दिल्ली में रहने वालीं लावण्या नवंबर, 2021 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थीं। तीन महीने बाद खबरें आने लगीं कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है। आधा फरवरी बीत गया, लेकिन सब नॉर्मल था। फिर भी लावण्या ने 24 फरवरी की फ्लाइट टिकट बुक करवा ली।
लावण्या की यूनिवर्सिटी से कीव एयरपोर्ट तक 12 घंटे का सफर है। वे एयरपोर्ट से सिर्फ 10 किमी दूर थीं, तभी खबर मिली कि रूस की सेना यूक्रेन में घुस गई है। एयरपोर्ट पर भी अटैक हुआ है। इस वजह से फ्लाइट कैंसिल हो गई।
रूस-यूक्रेन जंग शुरू होते ही लावण्या और उनके जैसे करीब 20 हजार स्टूडेंट्स के लिए सब कुछ बदल गया। सभी को पढ़ाई अधूरी छोड़कर भारत आना पड़ा। पढ़ाई महंगी होने की वजह से भारत में पढ़ नहीं सकते थे, इसलिए कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और जॉर्जिया जैसे देशों में एडमिशन ले लिया।
अब जंग को 3 साल पूरे हो गए हैं। यूक्रेन से लौटे स्टूडेंट कहां हैं, सरकार ने करियर के लिए उनसे वादे किए थे, वे कितने पूरे हुए, आगे की पढ़ाई का क्या हुआ, इस पर दैनिक भास्कर ने स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स से बात की।
यूक्रेन में पढ़ाई छूटने से 10 लाख का नुकसान, अब उज्बेकिस्तान में पढ़ रहीं लावण्या सचदेवा यूक्रेन में मेडिकल में फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही थीं। वे कहती हैं, ‘मैंने 11वीं में ही तय कर लिया था कि डॉक्टर बनूंगी। नीट का एग्जाम दिया, लेकिन सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए 600 से ज्यादा नंबर चाहिए थे।’
‘भारत में प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाई पर करीब 1 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। मैंने और पेरेंट्स ने तय किया कि मुझे बिना ड्रॉप लिए दूसरे देश में जाकर मेडिकल की पढ़ाई करनी चाहिए। यूक्रेन में 25-30 लाख में पढ़ाई हो जाती है। मेरा कजन वहां पढ़ रहा था। मैं उसके गाइडेंस में यूक्रेन चली गई।’
हमले वाले दिन को याद कर लावण्या बताती हैं, ‘24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया। इससे एक दिन पहले मैं यूनिवर्सिटी से कीव एयरपोर्ट के लिए निकली थी। एयरपोर्ट सिर्फ 10 किमी दूर था कि पता चला हमला शुरू हो गया है। फ्लाइट कैंसिल हो गई, तो मैं भारत नहीं आ पाई।’
‘मैंने कुछ दोस्तों से मदद मांगी और वापस यूनिवर्सिटी चली गई। मैं जहां रुकी थी, वहां से हंगरी का बॉर्डर सबसे करीब है। रास्ते में यूक्रेन के सैनिक फायरिंग कर रहे थे। स्टूडेंट के साथ बदतमीजी कर रहे थे। इसलिए मैं रोमानिया के बॉर्डर चली गई। यहां 24 घंटे इंतजार किया। बॉर्डर पार करने के बाद बस से एक होटल पहुंची। 3 दिन बाद एयर इंडिया की फ्लाइट से भारत आ गई।’
‘मैं जिन हालात में यूक्रेन से लौटी थी, उसके बाद पेरेंट्स दूसरे देश पढ़ाई के लिए भेजने से डर रहे थे। हमारे एजेंट ने सलाह दी कि मैं उज्बेकिस्तान में ट्रांसफर लेकर पढ़ाई कर सकती हूं। इसके बाद मैंने उज्बेकिस्तान में एडमिशन ले लिया। अभी थर्ड ईयर में हूं।’
मैंने यूक्रेन में सिर्फ 3 महीने पढ़ाई की। पढ़ाई छूटने से करीब 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ। 7 लाख रुपए वीजा, प्रोसेसिंग फीस और 3 लाख रुपए यूनिवर्सिटी की फीस थी। इसके अलावा 1-2 लाख रुपए खर्च भी हो गए।
‘जितनी परेशानी हुईं, नुकसान हुआ, उसके बाद मैं चाहती थी कि सरकार भारत में ही किसी मेडिकल कॉलेज में एडजस्ट करा दे। यूक्रेन में मेरे साथ पढ़ने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स ने सेंट्रल एशिया के देशों जैसे कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान में एडमिशन ले लिया। सरकार ने स्टूडेंट्स की मदद नहीं की। सभी को करियर के बारे में खुद फैसला लेना पड़ा।’
