एमपी में हर महीने ढाई हजार पति, पत्नियों से प्रताड़ित

Updated on 15-12-2024 02:08 PM

‘कई बार मेरे मन में भी आता है कि बेंगलुरु के AI इंजीनियर सुभाष की तरह सुसाइड कर लूं। मगर, कभी मां-बाप तो कभी छोटे भाई-बहनों का चेहरा सामने आ जाता है। मैं इस प्रताड़ना से तंग आ चुका हूं। पैसे के इस गंदे खेल को बंद हो जाना चाहिए। ये कहना है भोपाल के रणजीत सिंह राजपाल का, जो पत्नी से प्रताड़ित है। राजपाल की पत्नी ने चार साल पहले उनके और मां के खिलाफ प्रताड़ना का केस दर्ज कराया है।

दरअसल, ये केवल एक मामला नहीं है। मप्र में पत्नियों से प्रताड़ित ढाई हजार पुरुष हर महीने सेव इंडियन फैमिली की सहयोगी संस्था भाई(BHAI) से मदद मांगते हैं। एक साल में ये आंकड़ा करीब 25 हजार है। मदद मांगने वालों में आईएएस-आईपीएस से लेकर ओला ड्राइवर तक शामिल है। संस्था के पदाधिकारियों के मुताबिक ज्यादातर शिकायतें मेंटेनेंस और घरेलू प्रताड़ना के केस से जुड़ी होती हैं।

इन 3 केस में जानिए पत्नी पीड़ित पतियों की कहानी

1.पेरेंट्स से अलग रहने की जिद में केस दर्ज कराया

भोपाल के रहने वाले अभिषेक शुक्ला बताते हैं कि साल 2014 में शादी हुई थी। हम लोग शादी के तीन-चार महीने ही साथ रहे। इसके बाद पत्नी के पेरेंट्स से झगड़े होने लगे। रोजाना हो रहे झगड़ों से मैं तंग आ गया और किराए का मकान लेकर रहना लगा।

इसके बाद भी पत्नी मुझसे कहती कि तुम अपने पेरेंट्स से मिलने नहीं जाओगे, पूरा समय मुझे दोगे और पेरेंट्स को छोड़ दोगे। अभिषेक कहते हैं कि बच्चों के लिए अपने माता-पिता को छोड़ना संभव नहीं होता। आखिरकार पत्नी मायके चली गई। वह दोबारा नहीं लौटी। सीधा नोटिस ही आया। पहले दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया। उसके बाद घरेलू हिंसा और मेंटेनेंस के केस भी दर्ज कराए।

8 साल की बेटी को देखा, कभी बात नहीं की केस दर्ज होने के बाद कोर्ट की कार्रवाई का जिक्र करते हुए अभिषेक कहते हैं कि पेरेंट्स बुजुर्ग हैं तो उन्हें बार-बार कोर्ट ले जाना काफी परेशानी भरा होता था। एक बार मामाजी गवाही देने आए मगर उस दिन कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्हें रिजर्वेशन कैंसिल कराना पड़ा। ये सभी केस 6-7 साल चले।

इस दौरान पत्नी केवल भरण-पोषण के केस में हाजिरी देने कोर्ट आती थी। दहेज प्रताड़ना के केस की पेशी में वो कभी नहीं आई। केस को जब पांच साल हो गए और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पांच साल पुराने केस का खात्मा किया जाए तब लगातार सुनवाई हुई। आखिर में कोर्ट ने सेटलमेंट का ऑर्डर दिया।

एक अमाउंट तय हुआ जो मैंने पत्नी को दिया। इसके बाद हम सभी लोग तीनों केस से बरी हुए। अभिषेक कहते हैं कि ये एक तरह से फिरौती और एक्सटॉर्शन जैसा ही मामला है। वे कहते हैं कि मेरी एक बेटी है, मुझे उससे कभी मिलने नहीं दिया गया। जब भी मिलने की कोशिश की तो बताया कि उसकी जान को मुझसे खतरा है।

