नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई 31 अक्टूबर को हुई थी, इसमें कोर्ट ने दो वकीलों को सभी याचिकाओं में उठाए गए मुख्य मसलों का संग्रह तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी। CAA के खिलाफ 232 याचिकाएं हैं, इनमें 53 असम और त्रिपुरा से जुड़ी हैं। कोर्ट ने कहा था, इन्हें बाकी मामलों से अलग से सुना जाएगा।
पिछली सुनवाई में तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने केस को 6 दिसंबर को एक उपयुक्त बेंच के समक्ष आगे की सुनवाई के लिए ट्रांसफर किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से CAA को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की अपील की थी। इससे पहले 12 सितंबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सैकड़ों याचिकाओं की छंटनी करने और जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था।
CAA कानून क्या है?
2019
में देश में CAA कानून बना तो देशभर में इसका विरोध हुआ। दिल्ली का शाहीन
बाग इलाका इस कानून के विरोध से जुड़े आंदोलन का केंद्र बिंदु था। कानून
में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन,
पारसी और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता कानून के नियम आसान बनाए
गए। इससे पहले नागरिकता के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी था, इस समय को
घटाकर 1 से 6 साल कर दिया गया।
दोनों सदनों से इस तरह पास हुआ था बिल
11
दिसंबर 2019 को राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (CAB) के पक्ष
में 125 और खिलाफ में 99 वोट पड़े थे। अगले दिन 12 दिसंबर 2019 को इसे
राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। देशभर में भारी विरोध के बीच बिल दोनों सदनों
से पास होने के बाद कानून की शक्ल ले चुका था। इसे गृहमंत्री अमित शाह ने 9
दिसंबर को लोकसभा में पेश किया था।
1955 के कानून में किए गए बदलाव
2016
में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (CAA) पेश किया गया था। इसमें 1955 के
कानून में कुछ बदलाव किया जाना था। ये बदलाव थे, भारत के तीन मुस्लिम
पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम
शरणार्थियों को नागरिकता देना। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमेटी
के पास भेजा गया। कमेटी ने 7 जनवरी 2019 को रिपोर्ट सौंपी थी।
दूसरी बार पास कराना पड़ा था कानून
संसदीय
प्रक्रिया का एक नियम है कि अगर कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है और
राज्यसभा में पास नहीं होता है और इसी बीच अगर लोकसभा कार्यकाल खत्म हो
जाता है तो विधेयक प्रभाव में नहीं रहता है। इसे फिर से दोनों सदनों में
पास कराना जरूरी होता है। इस वजह से इस कानून को 2019 में फिर से लोकसभा और
राज्यसभा में पास कराना पड़ा।
विरोध में भड़के दंगों में 50 से ज्यादा जानें गईं
लोकसभा
में आने से पहले ही ये बिल विवाद में था, लेकिन जब ये कानून बन गया तो
उसके बाद इसका विरोध और तेज हो गया। दिल्ली के कई इलाकों में प्रदर्शन हुए।
23 फरवरी 2020 की रात जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर भीड़ के इकट्ठा होने के
बाद भड़की हिंसा, दंगों में तब्दील हो गई। दिल्ली के करीब 15 इलाकों में
दंगे भड़के। कई लोगों की हत्या हुई, कई लोगों को चाकू-तलवार जैसे धारदार
हथियारों से हमला कर मार दिया गया। इन दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत
हुई थी। सैकड़ों घायल हुए थी।