भारत और चीन के बीच अगर हो गई दोस्‍ती तो क्‍या होगा? विशेषज्ञ बोले-परेशान हो जाएगा अमेरिका

Updated on 20-07-2023 01:29 PM
बीजिंग: भारत और चीन दो ऐसे देश जिनके बीच सीमा पर अक्‍सर विवाद रहता है। सन् 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी सीमा विवाद की वजह से लड़ा जा चुका है। अब ब्रिटेन की वीकली मैगजीन द इकोनॉमिस्‍ट ने अपने एक आर्टिकल में उन संभावनाओं का जिक्र किया गया है जो दोनों देशों के बीच दोस्‍ती के बाद पैदा हो सकती है। इस आर्टिकल की मानें तो दोनों देशों की तेजी से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था अमेरिका और उसके साथी देशों के लिए बड़ी मुसीबतें पैदा कर सकती है। इकोनॉमिस्‍ट ने अपने आर्टिकल में दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों का भी जिक्र किया गया है।

अमेरिका के लिए मुसीबत
इकोनॉमिस्‍ट का आर्टिकल जिसका टाइटल है, 'व्‍हाट इफ चाइना एंड इंडिया बीकेम फ्रेंड्स' में लिखा है कि चीन के शासक अक्‍सर ही भारत को नीची दृष्टि से देखना पसंद करते हैं। वो इसकी अशांत राजनीति, इसके चरमराते बुनियादी ढांचे और इसकी गरीबी की वजह से इसका तिरस्कार करते आए हैं। भारत ने भी एक डर और ईर्ष्या के साथ उस पर नजर डाली है। साथ ही यह उम्‍मीद भी है कि भारत के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाएगा। इस लेख की मानें तो अब हिमालय पार संबंधों की परिभाषा अब बदल रही है। हाल ही में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर खूनखराबा भी बढ़ा है और यह दुश्‍मनी की तरफ इशारा करता है। लेकिन यह भी सच है कि बढ़ते आर्थिक संबंध एक अलग कहानी बयां कर रहे है। यह कहानी अमेरिका और उसके सहयोगियों को परेशान कर सकती है।
बदल रही है स्थिति
इकोनॉमिस्‍ट ने अपने लेख में अप्रैल 1924 में सम्‍मानिक कव‍ि रविंद्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा और उन्‍हें मिले नोबेल पुरस्‍कार का जिक्र भी किया है। इसके मुताबिक उस समय चीनी बुद्धिजीवी प्रभावित नहीं हुए थे। करीब एक सदी के बाद चीनी अधिकारियों और विद्वानों के बीच अभी भी भारत के लिए तिरस्कार की भावना है। मगर अब भारत ने उन्‍हें गलत साबित करना शुरू कर दिया है। सन् 1947 में आजादी के समय भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी, चीन से ज्‍यादा थी। लेकिन सन् 1990 के दशक की शुरुआत तक चीन उस और बाकी कई उपायों पर आगे बढ़ चुका था। साल 2022 तक उनकी आबादी लगभग बराबर थी लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था तीन गुना से भी ज्‍यादा बड़ी थी।

अमेरिका के लिए नहीं होगा ठीक
इकोनॉमिस्‍ट का कहना है कि टकराव और आर्थिक मोर्चे पर चीन के आगे होने के बाद भी चीन-भारत संबंधों के बुनियादी सिद्धांत अब कई तरीकों से बदल रहे हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और इसकी सबसे बड़ी निरंकुशता को पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि वे एक-दूसरे के साथ और बाकी दुनिया के साथ कैसे व्यवहार करते हैं। दोनों देशों के बीच दोस्‍ती की संभावना अमेरिकियों और बाकी ऐसे लोगों को खुश नहीं कर सकती जो भारत को चीन के जवाब के तौर पर देखते हैं। न ही यह वह बात है जो टैगोर के मन में 1924 में थी। उन्होंने उस समय चीन से पश्चिमी भौतिकवाद को ठुकराने का आग्रह किया था। लेकिन यह एशिया के दिग्गजों के बीच एक स्थायी, पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की दिशा में अधिक यथार्थवादी रास्‍ता हो सकता है।

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