कृष्णमोहन झा/
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हमेशा ही अपने भाषणों में देश की प्रगति के लिए सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भाव के माहौल को पहली आवश्यकता बताया है। गौरतलब है कि विगत दिनों उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर दो टूक लहजे में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की मानसिकता का हमें परित्याग करना चाहिए। भागवत ने मंदिर मस्जिद विवादों को आपसी बातचीत से सुलझाने पर जोर दिया था। संघ प्रमुख ने धर्म ससद में साधु-संतों द्वारा दिए गए कथित आपत्तिजनक बयानों से असहमति जताते हुए उसे हिंदुत्व के खिलाफ बताया था। संघ प्रमुख ने अयोध्या विवाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद यहां तक कहा था कि संघ अब किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेगा। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि देश में भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव का निर्मित करने में सरसंघचालक मोहन भागवत के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। इस दिशा में समय समय पर मोहन भागवत ने जो विचार व्यक्त किए हैं उसका मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने जिस तरह तहे दिल से स्वागत किया है उससे यही संदेश मिलता है कि मोहन भागवत हमेशा ही अपने भाषणों में जिस हिंदुत्व की चर्चा करते हैं वह सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करता है। निश्चित रूप से संघ प्रमुख अपने विचारों से मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतने में सफल रहे हैं। विगत माह नई दिल्ली में मोहन भागवत से मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक प्रतिनिधिमंडल की सार्थक को भी इसी भरोसे का परिचायक कहना ग़लत नहीं होगा। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ हुई इस बैठक के पहले भी संघ प्रमुख की मुस्लिम नेताओं से भेंट हो चुकी है ।उस समय चर्चा का मुख्य विषय रही था कि देश में सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द्र के वातावरण को और मजबूती प्रदान करने के लिए किस तरह की पहल की जानी चाहिए। विगत माह नई दिल्ली में संघ प्रमुख के चर्चा पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों के प्रतिनिधि मंडल ने जो संतोष व्यक्त किया है उससे यह संदेश भी मिलता है कि सांप्रदायिक सौहार्द्र के संबंध में संघ प्रमुख के विचारों का मुस्लिम बुद्धिजीवियों के लिए विशेष महत्व है । यह निश्चित रूप से हर्ष का विषय है कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों और संघ प्रमुख के बीच विचारों के आदान-प्रदान का यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि सकारात्मक माहौल में हुए सार्थक संवाद से अनुकूल परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। इसी भावना से प्रेरित होकर देश के प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने गत माह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को एक पत्र लिखकर उनसे मुलाकात के लिए समय प्रदान करने का आग्रह किया था। मोहन भागवत के साथ बातचीत के लिए पहुंचे मुस्लिम बुद्धिजीवियों के प्रतिनिधिमंडल में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और सेवा निवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और समाज सेवी सईद शेरवानी शामिल थे। बैठक में भाजपा के पूर्व महासचिव रामलाल की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही। संघ प्रमुख ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद हाल में ही अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डा.उमर अहमद इलियासी से भी मुलाकात की । यह मुलाकात नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद में हुई जिसमें संघ प्रमुख के साथ संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार और रामलाल भी मौजूद थे। लगभग एक घंटा चली इस बैठक में भागवत के सद् विचारों से अभिभूत
उमर इलियासी द्वारा उन्हें राष्ट्र ॠषि और राष्ट्र पिता का संबोधन देना भागवत के प्रति देश के मुस्लिम समुदाय के लोगों के गहरे स्नेह और आदर भाव को प्रदर्शित करता है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि संघ प्रमुख मोहन भागवत अपनी संवेदनशीलता और विशालहृदयता से देश के मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतने में सफल हुए हैं। उमर इलियासी और भागवत के बीच भेंटवार्ता के दौरान राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार की उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भागवत से बातचीत के बाद उमर अहमद इलियासी के भाई सुहैब इलियासी ने कहा कि संघ प्रमुख मोहन भागवत को हम लोगों ने अपने स्वर्गीय पिता की पुण्यतिथि पर आमंत्रित किया था। उनके यहां आने पर हमारे बीच जो सार्थक चर्चा हुई उससे देश में अच्छा संदेश गया है। हमारे बीच इस बात पर पूरी सहमति थी कि देश की प्रगति के सांप्रदायिक सौहार्द्र का माहौल जरूरी है। अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि मंडल और अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख की सरसंघचालक से भेंट को संवाद की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा बताते हुए कहा है कि संघ प्रमुख देश के हर वर्ग के लोगों से मिलते हैं
देश में सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द्र के माहौल को और मजबूती प्रदान करने की मंशा से मुस्लिम बुद्धिजीवियों और अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख की संघ प्रमुख मोहन भागवत से पिछले दिनों हुई मुलाकातों का यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की संभावनाओं ने समाज की उन ताकतों को परेशान कर रखा है जिन्हें देश में आपसी भाईचारे और अमन चैन कायम करने की दिशा में ऐसी मेल मुलाकातों के सार्थक परिणाम सामने आने की चिंता सताने लगी है। इसका प्रमाण केंद्रीय ए आई एम आई एम प्रमुख असद्दुदीन ओबैसी का वह बयान है जो उन्होंने मुस्लिम बुद्धिजीवियों और अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात के बाद दिया। उक्त मुलाकातों के निष्कर्षों का स्वागत करने के बजाय ओबैसी ने उन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है जिसने ओबैसी की कुंठा को उजागर कर दिया है। मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ संघ प्रमुख की सौहार्द्र पूर्ण माहौल में हुई बातचीत से ओबैसी की इस बेचैनी की असली वजह यह है कि उन्हें अब अपनी वह राजनीति खतरे में पड़ती दिखाई देने लगी है। ओबैसी का यह कहना कि मुस्लिम समुदाय का जो पढ़ा लिखा तबका है वह अपने को ज्ञानी समझता है, उसे जमीनी हकीकत का पता ही नहीं है ,यह साबित करता है कि उनकी लिए राजनीति में शिक्षा कोई मायने नहीं रखती। दरअसल ओबैसी को इस तरह की मेल मुलाकातों से हमेशा केवल इसलिए परहेज़ रहा है क्योंकि इनसे सद्भाव और सौहार्द्र के माहौल को मजबूती प्रदान करने में मदद मिलती है।ओबैसी चाहते तो वे भी संघ प्रमुख से मुलाक़ात के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर सकते थे। संघ प्रमुख ने तो हमेशा ही यह कहा है कि किसी भी समस्या का समाधान संवाद के जरिए किया जा सकता है इसलिए संवाद की प्रक्रिया निरंतर जारी रहना चाहिए। ओबैसी के लिए भी बातचीत के दरवाजे खुले हुए हैं परंतु इसके लिए उन्हें वैसी ही पहल करनी होगी जैसी पहल मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों की थी ।