पद्म भूषण से सम्मानित 'बिहार कोकिला' शारदा सिन्हा 5 नवंबर को हमारा साथ छोड़ गई। पिछले चार दशकों में छठ के गीतों का पर्याय बन चुकीं शारदा सिन्हा को बिहार की लोकगायकी में जो सम्मान मिला, वह शायद ही किसी को नसीब हो। उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में बता रहे हैं निराला बिदेसिया:'मैंने शारदा सिन्हा को बचपन में ही जाना। उन्हें याद करते हुए उनसे हुई पहली मुलाकात के बजाय, मामा की शादी का प्रसंग याद आता है। मामा को ससुराल से टेप रिकॉर्डर मिला। पहला टेप रिकॉर्डर आया तो गांवभर में शोर हुआ। मिस्त्री बुलाया गया। टेप निराला बिदेसिया रिकॉर्डर से जोड़कर तारों का जाल बिछा। घर के आंगन से लेकर दालान तक कई स्पीकर लगे। टेप रिकॉर्डर के साथ ससुराल से शारदा सिन्हा के कैसेट भी मिले थे।
शारदा सिन्हा के गीत और उनका क्रेज
तब घर में एक शख्स का काम ही हो गया कि समय-समय पर टेप रिकॉर्डर बजाए। समय के मिजाज के मुताबिक गीत बजाना। सुबह में भजन, दोपहर में गांव-घर के लोकगीत, फिर शाम को कुछ देर भजन या दूसरे गीत। गांव के लोग बाहर आकर बैठ जाते थे। शांत मन से गीत सुनते थे। ऐसा लगता था कि उनके लिए यह भी एक जरूरी काम हो। शाम को काम खत्म हो जाने के बाद घर पर काम करनेवाली महिला कामगारों से अगर गुजारिश की जाती कि थोड़ा काम और कर दें तो वो कहतीं कि जरूर कर देंगे, लेकिन शारदा सिन्हा का जो गीत हम कह रहे हैं, वह बजाना होगा और थोड़ी तेज आवाज में। वो गीत होते-'कोयल बिना बगिया ना सोहे राजा,' 'लेले अईह हो पिया सेनुरा बंगाल से,' 'हमनी के रहब जानी दुनो परानी,' 'रोई रोई पतिया लिखावे रजमतिया...।'
पड़ोस की महिलाएं करती थीं फरमाइश
वहीं घर के आंगन में गीत सुनने के लिए बैठीं घर और पड़ोस की महिलाएं कहतीं कि 'रामजी से पूछे जनकपुर की नारी,' 'कंकड़ी जनि मारअ ए मोरे राजा...' जैसे गीत बजाओ। इन सबसे अलग शाम को गीत सुनने का इंतजार करते गांव के लोग 'जल जाए जिहवा पापिनी राम के बिना...' जैसे भजन-गीत सुनने की फरमाइश करते। अंत में फरमाइश में जीत कामगार महिलाओं की होती थी। इसके पीछे गीत सुनाकर ज्यादा काम करवा लेने के लालच वाला फॉर्म्युला होता था। शारदा सिन्हा से इस रूप मेरा में पहला परिचय था।'
पहले इंटरव्यू का मौका
'जब पत्रकारिता में आया तो तय किया कि पहला उनका ही इंटरव्यू करूंगा। लेकिन एक ट्रेनी रिपोर्टर उनसे मिलने की सोचे भी तो कैसे? कहीं से कोई ओर-छोर भी नहीं मिल रहा था परिचय का। एक फॉर्म छपवाया। उस पर कुछ गायक-गायिकाओं के नाम लिखवाए। घूम- घूमकर फॉर्म भरवाए। उसमें मेन सवाल था कि बिहार की श्रेष्ठ गायिका कौन हैं? जाहिर सी बात है, 90 पर्सेट लोगों ने शारदा सिन्हा का नाम लिखा। फिर मैंने उनके नंबर पर कॉल किया। उनके पति डॉ. बी. के. सिन्हा ने फोन उठाया। उनसे कहा कि एक सर्वे करने की कोशिश की है। उसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने शारदा जी को बिहार की श्रेष्ठ गायिका माना है। इस सर्वे के साथ इंटरव्यू भी छापना चाहता हूं।'
'सर्वे मुझे छापना नहीं था। मुझे तो कोई वाजिब वजह लेकर पहुंचनेभर के लिए की थी। फोन पर उनके पति ने बताया, 'वह भोपाल में है। पटना लौटते ही मिलेंगी।' वह पटना आईं तो मिलने गया। मन में घबराहट का भाव था। जो मेरी सबसे प्रिय गायिका हैं, जिनसे मिलना मेरे पत्रकारिता में आने के बाद पहला यादों में... मैं पहुंचा उनके पटना के राजेंद्र नगर आवास पर। आधे घंटे तक डॉ. बी. के. सिन्हा से गपबाजी होती रही। वह इतने जानदार इंसान थे कि उन्होंने अपनी ही बातों से माहौल को सहज कर दिया था। अब मेरी घबराहट खत्म हो चुकी थी। शारदा जी आईं। जिन बिंदुओं पर उनके पति से बात हो रही थी, उसी में वह शामिल हो गईं। वहीं से बात आगे बढ़ती गई। मैं गया था शारदा सिन्हा का इंटरव्यू करने और माहौल ऐसा बन गया, जैसे मैं अपने घर में बैठकर अपनी मां और अपने लोगों से बात कर रहा हूं। घंटेभर का वक्त तय हुआ था। 3 घंटे की बातों के बाद भी अभी उनका इंटरव्यू शुरू नहीं हुआ था। इतनी देर के बाद शारदा जी से बात शुरू हुई। फिर 2 घंटे तक बात करते रहे। बातें अधूरी रह गईं। तय हुआ, कल एक बार फिर बैठेंगे।
