आदिम जन जातियों का संरक्षण (वृक्षों में हित) अधिनियम 1999 के प्रावधानों का किया गया सरलीकरण

Updated on 16-09-2022 05:33 PM
छत्तीसगढ़ आदिम जनजातियों का संरक्षण (वृक्षों में हित) अधिनियम 1999 की जटिलताओं को दूर करते हुए नया संशोधित अधिनियम 2022 तैयार किया गया है। इस संशोधन के माध्यम से अधिनियम को वर्तमान समय के अधिक प्रासंगिक और व्यावहारिक रूप दिया गया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर इससे अब छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को अपनी जमीन या खेत पर स्थित वृक्षों को काटने और इसके विक्रय की राशि बैंकों से आहरित करने के संबंध में पहले की अपेक्षा अधिक अधिकार और सुविधा मिल गया है।

 पुराने अधिनियम के कारण आदिवासियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, जिससे उनके समय और पैसों की बबार्दी होती थी। कई बार सूखे वृक्ष के काटने की अनुज्ञा समय पर न मिल पाने के कारण आंधी, तूफान, बारिश से वृक्ष के गिरने पर आदिवासियों के घर भी क्षतिग्रस्त हो जाते थे और उन्हें आर्थिक क्षति भी पहुंचती थी। संशोधित अधिनियम में इन दिक्कतों को दूर किया गया और वृक्ष कटाई से संबंधित नियमों का सरलीकरण किया गया है। नये नियमों से आदिवासी समुदाय को काफी राहत मिलेगी। आदिवासी समाज ने अपने हित में किए गए इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया है।

संशोधित अधिनियम 2022 के अनुसार अब आदिवासियों को अपनी जमीन या खेतों में वृक्ष कटाई की अनुज्ञा संबंधित क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) से लेनी होगी जबकि पहले अनुज्ञा देने का अधिकार जिला कलेक्टर के पास था। इसी प्रकार अब अनुज्ञा देने से पूर्व वन एवं राजस्व विभाग द्वारा संयुक्त निरीक्षण का प्रावधान रखा गया है। जबकि पुराने अधिनियम में अनुज्ञा लेने की प्रक्रिया में वन विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा कई बार स्थल जांच करने का कठिन प्रावधान था। पूर्व अधिनियम के तहत पहले एक वर्ष में मात्र रूपए 50 हजार रूपए मूल्य की लकड़ी काटी जा सकती थी। अब संशोधित अधिनियम में वित्तीय सीमा समाप्त कर दी गई है। पहले के अधिनियम के तहत वृक्षों की कटाई के पश्चात् लकड़ी के कीमत का भुगतान कलेक्टर एवं भूमिस्वामी के संयुक्त बैंक खाता में किया जाता था। अब लकड़ी की कीमत का भुगतान भूमिस्वामी के बैंक खाता में सीधे किया जाएगा।

पुराने अधिनियम के अनुसार संयुक्त खाता से एक माह में मात्र रूपए 5 हजार रूपए की राशि भूमिस्वामी आहरित कर सकता था तथा राशि आहरण हेतु कलेक्टर से हस्ताक्षर प्राप्त करने में अत्यधिक समय लगता था। लेकिन संशोधित अधिनियम के अनुसार अब भूमिस्वामी अपने बैंक खाते का स्वविवेक से उपयोग कर सकता है। पूर्व अधिनियम के तहत कटाई की अनुज्ञा एवं राशि के आहरण के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं थी। अब नये नियमों द्वारा समय-सीमा का प्रावधान रखा गया है।


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