इस्लामाबाद: पाकिस्तान के CPEC प्रोजेक्ट को 10 साल हो चुके हैं। चीन और पाकिस्तान सोमवार को इसके दूसरे चरण को पुनर्जीवित करने पर सहमत हुए। यह सहमति चीनी उपप्रधानमंत्री हे लिफेंग की पाकिस्तानी नेताओं के साथ बैठक के बाद बनी है। हे लिफेंग चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी हैं। उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ औपचारिक बातचीत की। इसके अलावा सीपीईसी के 10 साल पूरे होने पर एक खास कार्यक्रम में भाग लिया। भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान और चीन इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहे हैं।
जिनपिंग के खास चीनी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से भी मुलाकात की। सीपीईसी के 10 साल पूरे होने पर वह पाकिस्तान की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। हालांकि सीपीईसी का भविष्य अधर में लटका नजर आ रहा था। लेकिन हे की यात्रा के बाद दोनों पक्ष मेगा प्रोजेक्ट के अगले चरण को शुरु करने पर सहमत हुए हैं। इसके लिए दोनों पक्षों ने छह MoU पर हस्ताक्षर किए। कई वर्षों से रुके एक रेल प्रोजेक्ट को भी बनाने पर दोनों देश सहमत हुए।
इमरान के हटने के बाद प्रोजेक्ट में तेजी
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) कहने को तो पाकिस्तान की तरक्की में योगदान देने के लिए था। लेकिन इसकी असली मलाई चीन ने खाई है। पाकिस्तान में लोगों को नौकरियां मिलने का दावा किया गया था, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ। वहीं, जब इमरान खान पाकिस्तान की सत्ता में आए तो चीन को सबसे ज्यादा CPEC की चिंता हुई। रिपोर्ट्स के मुताबिक इमरान खान से चीन खुश नहीं था। लेकिन जब इमरान को हटा कर शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने तो प्रोजेक्ट में तेजी आ गई।
भारत ने किया CPEC का विरोध
CPEC 3000 किमी लंबा रास्ता है, जिसके जरिए चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जुड़ता है। चीन को इस प्रोजेक्ट से सबसे ज्यादा फायदा है। क्योंकि ग्वादर बंदरगाह के जरिए चीन खाड़ी देशों और अफ्रीका से सीधा जुड़ सकता है। इसके साथ ही वह हिंद महासागर तक सीधे पहुंच सकता है। यह रास्ता क्योंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) से गुजरता है, इसलिए भारत शुरुआत से ही इसका विरोध करता रहा है।