मेरी बेटी अब आठ साल की है। आखिरी बार जब कोर्ट में फाइनल सेटलमेंट के वक्त पत्नी उसे लाई थी। मैं उसे दूर से देखता रहा। बात नहीं की।

2. चार साल बाद स्थितियां बिगड़ी

जितेंद्र बताते हैं कि मेरी शादी 2017 में हुई थी। शादी के 3-4 साल तक सब कुछ अच्छा रहा लेकिन बाद में स्थितियां बिगड़ गईं। घर में विवाद होने लगे, पत्नी धमकियां देने लगी कि तुम्हें अंदर (जेल) करवा दूंगी। तुम्हारी फैमिली को जेल भिजवा दूंगी। केस कर दूंगी।

उसने धमकियों को सच साबित किया। मुझ पर दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, भरण-पोषण के केस दर्ज कराए। हमने समाज की पंचायत बुलाई। पंचायत में कहा गया कि अगर एक-दूसरे से नहीं बन रही है, तो तलाक ले लो। वो दोनों बच्चों को लेकर मायके चली गई।

बेटे के हार्ट में ब्लॉकेज, मिलने नहीं दिया जाता जितेंद्र बताते हैं कि जब बेटे की तबीयत खराब थी तब मुझसे कहा गया कि बेटा मेरे पास रहेगा। पिछले साल जब आखिरी बार उनसे मुलाकात हुई तो बेटे को मुझे नहीं सौंपा। न मुझे बच्चों से मिलने दिया जाता है और न ही बात करने दी जाती है। मानसिक रूप से मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है।

मेरा तलाक हो चुका है। एक मुश्त मेंटेनेंस अमाउंट पत्नी को दे चुका है। एक साल से बेटे की क्या हालत है मुझे नहीं पता। पत्नी बेटे को मायके ले गई थी वहां उसे कावासाकी नाम की बीमारी हो गई। उसके हार्ट आर्टरी में ब्लॉकेज है। इलाज चलता है। बेटा किस कंडीशन में है, कोई बताने को तैयार नहीं है। पंचायत में बात की तो कहा कि आपका तलाक हो गया है। अब अलग रहो।

3. चार साल से 350 किमी दूर पेशी पर जा रहे मां-बेटा

रणजीत बताते हैं मेरी शादी अगस्त 2019 में हुई थी। जनवरी 2020 से पत्नी के साथ विवाद होने लगा। उसने मुझ पर दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, मेंटेनेंस के केस लगा दिए। सारे केस राजस्थान के कोटा में चल रहे हैं, जो भोपाल से करीब 350 किलोमीटर है।

केस के कारण पिछले 4 साल से बहुत परेशान हूं। मेरी मां और मैं आज भी कोर्ट में पेशी पर जाते हैं। मां को स्लीप डिस्क की प्रॉब्लम है। केस की शुरुआत से ही परेशानी झेलनी पड़ी। केस लगा तो पहले थाने बुलाया। वहां प्रताड़ित किया गया। पुलिस वाले गाली गलौज से बात करते थे।

कोर्ट में पेशी के दौरान ये तक हुआ कि एक महीने में 4 से 5 बार मेरी पेशी लगाई गई। एक बार तो ऐसा वाकया हुआ कि मैं पेशी के बाद कोर्ट से निकला। 1 महीने बाद की डेट दी गई। मैं भोपाल पहुंचा। मगर मुझे उसी दिन रात में वापस कोटा पहुंचना पड़ा।

साढ़े तीन साल से बेटी से नहीं मिला रणजीत कहते हैं कि ये अलग प्रकार की प्रताड़ना है। मेरी बच्ची आज 4 साल की हो गई है। जन्म के सवा महीने तक वह मेरे साथ रही। उसके बाद जब वह छह महीने की हुई तब मैं उससे मिला। उसके बाद से आज तक नहीं मिला। बेटी से मिले करीब साढ़े तीन साल हो गए हैं।

