कृष्णमोहन झा
देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है और इसके साथ ही अब यह भी तय हो गया है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा। अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी घोषणा कर दी है कि पार्टी अध्यक्ष चुने जाने की स्थिति में एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के अनुसार अपने गृह राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। राजस्थान में उनके उत्तराधिकारी का चयन पार्टी हाईकमान के द्वारा किया जाएगा। गौरतलब है कि पार्टी अध्यक्ष अध्यक्ष पद का चुनाव लडने की घोषणा करने के पूर्व अशोक गहलोत ने कोच्चि पहुंच कर राहुल गांधी से अनुरोध किया था कि वे सात राज्यों की प्रदेश कांग्रेस समितियों द्वारा पारित प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए पुनः कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान करें परंतु राहुल गांधी ने साफ कह दिया कि वे प्रदेश कांग्रेस समितियों द्वारा उनके प्रति व्यक्त विश्वास का सम्मान करते हैं परंतु कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा। इसके बाद ही अशोक गहलोत ने कहा कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लडने की घोषणा की। गौरतलब है कि अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए घोषित कार्यक्रम के अनुसार 24से 30 सितंबर तक नामांकन दाखिल किए जा सकते हैं ।8 अक्टूबर नामांकन वापसी की अंतिम तारीख है और यदि आवश्यक हुआ तो 17 अक्टूबर को मतदान कराया जाएगा।19 अक्टूबर को मतगणना होगी और 22 सालों के बाद इस दिन कांग्रेस के अध्यक्ष पद बागडोर ऐसे व्यक्ति के पास आ जाएगी जो गांधी परिवार का सदस्य नहीं होगा परंतु यह भी तय माना जा रहा है कि अध्यक्ष कोई भी बने वह गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान बना रहेगा। फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लडने की इच्छा जिन नेताओं ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से व्यक्त की है उनमें अशोक गहलोत,शशि थरूर, दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी के नाम प्रमुख हैं। इन नेताओं में वर्तमान में अशोक गहलोत गांधी परिवार के सर्वाधिक निकट माने जा रहे हैं और इसीलिए अध्यक्ष पद पर उनके निर्वाचन की संभावनाएं भी सबसे प्रबल प्रतीत हो रही हैं। उधर शशि थरूर ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लडने के संकेत दिए हैं परंतु उन्हें अपने गृहराज्य केरल में ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है ।केरल प्रदेश कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि जब थरूर के नाम पर केरल में ही आम सहमति नहीं है तो शशि थरूर को कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लडने की इच्छा छोड देना चाहिए। दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी के बारे में अभी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वे चुनाव लडने का मन बना चुके हैं। यह भी संभव है कि अशोक गहलोत द्वारा यह चुनाव लडने की स्पष्ट घोषणा कर दिए जाने के बाद वे अपना इरादा बदल दें वैसे भी उन्होंने अभी खुलकर अपनी ऐसी कोई इच्छा व्यक्त नहीं की है। दिग्विजय सिंह को इतना अंदेशा तो अवश्य होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष के इस चुनाव में अशोक गहलोत को गांधी परिवार का परोक्ष आशीर्वाद प्राप्त है। उधर मनीष तिवारी और शशि थरूर पार्टी के उन वरिष्ठ 23 नेताओं में शामिल थे जिन्होंने गत वर्ष सोनिया गांधी को एक संयुक्त पत्र लिखकर पार्टी में पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव की मांग की थी। इन्हीं 23 नेताओं में शामिल रहे गुलाम नबी आजाद अब कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके हैं।
पूर्व कांग्रेसाध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बीच प्रारंभ हुई इस चुनाव प्रक्रिया में गांधी परिवार ने तटस्थ रुख अपना रखा है जिससे सार्वजनिक रूप से यह संदेश जा सके कि किसी व्यक्ति विशेष को पार्टी का नया अध्यक्ष निर्वाचित किए जाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।