थ्री लैंग्वेज पॉलिसी, तमिलनाडु भाजपा ने सिग्नेचर कैंपेन शुरू किया

Updated on 06-03-2025 02:26 PM

नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत 3 लैंग्वेज पॉलिसी के समर्थन में तमिलनाडु भाजपा ने हस्ताक्षर कैंपेन शुरू किया। इस दौरान तमिलनाडु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने 3 लैंग्वेज पॉलिसी को समय की जरूरत बताई।

अन्नामलाई ने स्टालिन सरकार से पूछा- 2006 से 2014 तक गठबंधन वालों ने एक भी ट्रेन का नाम तमिल आइकन के नाम पर क्यों नहीं रखा? वहीं भाजपा सरकार ने सेंगोल एक्स्प्रेस की तरह कई ट्रेनों का नाम तमिल प्रतीकों पर रखा।

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कांग्रेस सरकार द्वारा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर योजनाओं के नाम से बेहतर हिंदी नाम है। -योजनाओं के हिंदी नाम विवाद पर अन्नामलाई

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इधर तमिलनाडु की भाजपा नेता तमिलिसाई सुंदरराजन ने कहा, ‘थ्री लैंग्वेज पॉलिसी निजी संस्थानों में लागू है, लेकिन सरकारी संस्थानों में दो-भाषा नीति अपनाई जा रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चों को दूसरी भाषा सीखने का मौका क्यों नहीं दिया जा रहा?’

उन्होंने NEP लागू करने की मांग उठाते हुए कहा कि इससे गवर्नमेंट और सेंट्रल बोर्ड की परीक्षाओं में एक तरह की एजुकेशन पॉलिसी लागू होगी। साथ ही छात्रों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

तमिलनाडु सरकार ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध किया 

तमिलनाडु सरकार पहले ही 3 लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर विरोध जता चुकी है। सीएम एमके स्टालिन ने इसे हिंदी थोपने की कोशिश बताया था। उन्होंने कहा कि ‘3 लैंग्वेज पॉलिसी के कारण केंद्र ने तमिलनाडु के फंड रोक दिए हैं। परिसीमन का असर राज्य के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी पड़ेगा।’

स्टालिन ने लोगों से इस नीति के खिलाफ खड़े होने की अपील की और कहा, 'तमिलनाडु विरोध करेगा, तमिलनाडु जीतेगा!'

NEP 2020 के तहत, स्टूडेंट्स को 3 भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की आजादी है कि वे कौन-सी 3 भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं।

प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है। वहीं, मिडिल क्लासेस (क्लास 6 से 10 तक) में 3 भाषाओं की पढ़ाई करना अनिवार्य है। गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। सेकेंड्री सेक्शन यानी 11वीं और 12वीं में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे।

गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी दूसरी भाषा

5वीं और जहां संभव हो 8वीं तक की क्लासेस की पढ़ाई मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में करने पर जोर है। वहीं, गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जा सकती है। साथ ही, हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा के रूप में कोई अन्य भारतीय भाषा (जैसे- तमिल, बंगाली, तेलुगु आदि) हो सकती है।

किसी भाषा को अपनाना अनिवार्य नहीं 

राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की स्वतंत्रता है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाएंगे। किसी भी भाषा को अनिवार्य रूप से थोपने का प्रावधान नहीं है।

तमिलनाडु में 2 लैंग्वेज फॉर्मूला लागू है

तमिलनाडु में पहले से ही 2 लैंग्वेज फॉर्मूला लागू है। पहली भाषा तमिल (मातृभाषा/राज्य की भाषा) और दूसरी भाषा अंग्रेजी (आधिकारिक और इंटरनेशनल कम्युनिकेशन के लिए)। तमिलनाडु सरकार का कहना है कि यह मॉडल सफल है और छात्रों पर भाषा का अतिरिक्त बोझ डालने की जरूरत नहीं है।

तमिलनाडु सरकार का कहना है कि नई शिक्षा नीति 2020 का 3 लैंग्वेज फॉर्मूला, केंद्र सरकार द्वारा हिंदी थोपने की कोशिश है। राज्य के 2 लैंग्वेज फॉर्मूला को बदलने की कोई जरूरत नहीं है। ये कहते हुए राज्य के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री दोनों ने NEP 2020 के 3 लैंग्वेज फॉर्मूला को अस्वीकार कर दिया है।

तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास 85 साल पुराना

1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी (अब तमिलनाडु) में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने की कोशिश हुई थी, जिसे व्यापक विरोध झेलना पड़ा। इस आंदोलन की अगुवाई द्रविड़ कड़गम (Dravidar Kazhagam) और बाद में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी DMK ने की थी। विरोध इतना मजबूत था कि 1940 में हिंदी को स्कूलों से हटाना पड़ा।

इसी तरह साल 1965 जब केंद्र सरकार ने हिंदी को देश की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने की योजना बनाई, तो तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के दौरान कई छात्रों की जान चली गई और आंदोलन ने पूरे राज्य को झकझोर दिया। इसके बाद, केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा और अंग्रेजी को हिंदी के साथ सह-आधिकारिक भाषा के रूप में बनाए रखा गया।

34 साल बाद नई शिक्षा नीति 2020 को लाया गया

नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) को भारत सरकार ने 29 जुलाई, 2020 को मंजूरी दी थी। यह 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव है। इससे पिछली नीति 1986 में बनाई गई थी (जिसे 1992 में अपडेट किया गया था)। इसका उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी की जरूरतों के अनुसार ढालना है, ताकि छात्र न केवल परीक्षा पास करें, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान और कौशल से लैस हों।

इस बार नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए केन्द्र ने साल 2030 तक का लक्ष्य रखा गया है। चूंकि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें राज्य और केंद्र सरकार दोनों का अधिकार होता है। इसलिए राज्य सरकारें इसे पूरी तरह अप्लाई करे ऐसा जरूरी नहीं है। जब भी कहीं टकराव वाली स्थिति होती है, दोनों पक्षों को आम सहमति से इसे सुलझाने का सुझाव दिया गया है।



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