लंदन: पृथ्वी पर ब्रिटेन का एक सैटेलाइट क्रैश होने वाला है। यह सैटेलाइट पहले ही पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर चुका है। अगले कुछ घंटों में यह सैटेलाइट पृथ्वी पर गिरकर नष्ट हो जाएगा। इसका नाम एयोलस बताया जा रहा है, जिसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने पांच साल पहले लॉन्च किया था। इस सैटेलाइट को जानबूझकर पृथ्वी पर गिराया जा रहा है, जिसकी हर पल की निगरानी की जा रही है। संभावना है कि यह सैटेलाइट अटलांटिक महासागर में गिरकर नष्ट हो जाएगा। एओलस सैटेलाइट ने 2018 से यूरोप भर के मौसम केंद्रों को जरूरी डेटा प्रदान किया है। अब यह सैटेलाइट बेकार हो चुका है। ऐसे में अंतरिक्ष कचरे की जगह इसे धरती पर गिराकर नष्ट करने का फैसला किया गया।
पृथ्वी के वायुमंडल में किया प्रवेश
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अंतरिक्ष मलबा कार्यालय ने बताया कि एलोयस सैटेलाइट वायुमंडल में प्रवेश कर चुका है। एओलस को अपने मिशन के अंत में नियंत्रित तरीके से पृथ्वी पर गिरकर नष्ट करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था। लेकिन, जब अंतरिक्ष एजेंसी ने इसकी जांच की तो उसे सैटेलाइट में थोड़ा सा ईंधन बचा हुई मिला। वैज्ञानिकों ने इसी ईंधन का इस्तेमाल धरती की कक्षा में सैटेलाइट को फिर से प्रवेश कराने के लिए किया। इसके बाद बचा हुआ काम धरती के गुरुत्वाकर्षण ने कर दिया। हालांकि, इस बात का ध्यान रखा गया कि यह सैटेलाइट ऐसी जगह पर क्रैश हो, जहां कोई जनहानि न हो।
क्रैश से डेटा जुटा रही एजेंसी
सामान्य परिस्थितियों में एओलस उपग्रह का अधिकतर हिस्सा पृथ्वी के वायुमंडल में जलकर नष्ट हो जाएगा। बचा हुआ हिस्सा ही समुद्र में गिरेगा। इसे भविष्य के उपग्रहों के पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश के लिए डेटा इकट्ठा करने और अभ्यास करने के तौर पर भी देखा जा रहा है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी देश और दूसरे संगठन भी इसका अनुसरण करेंगे। शुक्रवार शाम को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि जर्मनी में एयोलस मिशन कंट्रोल टीम एक हफ्ते के मुश्किल ऑपरेशन के बाद अब अपने अभियान का समापन कर रही है।
एओलस सैटेलाइट को जानें
एओलस अंतरिक्ष यान का निर्माण एयरबस डिफेंस एंड स्पेस ने हर्टफोर्डशायर के स्टीवनेज में किया था। इसका वजन लॉन्च के समय 1,360 किलोग्राम था। इसे अगस्त 2018 में लॉन्च किया गया था और यह अंतरिक्ष से पृथ्वी की पवन धाराओं की निगरानी करने वाला पहला अंतरिक्ष यान बन गया था। यह सैटेलाइट हवाओं की जांच के लिए अपने साथ डॉपलर विंड लिडार नामक एक परिष्कृत लेजर उपकरण लेकर गया था। जिसने शोधकर्ताओं को मौसम के पूर्वानुमान और जलवायु मॉडल को बेहतर बनाने में मदद की थी।