एक कपल को परेशान करने के आरोप में सेवा से बर्खास्त CISF कॉन्स्टेबल को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने कहा, कॉन्स्टेबल कोई पुलिस अधिकारी नहीं था। और होता भी तो, पुलिस अधिकारियों को भी मॉरल पुलिसिंग करने की जरूरत नहीं है।
बेंच ने आगे कहा कि पुलिस अधिकारियों का काम सिर्फ कानून-व्यवस्था बनाए रखना होता है। इसके साथ ही बेंच ने कॉन्स्टेबल को नौकरी पर रखने के हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। मामला साल 2001 का गुजरात के वडोदरा का है, जिसकी सुनवाई मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हो रही थी।
जज बोले- कोई युवती नहीं चाहेगी कि उसे रात में रोककर अभद्र तरीके से सवाल किए जाएं
जस्टिस
खन्ना ने कहा, यह मामला चौंकाने वाला है। रात में एक कपल को मॉरल पुलिसिंग
के नाम पर परेशान किया गया। कोई युवती नहीं चाहेगी कि कोई रास्ते में
रोककर उससे अभद्र तरीके से निजी सवाल-जवाब करे। यह कदाचार का मामला है।
उन्होंने आगे कहा कि आरोपी एक अनुशासित फोर्स से जुड़ा था, इसके चलते इस कदाचार को हल्के में नहीं ले सकते। गुजरात हाई कोर्ट इस मामले में न्यायिक समीक्षा का कानून ठीक ढंग से लागू करने में विफल रहा। इसलिए हम उसका आदेश रद्द कर रहे हैं।
जानिए पूरा मामला क्या था...
कॉन्स्टेबल
संतोष पांडेय 2001 में गुजरात के वडोदरा में ग्रीनबेल्ट में तैनात था।
घटना वाली रात को 1 बजे एक व्यक्ति अपनी मंगेतर के साथ बाइक से वहां पहुंचा
तो संतोष ने उन्हें रोक लिया। व्यक्ति ने बताया कि लड़की उसकी मंगेतर है और
दोनों गरबा देखने जा रहे हैं। इसके बावजूद संतोष ने उनको रोके रखा।
आखिर में उस व्यक्ति ने अपनी घड़ी दी तब संतोष ने उनको जाने दिया। इसके बाद कपल ने संतोष के खिलाफ शिकायत की। जांच के बाद CISF ने उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन हाई कोर्ट से उसे राहत मिल गई। CISF ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।