चारा नहीं, खर्च भी बढ़ गया... जानें पैकेट वाला दूध एक साल में इतना महंगा क्यों हो गया

Updated on 07-02-2023 05:37 PM
नई दिल्ली: दूध के दाम पिछले एक साल में कई बार बढ़ चुके हैं, जिससे आम आदमी के मन में यही सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो दाम में बढ़ोतरी का दौर थम ही नहीं रहा। कंपनियां इसे महंगाई का नाम दे रही हैं मगर ये महंगाई अचानक कैसे आई, यह जानने वाली बात है। दूध के दाम में बार-बार बढ़ोतरी असल में कई मोर्चों पर उठ खड़ी हो रही समस्याओं का इशारा है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कुछ बड़े शहरों में दूध की किल्लत तक बताई जा रही है।

शहरों में दूध की किल्लत : फरीदाबाद शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में दूध की किल्लत बनी हुई है। जिले में भी डिमांड की अनुसार दूध की सप्लाई नहीं हो पा रही है। फरीदाबाद जिले में रोजाना करीब 10 लाख लीटर दूध की मांग है, जबकि उत्पादन पांच लाख 60 हजार लीटर होता है। इसकी आपूर्ति करीब एक लाख से अधिक दूधियों की ओर से की जाती है। दूधिया फरीदाबाद के ग्रामीण क्षेत्र के अतिरिक्त पलवल कोसी, मथुरा से ट्रेनों और फोरव्हीलरों के माध्यम से दूध की आपूर्ति करते हैं। ज्यादातर दूधिया हलवाइयों और कॉलोनियों में आपूर्ति करते हैं, जबकि पॉश इलाकों में डेयरियां दूध की आपूर्ति करती हैं।

डिमांड की तुलना में सप्लाई नहीं


गाजियाबाद जिले में दूध की सप्लाई लगातार घट रही है जबकि डिमांड बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य रूप से एक व्यक्ति को प्रतिदिन 250 ग्राम दूध की आवश्यकता होती है, जबकि जनपद के दूध सप्लाई के आंकड़े देखें तो एक व्यक्ति के हिस्से में 100 ग्राम दूध भी नहीं आ पा रहा है। यह हालत तब है जब यहां 35 से 40 फ़ीसदी लोग पैकेट बंद दूध पर निर्भर हैं।

दूध सप्लायर दाम बढ़ाने की तैयारी में : कंपनियों के दूध के दाम बढ़ाए जाने के बाद अब गुड़गांव में दूध सप्लायरों ने भी दाम बढ़ाने की तैयारी कर ली है। दूध सप्लायर व पशुपालकों का कहना है कि दूध के दाम बढ़ने की वजह पशुओं का चारा एक साल में 30 से 40 फीसदी महंगा होना है। घरों में रोजाना 200 लीटर से ज्यादा दूध सप्लाई करने वाले किशन पाल सिंह का कहना है कि अभी गाय का दूध 55 रुपये और भैंस का दूध 60 रुपये किलो बेचा जा रहा है, जबकि पशुपालक गाय का दूध 44-45 रुपये व भैंस का दूध 48 से 50 रुपये बेच रहे हैं। पशु पालक राम कुमार ने बताया कि दूध के दाम बढ़ाया जाना मजबूरी है। पहले हरा चारा का तूड़ा 250 रुपये का था, जो कि अब 600 रुपये का हो गया है। इसी तरह गेंहू का दलिया 20 रुपये किलो से बढ़कर 30 रुपये किलो हो गया है और बिनौले पहले 35-40 रुपये किलो मिल जाते थे और अब इसका दाम 50-55 रुपये किलो हो गया है।
कंपनियों का बढ़ा खर्च : पैकेटबंद दूध की बात करें तो लखनऊ दुग्ध संघ (पराग) के जीएम डॉ. मोहन स्वरूप कहते हैं कि पिछले महीने तक हम पशुपालकों से 48 रुपये प्रति लीटर के रेट दूध खरीद रहे थे। इसे एक फरवरी से बढ़ाकर 51 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया। इसकी कूलिंग के लिए कलेक्शन सेंटर पर चिलर इंस्टॉल किए जाते हैं। उसके बाद वहां से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च आता है। उसकी दोबारा चिलिंग की जाती है। उसे टोंड किया जाता है। फिर पैकिंग और वितरण तक का खर्च। कुल मिलाकर 14-15 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च आता है। ऐसे में दूध के दाम बढ़ाना हमारी भी मजबूरी है। फुल क्रीम दूध की कीमत 63 से बढ़ाकर हम भी 66 करने जा रहे हैं।