कोर्ट में बच्ची से मिलाने की गुहार भी लगाई, मगर कुछ नहीं हुआ। बच्ची के नाम पर मेंटेनेंस का अमाउंट बराबर लिया जा रहा है लेकिन उससे मिलने नहीं देते। मैं आज भी 10 हजार रुपए महीना मेंटेनेंस देता हूं। कानून में तो ये भी है कि अगर पत्नी पेशी पर भोपाल आ रही है तो उसका और उसके वकील का खर्च भी हमें ही देना है।

अब जानिए किस तरह की शिकायतें होती हैं भाई वेलफेयर सोसाइटी साल 2014 से पुरुष प्रताड़ना के केस देखती है। संस्था का एक हेल्पलाइन नंबर है जिसके जरिए प्रताड़ित पुरुष मदद मांगते हैं। संस्था के पदाधिकारी नितिन तलवार कहते हैं कि हमारे पास छह से सात तरह की शिकायतें आती हैं।

इसमें घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, बलात्कार, यौन शोषण, कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न के झूठे मामले, महिला कानून की आड़ में झूठे मामलों में फंसाने की धमकी, ब्लैकमेलिंग, बच्चों को पिता से दूर रखना, बच्चों से मिल न पाना उनकी कस्टडी जैसी शिकायतें है। हम लोग इनकी काउंसिलिंग करते हैं। उन्हें उचित सलाह और मार्गदर्शन देते हैं।

पेशी पर जाना का प्रेशर, छुट्‌टी का टेंशन तलवार कहते हैं कि केस दर्ज होने के बाद पहले पुलिस की तरफ से फोन आता है। फिर चालान पेश होने तक पीड़ित पुरुष परेशान होता है। इसके बाद कोर्ट में सुनवाई होती है और यहां से वकील का मीटर शुरू हो जाता है। हर तारीख खर्च लेकर आती है। दूसरे शहर में तारीख पर वकील को ले गए तो उसका अलग खर्च।

पति आज जो भी काम कर रहा है वो टारगेट के आधार पर हो गया है। ऑफिस के काम का उस पर प्रेशर है। कोर्ट पेशी पर उसे दूसरे शहर जाना है, उसके लिए उसे छुट्‌टी चाहिए। छुट्टियां नहीं मिलती तो पीड़ित जॉब छोड़ता है। वहां भी स्थितियां अनुकूल नहीं होती। ऐसे में हताश होकर वह सुसाइड जैसा कदम उठाते हैं।

बच्चे से पिता को दूर रखना भी क्रूरता

पुरुष अधिकारों के लिए काम करने वाली दीपिका नारायण भारद्वाज बताती हैं है कि पति के साथ भले ही मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना हो रही हो, लेकिन उसे ही आरोपी बना दिया जाता है। उसके पास अधिकार नहीं है कि वह अपनी पत्नी के खिलाफ केस फाइल करें।

कोर्ट ने माना है कि यदि 4 साल के बच्चे को मां से दूर रखा जाता है तो वो क्रूरता है। इसी तरह पिता सालों से अपने बच्चों को देख भी नहीं पा रहे हैं, तो क्या ये क्रूरता नहीं है? महिलाएं मेंटेनेंस सहित अलग-अलग केस पुरुषों पर लगा देती हैं। वे मानसिक रूप से बुरी तरह से प्रताड़ित होते हैं।

एआई इंजीनियर अतुल सुभाष पर भी पत्नी ने 9 केस दर्ज कराए थे। एक इंसान कितने केस झेल सकता है? हर महीने पर तारीख लग रही है। पति कमाएगा क्या, खाएगा क्या, पत्नी को मेंटेनेंस देना है, वकील को फीस देना है।



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