दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि रेप से संबंधित FIR को पैसे के लेनदेन के चलते रद्द नहीं करवाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने का मतलब यह होगा कि न्याय को बेचा जा रहा है। कोर्ट में जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने यह टिप्पणी मंगलवार (2 जुलाई) को रेप की FIR रद्द करने की मांग की याचिका को खारिज करते हुए की।
दरअसल, एक रेप केस के आरोपी ने पीड़ित महिला द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने की मांग की थी। आरोपी ने कहा था कि 1.5 लाख रुपए में दोनों पक्षों के बीच मामला आउट ऑफ कोर्ट सुलझ गया है। पीड़ित महिला केस से जुड़े अपने दावों से पीछे हटने के लिए सहमत हो गई है, इसलिए अब FIR रद्द हो जानी चाहिए।
इस पर जस्टिस शर्मा ने कहा कि FIR रद्द नहीं की जाएगी। हम जानना चाहते हैं कि क्या आरोपी ने वाकई क्राइम किया है या शिकायत करने वाली महिला ने झूठा केस दर्ज कराया था और बाद में 1.5 लाख रुपए स्वीकार करके केस को निपटाने की कोशिश की जा रही है।
कोर्ट ने कहा- महिला और आरोपी अपने हितों को पूरा करना चाहते हैं
बेंच ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला और आरोपी अपने स्वयं के हितों को पूरा करना चाहते हैं। इसके लिए कोर्ट के संसाधनों के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को मामले का फैसला मामले के मेरिट के आधार पर लेना चाहिए।
कोर्ट ने कहा- जस्टिस के लिए फैक्ट्स की जांच जरूरी
बेंच ने कहा कि कोर्ट को शिकायतकर्ता महिला और आरोपी दोनों के लिए नेचुरल जस्टिस के लिए फैक्ट्स की जांच करनी चाहिए। साथ ही देखना चाहिए किए ऐसे मामलों पर फैसला सुनाने से समाज और क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट द्वारा सुनाया गया हर फैसला अपने आप में एक अलग मैसेज देता है।
4 पॉइंट में समझिए पूरा मामला
दिल्ली में एक महिला ने आरोप लगाया था कि उसका एक शख्स ने 4 बार रेप किया । इस पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत रेप का केस दर्ज किया था।
आरोपी और पीड़ित महिला की मुलाकात सोशल मीडिया के जरिए हुई थी। पीड़ित महिला के मुताबिक, आरोपी ने रेप करते हुए कहा था कि वह तलाकशुदा है। वह जल्द ही उससे शादी कर लेगा।
कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक, बाद में दोनों के बीच समझौता हुआ। इसमें कहा गया कि 12 लाख रुपए लेकर महिला केस वापस लेने के लिए राजी हो जाएगी।
बाद में आरोपी की आर्थिक स्थिति को देखते 1.5 लाख रुपए में दोनों के बीच सहमति बनी और महिला केस वापस लेने के लिए मान गई।