नई दिल्ली : इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने कहा है कि चंद्रयान-3 मिशन इस हफ्ते की शुरुआत में पृथ्वी से निकलने के बाद 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। इस मिशन की सफलता एक अहम चरण पर निर्भर करती है- अंतरिक्ष यान का चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करना। इस बेहद सावधानीपूर्वक और पूरी तरह प्लैन्ड स्टेप में स्पेसक्राफ्ट की रफ्तार को कम किया जाता है ताकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इसे स्थिर चंद्र कक्षा या लूनर ऑर्बिट में खींच सके।
अगर चंद्रयान-3 चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की पकड़ में आने में विफल रहता है तो इसके परिणाम 'निराश करने वाले' हो सकते हैं। स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण चंद्रमा से दूर जा सकता है या उसकी सतह से टकरा सकता है। अगर अंतरिक्ष यान दूर गया तो यह पृथ्वी के चारों ओर एक अंडाकार कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। इस अंडाकार पथ पर स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के निकटतम बिंदु (perigee) और दूरस्थ बिंदु (apogee) के बीच दोलन करता हुआ दिखाई देगा।
कैसे करेगा पृथ्वी की ओर वापसी?
पृथ्वी की ओर चंद्रयान-3 की वापसी यात्रा दोनों खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बलों से प्रभावित होगी। अगर अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह के बहुत करीब परिक्रमा करता है, तो चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल इसके दुर्घटनाग्रस्त होने का कारण बन सकता है। अगर यह सैटेलाइट चंद्रमा से बहुत दूर हुई तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल इसको खींच लेगा और इसे चंद्रमा से बेहद दूर फेंक देगा। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के बिना, सैटेलाइट अंतरिक्ष में तैरती रहेगी।
चंद्रयान-3 के लिए सबसे मुश्किल घड़ी
ऐसी स्थिति में ISRO अंतरिक्ष यान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने और इसे पृथ्वी पर वापस लाने का प्रयास करेगी। पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश का चरण बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें सटीक गणना और सही समय का सबसे बड़ा योगदान है। कोई भी गलत अनुमान चंद्रयान-3 के अंतरिक्ष में गुम होने या चंद्रमा या पृथ्वी से टकराने का कारण बन सकता है। अगर यह अंतरिक्ष में गुम हुआ तो मिशन को 'फेल' घोषित कर दिया जाएगा क्योंकि इसे दोबारा चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए पर्याप्त ईंधन नहीं होगा।