क्या होता है अल नीनो
दरअसल, अल नीनो का प्रयोग प्रशांत महासागर के सतह के ऊपर तापमान में होने वाले बदलाव से संबंधित है। प्रशांत महासागर के सतह पर होने वाले बदलाव का असर दुनियाभर में मौसम पर पड़ता है। अल नीनो से तापमान गर्म होता है जबकि ला नीना के कारण तापमान ठंडा होता है। प्रशांत महासागर इलाके में बदलते तापमान के असर को अल नीनो के रूप में जाना जाता है। इसके कारण समुद्री सतह का तापमान 5 डिग्री तक बढ़ सकता है।
मार्च तक ला नीना का असर
ताजा मानसून मिशन कपल्ड फोरकास्ट सिस्टम (MMCFS) के आंकड़े के अनुसार, ला नीना का असर जनवरी से मार्च तक रहेगा। इससे पता चलता है कि इंडियन ओसेन डाइपोल (IOD) में स्थितियां सामान्य रहेंगी। गौरतलब है कि MMCFS में समुद्र, पर्यावरण और सतह से डेटा लेकर लंबी अवधि की मौसम भविष्यवाणी की जाती है।
जुलाई से सितंबर तक अल नीनो बरपाएगा कहर!
MMCFS की भविष्यवाणी के आधार पर भारतीय मौसम विभाग ने संकेत दिया है कि देश में जुलाई से लेकर सितंबर तक अल नीनो का असर रह सकता है। ये मानसून का सीजन होता है। मौसम विभाग के महानिदेशक एम महापात्रा ने बताया कि अल नीनो जुलाई से अगस्त बीच आता दिख रहा है। लेकिन अभी काफी समय है तो ऐसे में सटीक भविष्यवाणी अभी नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमें अभी साफ तस्वीर के लिए कुछ और इंतजार करना चाहिए।
अल नीनो के कारण पिछले साल पड़ी थी भीषण गर्मी
ताजा रिसर्च से संकेत मिलता है पिछले साल अल नीनो और ला नीना के कारण अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक ठंड पड़ी थी। उत्तर भारत में पिछले साल गर्मियों के सीजन में दिन और रात में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया था। अल नीनो का मौसम पर बड़ा असर पड़ता है। जैसे अत्यधिक बारिश, बाढ़ या सूखे जैसी स्थिति आ जाती है। भारत में अल नीनो का असर सूखा और कमजोर मानसून के रूप में देखा जाता है।
केंद्रीय पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्री एम राजीवन ने कहा कि अल नीनो का आना चिंता की बात है और इससे मानसून कमजोर हो सकता है। ये हमारे मानसून के लिए अच्छी खबर तो नहीं है। लेकिन हम इस बारे में मार्च-अप्रैल तक ही कुछ बता पाएंगे। 2016, 2019 और 2020 साल अबतक के सबसे गर्म साल रहे हैं। सबसे ज्यादा अल नीनो का असर 2016 में पड़ा था।