पाक फिर खेल रहा आतंक का विक्टिम कार्ड

Updated on 12-01-2023 05:25 PM

प्रणब ढल सामंता

क्या अमेरिका समर्थित तालिबान समझौता अफगानिस्तान-पाकिस्तान में अपना रंग दिखाने लगा है? अभी यह सवाल उठाना शायद जल्दबाजी होगा। लेकिन सच यही है कि जिस पाकिस्तान को इस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की उम्मीद थी, उसी के लिए मुश्किलें खड़ी होती दिख रही हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को काबुल से मिल रहे समर्थन को लेकर वह तालिबानी शासन के खिलाफ रुख कड़ा करता जा रहा है।

पाक को उलटा पड़ा

पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ रणनीतिक मजबूती हासिल करने के लिहाज से काबुल के तालिबानी शासन को अपने लिए उपयोगी मानती रही है। मगर टीटीपी सचमुच इसके लिए बड़ा खतरा साबित हुआ है।

पाकिस्तान को लगता था कि तालिबान के सत्ता में आने से उसे टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करने में आसानी होगी। लेकिन अब तक तालिबान ने टीटीपी के साथ शांति वार्ता ही शुरू की है, जिससे पाकिस्तान को खास फायदा नहीं हुआ है।

पाक इंन्स्टिट्यूट फॉर पीस स्टडीज (पीआईपीएस) की ओर से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यानी अगस्त 2021 से अगस्त 2022 के बीच पाकिस्तान में आतंकी हमलों की संख्या करीब दोगुना हो गई है। ज्यादातर हमले खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हुए हैं। पीआईपीएस के मुताबिक टीटीपी के हमलों में पिछले साल 84 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।

  • वैसे भी टीटीपी ‘अफगानिस्तान के अमीर’ के प्रति निष्ठा रखता है। पाकिस्तान का दावा है कि शांति वार्ता के दौरान काबुल ने कई महत्वपूर्ण टीटीपी कमांडर्स को हिरासत से रिहा कर दिया।
  • सच तो यह है कि पाकिस्तान के लिए पिछली अशरफ गनी सरकार ज्यादा फायदेमंद साबित हुई थी, जिसने अफगानिस्तान में अंदरूनी विरोध के बावजूद डूरंड लाइन पर बाड़बंदी करवा दी थी। खुफिया रिपोर्टें बताती हैं कि यह बाड़ कई जगहों पर काफी लंबी दूरियों तक तोड़ दी गई है। पाकिस्तान में सुरक्षा के हालात इतनी तेजी से बिगड़े हैं कि अमेरिका और अन्य देश अपने नागरिकों से वहां जाने की योजनाओं पर पुनर्विचार करने को कह रहे हैं।
  • इसी संदर्भ में पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री राणा सनाउल्लाह ने हाल ही में बयान दिया कि इस्लामाबाद, अफगानिस्तान स्थित टीटीपी के कैंपों पर हमले कर सकता है। जवाब में कतर से एक तालिबान लीडर ने सोशल मीडिया पर 1971 में भारतीय फौज के सामने समर्पण करती पाकिस्तानी सेना की तस्वीर पोस्ट की। यह सांकेतिक चेतावनी थी कि अगर पाकिस्तान ने हमला किया तो उसकी क्या स्थिति होगी। इससे एक अलग ही बहस शुरू हो गई, लेकिन जो आरोप पाकिस्तान लगा रहा है, वह बिलकुल वैसा ही है जैसा अशरफ गनी और उनसे पहले हामिद करजई पाकिस्तान पर लगाते थे कि वह अफगानिस्तान में आतंकी हमले करने वालों का अभयारण्य बना हुआ है।

    इसी बीच तालिबान शासन ने भारत और ईरान सहित क्षेत्र के तमाम महत्वपूर्ण देशों के साथ बातचीत के चैनल खोल दिए हैं। भारत सरकार ईरान के चाबहार पोर्ट के रास्ते मानवीय सहायता बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। चीन और उज्बेकिस्तान ने भी बातचीत के चैनल स्थापित कर लिए हैं। उधर, तालिबान संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों से अलग से संपर्क स्थापित कर रहा है।अमेरिका से उम्मीद

    • पाकिस्तान की सुरक्षा जरूरतों का आकलन आतंक के खिलाफ मुहिम में एक पार्टनर और चीन के साथ संबंधों में एक संभावित पुल के तौर पर उसकी खास भू-राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाए। सीधे शब्दों में इसका मतलब यह है कि अमेरिका उसे न सिर्फ आईएमएफ से बेलआउट पैकेज दिलवाए बल्कि आतंक का मुकाबला करने के लिए उसे सैन्य मदद भी मुहैया कराए।
    • चीन और रूस के खिलाफ लगे प्रतिबंधों से भी उसे छूट दी जाए ताकि वह चीन में बने हथियार हासिल कर सके। ध्यान रहे, बहुत से चीनी सैन्य उपकरण रूस में बने होते हैं। अमेरिका ने उसे एफ-16 की मरम्मत के लिए मदद दे चुका है लेकिन पाकिस्तानी आर्मी के लिए यह काफी नहीं है।
    • भारत को अफगान-पाक मामलों में एक क्षेत्रीय सहयोगी के तौर पर बराबर की अहमियत न दी जाए। वैसे भी अमेरिका तालिबान से समझौतों की बातचीत में भारत को काफी देर से लाया।

    इनमें से हरेक रियायत भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से खतरा साबित हो सकती है।

    • अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान तालिबानी शासन पर किसी भी तरह का समझौता लादता है तो उससे भारत विरोधी आतंकी समूहों के लिए स्पेस बनेगा।
    • भारत के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अमेरिका टीटीपी और लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों में फर्क न देखने लग जाए।
    • चीनी हथियारों पर लगे प्रतिबंधों में किसी तरह की छूट से भारत के लिए एलएसी और एलओसी दोनों मोर्चों पर स्थितियां बदल सकती हैं
    • आपसी समझ का सवालअफगान-पाकिस्तान मोर्चे पर तस्वीर में किसी तरह का बदलाव अमेरिका और भारत के बीच बनी मौजूदा समझदारी को खतरे में डाल सकता है जो फिलहाल चीन को काबू करने और सैन्य साझेदारी विकसित करने के साक्षा लक्ष्यों पर टिकी है। यह मान्यता कि चूंकि पाकिस्तान टीटीपी की बड़ी समस्या से जूझ रहा है, इसलिए उसे आतंकवाद का प्रायोजक नहीं बल्कि विक्टिम माना जाए, और गहरे विचार की मांग करती है। भारत और अमेरिका को इन पहलुओं पर लगातार बातचीत करने की जरूरत है क्योंकि अफ-पाक में जो कुछ भी होता है वह भारत अपेक्षा से ज्यादा तेजी से पहुंचता रहा है।
  • पाकिस्तान अमेरिका से न सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर मदद की उम्मीद कर रहा है बल्कि सुरक्षा मसले पर भी कई तरह की रियायत चाहता है :



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