रियाद: सऊदी अरब के चीन के खेमे में जाने से अमेरिका बेचैन हो उठा है। बाइडन प्रशासन को डर सताने लगा है कि अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो पूरा मध्य-पूर्व उसकी हाथ से निकल सकता है। सऊदी अरब को खाड़ी देशों का नेता माना जाता है। खाड़ी के अधिकतर देश सऊदी की विदेश नीति को ही फॉलो करते हैं। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने 'चाणक्य' जेक सुलिवन को सऊदी अरब भेजा है। जेक सुलिवन अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। उन्होंने जेद्दा में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ लंबी बातचीत भी की है। दोनों नेताओं की मुलाकात को एक महत्वाकांक्षी और दूरगामी राजनयिक सफलता के लिए चली गई चाल का हिस्सा बताया जा रहा है।
प्रिंस सलमान से क्यों मिले सुलिवन?
व्हाइट हाउस ने बताया कि सुलिवन और प्रिंस सलमान ने गुरुवार को दुनिया से जुड़े अधिक शांतिपूर्ण, सुरक्षित, समृद्ध और स्थिर मध्य पूर्व क्षेत्र के लिए एक साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की पहल पर चर्चा की। इस मुलाकात पर न्यूयॉर्क टाइम्स के कॉलमिस्ट थॉमस फ्रीडमैन ने पिछले हफ्ते जो बाइडन के इंटरव्यू के आधार पर कहा कि उनका मानना है कि सुलिवन किसी प्रकार अमेरिका-सऊदी अरब-इजरायल-फिलिस्तीन समझौते की संभावना तलाशने के लिए जेद्दा गए थे। चीन भी इस मुद्दे पर तेजी से काम कर रहा है। ऐसे में अमेरिका को डर है कि अगर चीन ने इजरायल फिलिस्तीन विवाद का हल खोज लिया तो यह उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा।
इजरायल बन सकता है गेमचेंजर
उन्होंने कहा कि यह सौदा अमेरिका-सऊदी सुरक्षा समझौते और सऊदी-इजरायल राजनयिक संबंधों के सामान्यीकरण से जुड़ी एक बड़ी सौदेबाजी होगी। इसमें अमेरिका के कहने पर कब्जे वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों की दुर्दशा में कुछ सुधार, यहूदी बस्ती के निर्माण को रोकना और वेस्ट बैंक पर कभी कब्जा न करने का वादा शामिल हो सकता है। इसके बदले में सऊदी अरब और इजरायल का मान्यता आदान-प्रदान भी करेंगे। वर्तमान में सऊदी अरब और इजरायल एक देश के तौर पर एक दूसरे को मान्यता नहीं देते हैं। हालांकि, दोनों देशों के बीच बैक चैनल डिप्लोमेसी पिछले कई वर्षों से जारी है। ईरान के खिलाफ भी सऊदी अरब और इजरायल ने लंबे समय तक एक साथ काम किया है।
विशेषज्ञों को सऊदी से सौदे की उम्मीद नहीं
सीआईए के लिए मध्य पूर्व विश्लेषक के तौर पर काम कर चुके और व्हाइट हाउस सलाहकार ब्रूस रीडेल ने कहा कि इस तरह के बहुआयामी समझौते का विचार राजनीतिक रूप से दूर की कौड़ी है। उन्होंने कहा कि सऊदी जो बाइडन को दोबारा निर्वाचित होते नहीं देखना चाहता। वह डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में वापस आने को दृढ़ता से पसंद करते हैं। उन्होंने मानवाधिकार के मुद्दों पर सऊदी से कभी सवाल नहीं किया, उन्होंने यमन युद्ध का 100% समर्थन किया, उन्होंने जमाल खशोगी की हत्या के बाद उनके खिलाफ कुछ नहीं किया। तो इस बात पर एक बड़ा सवालिया निशान है कि सऊदी ऐसा कुछ क्यों करेगा जो जो बाइडन के लिए इतना फायदेमंद होगा। मैं नहीं देखता हूं कि यह काम करेगा और मैं मानता हूं कि बाइडन के लोग इतने समझदार हैं कि इसे पहचान लेंगे।
इजरायल के मानने पर भी जताया जा रहा शक
सऊदी अरब के साथ सुरक्षा समझौते को सीनेट से मंजूरी दिलाना भी बेहद मुश्किल होगा। विपक्ष में बैठी रिपब्लिकन पार्टी बाइडन राजनयिक जीत हासिल करने में मदद नहीं करना चाहेगीी। अधिकांश डेमोक्रेट भी खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले सऊदी राजशाही के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धताओं का विरोध करेंगे और फिलिस्तीनियों के लिए पर्याप्त लाभ की मांग करेंगे, जिसे बेंजामिन नेतन्याहू की कट्टर-दक्षिणपंथी इजरायली सरकार स्वीकार नहीं करेगी। मध्य पूर्व संस्थान में इस क्षेत्र के विशेषज्ञ खालिद एल्गिंडी ने कहा कि नेतन्याहू की कैबिनेट में भीतर फिलिस्तीनी प्राधिकरण के नियंत्रण पर सहमति नहीं बन सकती है।