कभी उत्तर प्रदेश पर राज कर चुकी बहुजन समाज पार्टी सियासी वजूद की जंग
लड़ रही है। इसके लिए पार्टी प्रमुख मयावती ने कमान संभाल ली है। खबर है कि
वह इन दिनों लगातार मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश में
जुटी हुई हैं। 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा की हालत बेहद खराब रही थी।
पार्टी ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 1 ही जीत सकी थी। 287 पर
बसपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। फिलहाल, वह 2024 लोकसभा चुनाव के
लिए दलित-मुस्लिम वोट जुटाने की जुगत में लगी हुई हैं।
विधानसभा चुनाव में बसपा की हार के लिए मायावती ने मुसलमानों को जिम्मेदार बताया था। उनका कहना था कि समुदाय ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया, जिसके बाद सपा शासन से डरे सवर्ण, दलित और अन्य पिछड़ा वर्गों ने भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट किया। उन्होंने चुनाव से मिले अनुभव को 'सीख' माना था।
मौजूदा गतिविधियों को देखें, तो मायावती लगातार यह सुनिश्चित करने
में लगी हुई हैं कि कम से कम ट्विटर पर ही वह समुदाय के मुद्दों को पहले
उठाती रहें। उन्होंने राज्य में चर्चा में चल रहे मदरसा के मुद्दे को भी
उठाया था। बसपा सुप्रीमो ने राज्य सरकार से सवाल किया था कि सर्वे में मिले
7500 गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को मान्यता देगी या नहीं। मयावती ने
बताया था कि उनकी सरकार में 100 मदरसे यूपी बोर्ड से जुड़े हुए थे।
कांग्रेस को भी घेरा
अब वह कांग्रेस को भी मदरसा के मुद्दे पर घेर रही हैं। उन्होंने ट्वीट
किया, 'पहले कांग्रेस सरकार ने ’मदरसा आधुनिकीकरण’ के नाम पर वहाँ के
छात्रों को उनकी पसंद की उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के बजाय उन्हें
ड्राइविंग, मैकेनिक, कारपेन्टर आदि की ट्रेनिंग के जरिए छात्रों की तालीम व
उन मदरसों का भी अपमान किया और अब आगे देखिए बीजेपी सरकार में उनका क्या
होता है?'
हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के बाद भी उन्होंने पार्टी पर सवाल उठाए थे। उन्होंने लिखा था, 'कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि इन्होंने दलितों व उपेक्षितों के मसीहा परमपूज्य बाबा साहेब डा भीमराव अम्बेडकर व इनके समाज की हमेशा उपेक्षा/तिरस्कार किया। इस पार्टी को अपने अच्छे दिनों में दलितों की सुरक्षा व सम्मान की याद नहीं आती बल्कि बुरे दिनों में इनको बलि का बकरा बनाते हैं।' मायावती के एक अन्य ट्वीट के अनुसार, 'अर्थात् कांग्रेस पार्टी को अपने अच्छे दिनों के लम्बे समय में अधिकांशतः गैर-दलितों को एवं वर्तमान की तरह सत्ता से बाहर बुरे दिनों में दलितों को आगे रखने की याद आती है। क्या यह छलावा व छद्म राजनीति नहीं? लोग पूछते हैं कि क्या यही है कांग्रेस का दलितों के प्रति वास्तविक प्रेम?'