प्रणब ढल सामंता
क्या अमेरिका समर्थित तालिबान समझौता अफगानिस्तान-पाकिस्तान में अपना रंग दिखाने लगा है? अभी यह सवाल उठाना शायद जल्दबाजी होगा। लेकिन सच यही है कि जिस पाकिस्तान को इस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की उम्मीद थी, उसी के लिए मुश्किलें खड़ी होती दिख रही हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को काबुल से मिल रहे समर्थन को लेकर वह तालिबानी शासन के खिलाफ रुख कड़ा करता जा रहा है।
पाक को उलटा पड़ा
पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ रणनीतिक मजबूती हासिल करने के लिहाज से काबुल के तालिबानी शासन को अपने लिए उपयोगी मानती रही है। मगर टीटीपी सचमुच इसके लिए बड़ा खतरा साबित हुआ है।
पाकिस्तान को लगता था कि तालिबान के सत्ता में आने से उसे टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करने में आसानी होगी। लेकिन अब तक तालिबान ने टीटीपी के साथ शांति वार्ता ही शुरू की है, जिससे पाकिस्तान को खास फायदा नहीं हुआ है।
पाक इंन्स्टिट्यूट फॉर पीस स्टडीज (पीआईपीएस) की ओर से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यानी अगस्त 2021 से अगस्त 2022 के बीच पाकिस्तान में आतंकी हमलों की संख्या करीब दोगुना हो गई है। ज्यादातर हमले खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हुए हैं। पीआईपीएस के मुताबिक टीटीपी के हमलों में पिछले साल 84 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।
इसी संदर्भ में पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री राणा सनाउल्लाह ने हाल ही में बयान दिया कि इस्लामाबाद, अफगानिस्तान स्थित टीटीपी के कैंपों पर हमले कर सकता है। जवाब में कतर से एक तालिबान लीडर ने सोशल मीडिया पर 1971 में भारतीय फौज के सामने समर्पण करती पाकिस्तानी सेना की तस्वीर पोस्ट की। यह सांकेतिक चेतावनी थी कि अगर पाकिस्तान ने हमला किया तो उसकी क्या स्थिति होगी। इससे एक अलग ही बहस शुरू हो गई, लेकिन जो आरोप पाकिस्तान लगा रहा है, वह बिलकुल वैसा ही है जैसा अशरफ गनी और उनसे पहले हामिद करजई पाकिस्तान पर लगाते थे कि वह अफगानिस्तान में आतंकी हमले करने वालों का अभयारण्य बना हुआ है।
इसी बीच तालिबान शासन ने भारत और ईरान सहित क्षेत्र के तमाम महत्वपूर्ण देशों के साथ बातचीत के चैनल खोल दिए हैं। भारत सरकार ईरान के चाबहार पोर्ट के रास्ते मानवीय सहायता बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। चीन और उज्बेकिस्तान ने भी बातचीत के चैनल स्थापित कर लिए हैं। उधर, तालिबान संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों से अलग से संपर्क स्थापित कर रहा है।अमेरिका से उम्मीद
इनमें से हरेक रियायत भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से खतरा साबित हो सकती है।
पाकिस्तान अमेरिका से न सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर मदद की उम्मीद कर रहा है बल्कि सुरक्षा मसले पर भी कई तरह की रियायत चाहता है :