अगले दिन फिर करीब 3 घंटे तक बातें चलीं। वह न जाने कितने प्रसंग, कितने संदर्भ, कितने किस्से सुनाती रहीं। इस दौरान उन्होंने कई गीत भी सुनाए। उन्होंने बताया था कि बचपन में उनका नाम विजया था। झारखंड के मांडर के एक अस्पताल में जन्म हुआ था। उस वक्त उनके पिता वहीं शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। वह बताने लगीं कि गायन से पहले उनका पहला प्यार नृत्य था। यह बताते हुए उनके चेहरे की चमक ही अलग थी। मणिपुरी नृत्य, जिसकी उन्होंने तालीम ही नहीं ली बल्कि सार्वजनिक मंचों पर प्रस्तुति भी दी थी। लेकिन धीरे-धीरे नृत्य गायब होता गया और गायन उभरता गया। यह किस्सा भी सुनाया कि उन्होंने अपनी ही शादी में किन स्थितियों में गीत गाया।
विदाई के वक्त गाया गाना, गला खराब करने की कोशिश
शादी के बाद वह घर से विदा होकर गाड़ी तक आ गईं। घर में रुलाई का माहौल था। गाड़ी में बैठने से पहले घरवालों ने कहा, 'बेटी शारदा, एक गीत गाकर जाओ।' दुल्हन बनीं शारदा फिर से अपने घर के आंगन में लौटीं। चारों ओर घरवाले बैठे थे। घरवालों को एक गीत सुनाया। सब रोते रहे और वह विदा हुई। वह किस्सा भी सुनाया कि कैसे उन्होंने ऑडिशन में न चुने जाने पर आइसक्रीम खाकर गला खराब करने के बारे में सोचा। यह मानकर कि जब ऑडिशन में चुनी ही नहीं गई तो हुआ तो फिर इस गले की इतनी हिफाजत क्यों? लेकिन अगले दिन जब उन्हीं शारदा सिन्हा ने अपने गांव में गाए जानेवाले द्वार छेकाई गीत 'द्वार के छेकाई नेग...' गाया तो सिलेक्शन हो गया।
जब शारदा सिन्हा के घर में हुई चोरी, शारदा सिन्हा ने जो किया...
एक बार उनके घर में चोरी हुई। चोरी में उनके घर काम करनेवाला ही शामिल था। उनके पति बी. के. सिन्हा ने मुझे फोन किया तो उनके घर पहुंचा। उन्हें कहा कि आप परेशान न हों। मैं अभी सीधे पुलिस अधिकारियों को फोन करता हूं। मैं फोन मिलाने ही वाला था कि अंदर रूम से शारदा जी की आवाज आई। मैं उनके पास गया तो उन्होंने पूछा कि पुलिस तो उसे घर से उठा लेगी न ! फिर पिटेगी भी न ! उसे जेल भी होगी न ! मत करो फोन। हम सीधे बात कर उससे अपना सामान मांग लेंगे। उससे पूछेंगे कि क्या मजबूरी हुई कि तुमने विश्वासघात किया। पुलिस उसे पिटेगी तो अच्छा नहीं लगेगा। मेरे घर से रिश्ता-वास्ता है उसका। मैं उन्हें देखता रह गया। असल जीवन में इतनी ही कोमल हृदय की थीं वह। उन्हें जब मालूम हो जाए कि कोई किसी कॉन्सर्ट में बुला रहा है और उस कॉन्सर्ट का एक सामाजिक सरोकार है, उसके पास पैसे नहीं है तो फिर पैसे की मांग नहीं करती थीं।
छठ गीत थी पहचान की रेखा
सिवान के गांव पंजवार में वहां के गांधी कहे जानेवाले घनश्याम शुक्ल के आग्रह पर वह इसी तरह से गई थीं। घनश्याम शुक्ल ने कहा था कि बच्चियां आपको सुनना चाहती हैं। सिर्फ एक बार कह देने पर वह चली गई थीं। उनका यह सामाजिक सरोकार गीतों के चयन में भी आजीवन दिखता रहा। छठ गीत उनकी पहचान की रेखा थी। 'जगदंबा घर में दियरा बार अइनी' गीत से रातों-रात वह मिथिला की परिधि से निकल भोजपुरी समाज में, घर-घर में स्थापित हो गई थीं। शारदा जी ने सबसे ज्यादा गीत पलायन की पीड़ा, प्रेम की पीड़ा पर गाए। उन्होंने उन स्त्रियों को अपने गीतों से आनंद दिया, जिनके पति कमाने के लिए गांव-घर छोड़ परदेस जाते थे। 'पनिया के जहाज से पलटनिया बनी अइहा पिया,' 'रोई रोई पतिया लिखावे रजमतिया,' 'गवना कराई सइयां,' 'पटना से बैदा बुलाई द' उनके मशहूर गीत हैं। सभी गीतों का छोर पलायन से ही जुड़ता है। पलायन की पीड़ा और प्रेम से।
अब जब पीछे लौटकर सोचता हूं तो याद आता है कि क्यों कामगार महिलाएं शारदा सिन्हा के ऐसे गीतों को सुनकर ज्यादा काम करती थीं। उनकी मांग क्यों पलायन और प्रेम से जुड़े गीतों की ही होती थी। शायद शारदा जी की आवाज उनमें प्रेम की उम्मीद जगाती थी।