पूर्णिमा से अमावस्या तक चांद के घटने बढ़ने के आठ चरण होते हैं, जो हर 29.5 दिन में दोहराए जाते हैं। चंद्रमा सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है और जब प्रकाश चांद के पिछले हिस्से पर पड़ता है तो यह नहीं दिखता। इस घटना को अमावस्या या न्यू मून कहते हैं। वहीं जब प्रकाश ऐसा पड़े कि पूरा चांद चमकता हुआ दिखे तो वह पूर्णिमा कहलाता है। अर्थस्काई वेबसाइट के मुताबिक इस साल चार बार ऐसे मौके आएंगे जब चांद पृथ्वी के करीब होगा और पूर्णिमा भी रहेगी। इनमें से पहला 2-3 जुलाई को देखा गया था। दूसरा मौका एक अगस्त को आया है। सुपरमून देखने का तीसरा मौका 30-31 अगस्त को मिलेगा। और आखिरी सुपरमून 28-29 सितंबर को दिखेगा।
क्यों होता है सुपरमून
सुपरमून शब्द 1979 में खगोलविद् रिचर्ड नोल ने दिया था। यह शब्द उस बिंदु को दिखाने के लिए गढ़ा गया था, जब पूर्णिमा के दौरान चांद पृथ्वी के सबसे करीब हो। लेकिन चांद दूर या नजदीक कैसे हो सकता है? दरअसल चांद हमारी पृथ्वी का चक्कर लगाता है, लेकिन यह पूरी तरह गोल न होकर अंडाकार होगा है। इस कारण से चांद और पृथ्वी के बीच की दूरी बदलती रहती है। एक अगस्त को चांद पृथ्वी से 357,530 किमी दूर होगा। पृथ्वी से चांद की दूरी 3.6 लाख किमी से 4 लाख किमी तक बदलती रहती है।
कब लगेगा चंद्रग्रहण
चांद पृथ्वी पर समुद्र में लहरों को कम ज्यादा कर सकता है। नासा के मुताबिक सुपरमून के दौरान समुद्री लहरों की तीव्रता बढ़ सकती है। हालांकि चांद से जुड़ी एक खगोली घटना चंद्रग्रहण होती है। साल 2023 में 2 चंद्रग्रहण है। पहला चंद्रग्रहण 5 मई को देखा गया था।
नासा के मुताबिक अगला चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर 2023 को दिखेगा। यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में इसे देखा जा सकेगा।