कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस को रविवार को 5 हफ्ते बाद हॉस्पिटल डिस्चार्ज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने हॉस्पिटल की बालकनी से समर्थकों को धन्यवाद कहा।
88 साल के पोप को फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से 14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका निमोनिया और एनीमिया का इलाज भी चल रहा था।
इलाज के दौरान कैथलिक चर्च के हेडक्वॉर्टर वेटिकन ने बताया था कि पोप की ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में किडनी फेल होने के लक्षण दिख रहे थे। साथ ही प्लेटलेट्स की कमी का भी पता चला था।
इलाज के दौरान दो बार पोप को जान का खतरा था
हॉस्पिटल से निकलने के बाद पोप वेटिकन सिटी में स्थित कासा सांता मार्टा के अपने घर वापस लौटेंगे। शनिवार को उनकी मेडिकल टीम के प्रमुख ने कहा कि फ्रांसिस को वेटिकन लौटने के बाद दो महीने और आराम की जरूरत होगी।
शनिवार को पोप के डॉक्टरों ने कहा कि इलाज के दौरान दो मौकों पर उनकी जान जाने का खतरा था, लेकिन फिलहाल उनकी हालत स्थिर बनी हुई है।
पोप को फिर बोलना सीखना पड़ेगा
वेटिकन के कार्डिनल विक्टर मैनुअल फर्नांडीज ने शुक्रवार को बताया था कि पोप फ्रांसिस धीरे-धीरे अपनी ताकत हासिल कर रहे हैं, लेकिन लंबे वक्त तक हाई फ्लो ऑक्सीजन थेरेपी की वजह से उन्हें फिर बोलना सीखना पड़ेगा।
हाई फ्लो ऑक्सीजन की वजह से कई बार इंसान का मुंह और गला सूख जाता है, जिससे बोलने में दिक्कत होती है। इसके अलावा हाई फ्लो ऑक्सीजन से सांस लेने में दिक्कत या सीने में दर्द जैसी समस्या हो सकती है।
वेटिकन के मुताबिक इलाज के दौरान भी पोप हॉस्पिटल से काम कर रहे थे। इससे पहले भी पोप फ्रांसिस को 2021 में डायवर्टीकुलिटिस और 2023 में हर्निया की सर्जरी की वजह से हॉस्पिटल जाना पड़ा था।
1000 साल में पोप बनने वाले पहले गैर-यूरोपीय
पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना के एक जेसुइट पादरी थे, वो 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप बने थे। उन्हें पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उत्तराधिकारी चुना गया था। पोप फ्रांसिस बीते 1000 साल में पहले ऐसे इंसान थे जो गैर-यूरोपीय होते हुए भी कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च पद पर पहुंचे।
पोप का जन्म 17 दिसम्बर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। पोप बनने से पहले उन्होंने जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो नाम से जाना जाता था। पोप फ्रांसिस के दादा-दादी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से बचने के लिए इटली छोड़कर अर्जेंटीना चले गए थे। पोप ने अपना ज्यादातर जीवन अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में बिताया है।
वे सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट्स) के सदस्य बनने वाले और अमेरिकी महाद्वीप से आने वाले पहले पोप थे। उन्होंने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की थी। साल 1998 में वे ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बने थे। साल 2001 में पोप जॉन पॉल सेकेंड ने उन्हें कार्डिनल बनाया था।