चाचा पशुपति पारस के तेवर की पटकथा कोई और लिख रहा क्या? भतीजे चिराग वाली चाल चलेंगे या BJP मनाने में होगी कामयाब

Updated on 03-08-2024 01:00 PM
पटनाः पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस अब खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। अब तक बीजेपी से उम्मीद लगाए बैठे पारस को राज्यसभा और राज्यपाल, दोनों पदों से मायूसी हाथ लगी है। इसके बाद उन्होंने बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर अपनी पार्टी आरएलजेपी को चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। पारस का कहना है कि अगर बीजेपी उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं देती है, तो वो सारे विकल्प खुले रखेंगे।

नाराज पशुपति पारस ने इतनी देर क्यों कर दी!


राजनीतिक गलियारों में पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के इस नाराजगी का विश्लेषण कई संदर्भों में किया जा रहा है। सबसे पहले तो पांच सांसदों के नायक बने पशुपति पारस के लिए सिटिंग-गेटिंग का फॉर्मूला तब बदल दिया जब वे गठबंधन में थे। यहां तक उन्हें स्वयं भी टिकट नहीं मिला। बावजूद खुशी व्यक्त करते लोकसभा चुनाव के दौरान बागी नहीं हुए। इसके पीछे की वजह को ले कर राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि राज्यसभा भेजा जाएगा या फिर राज्यपाल बनाए जाएंगे। लेकिन पशुपति पारस की नाराजगी तब आई जब राज्यसभा की उम्मीद समाप्त हो गई और हाल ही में नए राज्यपाल के नामों की घोषणा भी हो गई।

तरारी से जंग की शुरुआत


आरएलजेपी के अध्यक्ष पशुपति पारस ने न्याय की प्रक्रिया में सबसे पहला दावा तरारी विधानसभा चुनाव पर ठोका है। दलील भी दी है कि हमारे पास सीट जिताऊ नेता सुनील पांडे हैं। गत चुनाव में माले के सुदामा प्रसाद विनर रहे और 62 हजार वोट ला कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सुनील पांडे दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे। उन्होंने भाजपा के पाले में गेंद डाल अब आगामी राजनीति का ताना बाना बुनना शुरू कर दिया।

विधान सभा में हिस्सेदारी पाने की लड़ाई शुरू


तरारी विधानसभा सीट पाने की जंग अगर जीत गए तो एनडीए गठबंधन की राजनीति का अंग बने रहेंगे। भाजपा अगर यह सीट निकाल नहीं पाई तो इसके बरक्स वह सुनील पांडे पर विचार कर सकती है। और ऐसा नहीं होता है तो पांच सांसदों के हवाले से आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी तय कर सकते हैं। पांच सांसदों के हवाले से 25 विधान सभा सीटों की दावेदारी ठोक सकते हैं। और अगर सम्मानजनक हिस्सेदारी के नाम पर अगर उनकी हिस्सेदारी नही मिलती है तो उन्होंने कहा ही है कि सारे विकल्प खुले हैं।


पशुपति पारस के सामने क्या है विकल्प?


एनडीए में रह कर अपनी हिस्सेदारी से संतुष्ट नहीं होते तो तो इनका विकल्प क्या हो सकता है ? पहली कोशिश होगी कि महागठबंधन में शामिल हो कर अपनी हिस्सेदारी तय करेंगे। दूसरा विकल्प 243 सीटों में ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार खड़ा कर एनडीए को डैमेज करने की होगी। वहीं अगर भतीजे चिराग पासवान के विधान सभा चुनाव 2020 की राह चलेंगे तो कुछ नेताओं विरुद्ध टारगेटेड उम्मीदवार खड़ा कर उनका नुकसान करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि चिराग पासवान को तो वर्ष ,2020 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के नामवर नेता लोजपा की छतरी तले लड़े थे। क्या आरएलजेपी को भी तगड़ा उम्मीदवार किसी दल से मिलेगा? इस सवाल का जवाब इस बात पर आ टिकेगा कि आखिर उनके बदले तेवर की पटकथा लिख कौन रहा है ?

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