दूध के दाम बढ़ने की वजहें

चारे की कमी : फरीदाबाद जिले में कृषि का रकबा कम होने की वजह से पशुपालन व्यवसाय कम होता जा रहा है। शहरीकरण बढ़ रहा है। पिछले साल फरीदाबाद के 24 गांव नगर निगम में शामिल हो गए। ऐसे में निगम के एरिया में पशु पालन नहीं कर सकते हैं। जिस वजह अब पैकिंग दूध गांवों की ओर पैर पसार रहा है। जिले में इस समय केवल 95 हजार दुधारू पशु बचे हैं। जिनमें 80 हजार के करीब भैंस और 15 हजार के करीब गाय हैं। दोनों पशुओं का प्रतिदिन करीब 5 लाख 60 लीटर दूध उप्ताद होता है।
दुधारू पशुओं की कमी : पशुचिकित्सा अधिकारी महेश कुमार बताते हैं कि गाजियाबाद जिले में करीब 45 हजार गाय और 2.13 लाख भैंस हैं। हालांकि करीब सवा लाख ही दुधारू पशु हैं जिनमें भी 15 से 20 फ़ीसदी पशु विभिन्न बीमारियों या गर्भ धारण करने के कारण दूध नहीं दे पाते हैं।

प्रदूषण भी एक वजह :
 बढ़ते शहरीकरण के कारण सरकारी एजेंसियों ने प्रदूषण को देखते हुए कई तरह की पाबंदियां लगाई हुई हैं। इसके कारण लोग धीरे-धीरे पशुपालन से भाग रहे हैं। गाजियाबाद में कनावनी के रहने वाले पंकज शर्मा डेयरी और नर्सरी दोनों का बिजनेस करते हैं। वह कहते हैं कि बढ़ता शहरीकरण कम होती डेयरियों के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। जब जगह ही नहीं मिलेगी तो पशुपालन कैसे होगा। सरकारी एजेंसियां डेयरियों का कचरा नाले में बहाने नहीं देती हैं। हमारे पास खुली जगह गाजियाबाद में है नहीं तो ऐसे में लोग पशु बेचकर दूसरे व्यवसाय से जुड़ रहे हैं। यदि पशुओं की मृत्यु होती है तो उनका अंतिम संस्कार करने के लिए कोई जगह नहीं मिलती है।

बीमारी में नहीं मिला सहयोग : समसपुर गांव निवासी ओमवीर नागर ने बताया कि दूध से ही उनके परिवार की आजीविका चलती है। उन्होंने बताया कि कई महीने पहले लंपी बीमारी भी गोवंशों में चली थी जिससे उनका भी एक गोवंश बीमार हुआ था। उन्होंने बताया कि करीब 15 हजार रुपये उन्होंने इलाज में लगाया था। सरकार या अन्य कहीं से उनको कोई आर्थिक मदद नहीं मिली थी। काफी मुश्किल से उनका पशु बच पाया लेकिन बीमारी के बाद दूध देना उसने बंद कर दिया है। उसके बावजूद भी उसको घर पर रखकर पाल रहे हैं। दादरी के गढी गांव के पशुपालक बलेराम को दर्द है कि अगर उनकी भैंस बीमार हो जाती है या दूध कम देती है तो नुकसान की कोई भरपाई नहीं है। उनकी शिकायत है कि नामी कंपनी 65 रुपये प्रति लीटर दूध बेचती है लेकिन पशुपालकों से दूध खरीदने के रेट में एक साल के भीतर कोई बढ़ोत्तरी नहीं की है।


भूसे की जमाखोरी की आशंका : कन्नौज और फिरोजाबाद के किसानों ने बताया कि गेहूं कम क्षेत्रफल में बोया गया। जो भूसा हुआ, उसे राजस्थान से आए व्यापारी ले गए। सैकड़ों ट्रक भूसा राजस्थान गया है। इससे भी दाम बढ़े। काकोरी, मलिहाबाद और रहीमाबाद के किसानों ने बताया कि अब फिर से भूसा और चोकर के दाम घटने शुरू हो जाएंगे। इसकी वजह है कि दाम बढ़ते देख लोगों ने उसे जमा कर लिया। अब अप्रैल में नया गेहूं और भूसा आने की उम्मीद को देखते हुए लोग जमा भूसे को निकालना शुरू कर देंगे।

दुधारू जानवर के खाने की लागत

-भूसा 100 रुपये

-8 किलो चोकर 240 रुपये

-1 किलो खली 30 रुपये

-अरहर की चूनी 30 रुपये

-रोज का खाना 400 रुपये

एक अच्छी भैंस रोजाना 10 किलो दूध देती है तो अधिकतम 500 रुपये का हुआ। ऐसे में एक जानवर से 100 रुपये का मुनाफा।

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