इसके बावजूद अध्यक्ष पद का चुनाव लडने के इच्छुक नेता सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी से भेंट करने पहुंच रहे हैं। शशि थरूर की सोनिया गांधी से भेंट हो चुकी है और अशोक गहलोत ने राहुल गांधी से भेंट करने के लिए केरल के कोच्चि शहर तक की यात्रा कर ली। इन मुलाकातों से स्वाभाविक रूप से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जाने के बावजूद कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के आभामंडल के दायरे से बाहर नहीं निकल पाएगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक पी चिदंबरम तो कह ही चुके हैं कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद की बागडोर गांधी परिवार के किसी सदस्य के पास न होने पर भी पार्टी में राहुल गांधी विशेष स्थान बना रहेगा। इसका सीधा सा मतलब यही है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष को राहुल गांधी की राय को अहमियत प्रदान करने की बाध्यता स्वीकार करनी होगी। चिदंबरम का मानना है कि कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी की जो स्वीकार्यता है उस पर कोई सवाल खड़े नहीं किए जा सकते। चिदंबरम की बात काफी हद तक सही भी हो सकती है परंतु फिर यह सवाल भी स्वाभाविक है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़कर पार्टी अगर इतनी सीटें भी न जीत पाए कि उसे लोकसभा में मान्यता प्राप्त विपक्षी दल का दर्जा मिल सके तो फिर तो पार्टी को नये नेतृत्व की आवश्यकता से कैसे इंकार किया जा सकता है। यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी ने गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष चुने जाने की पहल की। लगभग दस प्रदेश कांग्रेस समितियों ने उनसे पार्टी के अध्यक्ष पद की बागडोर अपने पास रखने का अनुरोध किया था। अगर राहुल गांधी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया होता तो यह धारणा बनना स्वाभाविक था कि कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद का यह चुनाव मात्र दिखावा था । वैसी स्थिति में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के प्रति बढ़ता आकर्षण भी धुंधला पड़ सकता था।
अब जबकि अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने में संशय की कोई गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है तब राजस्थान में उनके उत्तराधिकारी का चयन भी कांग्रेस के लिए एक और चुनौती साबित हो सकता है। सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे सशक्त दावेदार के रूप में पेश करने की कोशिशों में जुट गए हैं लेकिन उन्हें उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी बनने के लिए उन्हें अशोक गहलोत को मनाना होगा जो यदि सब कुछ सामान्य रहा तो, अगले माह तक कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन हो चुके होंगे अर्थात् पार्टी में सर्वोच्च पद की बागडोर उनके पास होगी इसलिए राजस्थान में मुख्यमंत्री चयन का अधिकार उनके पास होगा। पायलट भी इस हकीकत से भलीभांति परिचित हैं कि वे गहलोत की पहली पसंद शायद ही बन पाएंगे। सुनने में तो यह आ रहा है कि अगर राजस्थान के
नए मुख्यमंत्री का चयन अशोक गहलोत की मर्जी से किया गया तो वे सचिन पायलट के बजाय राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहेंगे। एक विकल्प यह भी हो सकता है कि सचिन पायलट को संतुष्ट करने के लिए उन्हें राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवाज दिया जाए। अशोक गहलोत यह भी कह चुके हैं कि कांग्रेस पार्टी में सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बाद भी राजस्थान से उनका जुड़ाव बना रहेगा।अब यह उत्सुकता का विषय है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब 21 दिनों तक राजस्थान की गलियों से गुजरेगी उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में उनके साथ चलने का सौभाग्य क्या सचिन पायलट अर्जित कर पाएंगे।
कुल मिलाकर 137 पुरानी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद की बागडोर संभालना पार्टी के किसी भी नेता के लिए अपने सिर पर कांटों का ताज धारण करने से कम नहीं होगा । इस साल के अंत में और अगले साल देश के जिन राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं उनमें नए अध्यक्ष के नेतृत्व कौशल, संगठन क्षमता और कार्यशैली की परीक्षा होगी। उसके बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए नए अध्यक्ष के रणनीतिक कौशल का इम्तिहान होगा । आगामी चुनावों में नए अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी का जो प्रदर्शन होगा उसकी तुलना राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को मिली सफलता से की जाएगी। यदि नए अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाबी हासिल करती है तो नए अध्यक्ष को उसका श्रेय गांधी परिवार को देने के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि न ए अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी को मिली सफलता में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से अर्जित लोकप्रियता का योगदान महत्वपूर्ण माना जाएगा और यह कहना ग़लत नहीं होगा कि राहुल गांधी की इस महत्वाकांक्षी पदयात्रा ने पार्टी में उनका कद अध्यक्ष से अधिक ऊंचा कर दिया है।