कश्मीर की महारानी को वासना की ऐसी भूख कि बेटों को मरवाया...क्या यह हिंदू रानी दिद्दा को बदचलन बताने की कोशिश

Updated on 25-09-2024 12:21 PM
नई दिल्ली: 'वो लंगड़ी रानी जिससे किसी को एक कदम पार करने की उम्मीद नहीं थी, उसने तमाम विरोधों को ऐसे लांघ डाला जैसे कभी हनुमान ने समुद्र लांघा था।' कश्मीर का चर्चित इतिहास राजतरंगिणी लिखने वाले कल्हण ने कश्मीर की महारानी दिद्दा के बारे में ये आखिरी टिप्पणी की थी। कश्मीर जितना खूबसूरत उतना ही खूबसूरत इसका इतिहास भी। महारानी दिद्दा के बारे में कल्हण लिखते हैं कि वो कश्मीर की सबसे शक्तिशाली शासक थी। उसके खौफ से पड़ोसी राजा भी डरते थे। वह शासन चलाने के लिए साम-दाम, दंड और भेद चारों का इस्तेमाल करना जानती थी। उसने मर्दों की बिरादरी में खुद का वर्चस्व बनाए रखा। वह भी कम समय के लिए नहीं, बल्कि 40 साल तक कश्मीर के सिंहासन पर विराजमान रही। जानते हैं उसी दिद्दा की अनकही कहानी।

चुड़ैल रानी के नाम से इतनी पॉपुलर क्यों हुई


इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, रानी दिद्दा को पुरुष सरदार इतने नापसंद करते थे कि वह उन्हें चुड़ैल और बदचलन तक कहने लगे थे। इसी से दिद्दा का नाम चुड़ैल रानी भी पड़ गया। दिद्दा को अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमताओं की वजह से कुछ इतिहासकार उन्हें रूस के जारशाही के दौर में प्रभावशाली रानी रही कैथरीन के नाम पर कैथरीन रानी भी कहते हैं। दिद्दा अपने दिल से ज्यादा दिमाग से काम लेती थीं और किसी पर भी भरोसा नहीं करती थीं। दानपाल सिंह कहते हैं कि चूंकि, बाद में मुस्लिम शासन का दौर शुरू हुआ तो कश्मीर के इतिहास से काफी छेड़छाड़ की गई। दिद्दा को चुड़ैल और बदचलन बताने की कोशिश की गई, जो सही नहीं है।

एक पैर खराब तो हाथ में पहनतीं लोहे का कवच


कल्हण के अनुसार, दिद्दा लोहार वंश की थी, जो अब पुंछ के लोहरिन समुदाय के रूप में जानी जाती है। वह लोहार वंश के सिंहराज की खूबसूरत बेटी थी। हालांकि, उसका एक पैर खराब था, जिस वजह से वह लंगड़ाकर चलती थी। कल्हण उसे चरणहीन कहता है। वह अपने साथ हमेशा वाल्गा नाम की एक लड़की को रखती थी, जो उसे चलने-फिरने में मदद करती थी। उसी के नाम पर बाद में दिद्दा ने वाल्गा मठ बनवाया था। दिद्दा अपने एक हाथ में हर वक्त लोहे का कवच बंधा रहता था।

जब कश्मीर का राजा दिद्दा के दिमाग का हुआ मुरीद


इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, कश्मीर का एक राजा था क्षेमेंद्र गुप्त, जिसके बारे में कहा जाता था कि वह औरतों में दिलचस्पी रखता था। जुआ खेलता था और खासतौर पर सियार का शिकार करता था। वह चाहता था कि वह ऐसी महिला को अपनी रानी बनाए, जो दिमागदार हो। ऐसे में जब उसने दिद्दा के बारे में सुना तो उसने उसके विकलांग होने के बाद भी उससे शादी का प्रस्ताव रखा। 950 ईस्वी में दिद्दा की शादी हो गई तो वह श्रीनगर आई।

जब कश्मीर के राजशाही सिक्के पर आया दिद्दा का नाम


दानपाल सिंह के अनुसार, दिद्दा के दिमाग और खूबसूरती पर फिदा क्षेमेंद्र ने शासन-प्रशासन में अपनी रानी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। दिद्दा का क्षेमेंद्र पर इतना असर पड़ा कि उसने राजशाही सिक्कों पर भी दिद्दाक्षेमा नाम खुदवाना शुरू कर दिया। हालांकि, इसी बात ने कश्मीर के बाकी सरदारों को दिद्दा का दुश्मन बना दिया।

कश्मीरी राजा के मरने के बाद नहीं हुईं सती


958 ईस्वी में एक समय क्षेमेंद्र सियार का शिकार करने निकले। उसी वक्त कश्मीर में एक बुखार कहर बरपा रहा था। क्षेमेंद्र भी उसकी चपेट में आ गए। उन्हें बारामुला, जिसे तब वाराहमुला कहा जाता था वहां के क्षेमा मठ ले जाया गया। हालांकि, वहां पर उनकी मौत हो गई। दिद्दा ने फौरन साजिश, धोखे के बीच अपने बेटे को किसी अज्ञात जगह पर लेकर गई। दिद्दा पर सती होने का दबाव भी डाला गया, मगर वह इन पैंतरों से घबराई नहीं। उन्होंने अपने बेटे अभिमन्यु को कश्मीर का ताज पहनाया और शासन की बागडोर बतौर संरक्षक के रूप में अपने हाथ ले ली।

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