राजनीतिक दलों की ओर से किए जाने वाले चुनावी वादे इन दिनों इलेक्शन
कमीशन की नजर पर हैं। आयोग ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा है जिसमें कहा गया है कि
हर एक पार्टी को इसकी डिटेल भी बतानी होगी कि वह अपने चुनावी वादे को पूरा
करने के लिए धन कहां से हासिल करेगी। जानना दिलचस्प है कि इस प्रस्ताव का
समर्थन केवल भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ने ही किया है।
कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को गैर-जरूरी व अव्यवहारिक करार दिया है और चुनाव आयोग से इसे लेकर सवाल भी किए हैं। कांग्रेस ने यह पूछा कि अगर कोई दल अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाता है तो इस कानून को कैसे लागू किया जाएगा। कांग्रेस ने EC को भेजे अपने जवाब में कहा कि चुनावी वादों को पूरा करना राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। साथ ही किसी भी मामले में झूठे वादों का पर्दाफाश तो हो ही जाता है।
DMK, AAP और AIMIM प्रस्ताव के खिलाफ
चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर बीजेपी के जवाब से अवगत लोगों के अनुसार, भाजपा
के विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'रेवड़ी कल्चर' वाली टिप्पणी से
मिलते-जुलते हैं। पीएम मोदी ने कहा था कि हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी
बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये रेवड़ी कल्चर देश
के विकास के लिए बहुत घातक है। EC के प्रस्ताव पर बीजेपी ने अपना जवाब दायर
करने के लिए 18 अक्टूबर से आगे का समय मांगा था। दूसरी ओर DMK, AAP और
AIMIM की ओर से इस प्रस्ताव के खिलाफ प्रतिक्रियाएं आई हैं।
मापका बोली- यह EC के दायरे में नहीं
माकपा की ओर से इलेक्शन कमीशन के इस प्रस्ताव का विरोध किया गया है। CPI-M
महासचिव सीताराम येचुरी ने अपने जवाब में कहा, 'संविधान का अनुच्छेद 324
चुनाव आयोग को इलेक्शन के समय राजनीतिक दलों की घोषणाओं और वादों के
मूल्यांकन का अधिकार नहीं देता है। आदर्श आचार संहिता में प्रस्तावित
संशोधन और चुनावी वादों के वित्तीय प्रभावों के खुलासे के प्रयास से आयोग
राजनीतिक-नीतिगत मामलों में शामिल होगा, जो इसके दायरे में नहीं आता है।'