति की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने शादी को रद्द करने से इनकार
कर दिया। जस्टिस संजय के कौल और अभय एस ओका की बेंच ने कहा कि शादी सिर्फ
40 दिनों तक चली है। युवा जोड़े को अपने मतभेदों को दूर करने का गंभीर
प्रयास करना चाहिए। पति संयुक्त राष्ट्र से जुड़ा था और एक एनजीओ चलाता था।
वहीं, पत्नी कनाडा की स्थायी निवासी है। पति ने बार-बार पीठ से शादी को
रद्द करने की गुहार लगाई। पत्नी ने कहा कि उसने फेसबुक पर दोस्ती और दोनों
परिवारों की बातचीत के बाद शादी करने के लिए कनाडा से सब कुछ छोड़कर आ गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का उपयोग केवल तभी
किया जा सकता है जब दोनों पक्ष शादी को बरकरार नहीं रखना चाहते हैं। दोनों
पक्षों को अदालत के समक्ष इस बात के लिए सहमत होना पड़ता है कि उनका विवाह
टूट गया है और वे साथ नहीं रहना चाहते हैं।"
पति ने कहा कि पिछले 18 महीने से पत्नी के साथ उसके रिश्ते अच्छे नहीं हैं।
किसी भी पक्ष की ओर से शादी को बचाने के लिए कुछ भी रचनात्मक नहीं किया
गया है। पीठ ने महिला के पति को याद दिलाया कि महिला कनाडा से अपनी नौकरी
छोड़कर उससे शादी करने के लिए आई थी। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "यह एक आवेश
में लिया गया निर्णय प्रतीत होता है। शादी के सिर्फ 40 दिन एक-दूसरे को
समझने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। एक सफल शादी के लिए प्रत्येक को समायोजन
करना होगा।"
पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस जे वजीफदार को मध्यस्थ नियुक्त किया और उन्हें मैरिज काउंसलर की सहायता लेने की स्वतंत्रता दी। इसने मध्यस्थ से तीन महीने में रिपोर्ट मांगी है।