जंग शुरू हुई तब फिफ्थ ईयर में थे, अब भारत में इंटर्नशिप कर रहे यूक्रेन पर रूसी हमले के वक्त प्रणव उझहोरोड नेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। उनका 5वां साल था। वेस्टर्न बॉर्डर पर बसा उझहोरोड राजधानी कीव से 800 किलोमीटर दूर है। यहां से स्लोवाकिया और हंगरी की सीमा लगती है।
सरकार की एडवाइजरी के बाद प्रणव ने 27 फरवरी, 2022 को भारत आने के लिए कीव से फ्लाइट टिकट बुक कराई थी। उससे पहले ही यूक्रेन ने एयरस्पेस बंद कर दिया। फ्लाइट कैंसिल हो गई। प्रणव भारत सरकार के रेस्क्यू ऑपरेशन में अपनी बारी आने का इंतजार करने लगे। लोगों को बस से दूसरे देशों तक भेजा जा रहा था, जहां से फ्लाइट मिलनी थी। प्रणव रोज जाने वालों की लिस्ट में अपना नाम देखते थे।
2 मार्च को आई लिस्ट में प्रणव का नाम आ गया। करीब 12-14 घंटे बॉर्डर पर रहने के बाद बस से उन्हें और दूसरे स्टूडेंट्स को हंगरी पहुंचाया गया। दो दिन बाद बुडापेस्ट से फ्लाइट लेकर वे भारत लौटे।
प्रणव कहते हैं, ‘उम्मीद नहीं थी कि आगे पढ़ाई हो पाएगी। देश ही नहीं बचेगा, तो पढ़ाई कैसे होगी। भारत आने के बाद दो हफ्ते तक क्लास बंद रही। फिर ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई। कुछ महीने बाद दोस्त दूसरे देशों से होकर यूक्रेन पहुंचने लगे। भारत सरकार ने इसके लिए परमिशन दे दी थी।’
‘मैं भी यूक्रेन चला गया। जुलाई, 2023 में डिग्री मिलने के बाद इटली के रास्ते भारत आ गया। अभी गाजियाबाद के जिला अस्पताल में इंटर्नशिप कर रहा हूं।’
3 साल यूक्रेन में पढ़ाई की, अब किर्गिस्तान में पढ़ रहे कश्मीर के रहने वाले ध्रुव ने 12वीं तक की पढ़ाई श्रीनगर से की। इसके बाद मेडिकल की तैयारी में लग गए। ध्रुव ने 2019 में यूक्रेन के सुमी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया। युद्ध शुरू हुआ, तब थर्ड ईयर की पढ़ाई पूरी होने में कुछ दिन बचे थे।
ध्रुव बताते हैं, ‘मैं सुमी से कीव के लिए निकलने ही वाला था कि रूस ने यूक्रेन पर अटैक कर दिया। हम युद्ध में फंस चुके थे। मैं यही सोच रहा था कि किसी तरह यूक्रेन से निकलकर भारत पहुंच जाऊं।’
‘यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई बहुत अच्छी है। वहां प्रैक्टिकल नॉलेज पर फोकस करते हैं। मेरी तीन साल की पढ़ाई हो चुकी थी। मैंने तीन साल के बाद होने वाला क्रॉक एग्जाम भी पास कर लिया था। सब अच्छा चल रहा था और अचानक जंग शुरू हो गई। मेरे घरवालों को पता चला तो वे हमेशा रोते रहते थे। खुशकिस्मती से मैं वापस आ गया। कुछ दिन इसकी खुशी भी रही, लेकिन फिर करियर की चिंता होने लगी।’
‘सबसे बड़ी चिंता यही थी कि मेरे तीन साल बर्बाद न हो जाएं। फॉरेन मिनिस्ट्री ने बताया कि युद्ध जल्दी रुकने की संभावना नहीं है। मैं हेल्थ मिनिस्ट्री और अलग-अलग ऑफिसों के चक्कर काटता रहा। कोई जवाब नहीं मिलता था। सरकार ने मोबिलिटी प्रोग्राम चलाया, जिसमें परमिशन दी गई कि यूक्रेन के मेडिकल स्टूडेंट, दूसरे देशों के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन ले सकते हैं।’
‘मैंने किर्गिस्तान में फोर्थ ईयर से एडमिशन लेने का फैसला लिया। वहां भी बहुत दिक्कत हुई। एडमिशन के लिए एजेंट काम करते हैं। वे काफी पैसा लूटते हैं। पासपोर्ट और डॉक्यूमेंट जमा कर लेते हैं और फिर उगाही करते हैं। धमकी भी देते थे। इस बारे में इंडियन एंबेसी को बताया लेकिन कुछ नहीं हुआ। अभी मैं किर्गिस्तान में ही पढ़ रहा हूं।’