क्या जज ही जजों को 'जज' करेंगे? कॉलेजियम सिस्टम पर हो रही बहस के दोनों पहलू जान लीजिए

Updated on 13-02-2023 06:13 PM
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) को लेकर पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ कहा जा चुका है। सरकार और न्यायपालिका में टकराव की स्थिति बनती देखी गई। डिबेट अब भी जारी है। बहस इस बात पर हो रही है कि क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को कमजोर किया जा रहा है या फिर न्यायिक सुधार की तत्काल जरूरत है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख में इस महत्वपूर्ण विषय पर दो पक्षों ने अपनी राय रखी है। एक तरफ मद्रास हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज के. चंद्रू कहते हैं कि न्यायिक प्रणाली को डराना नहीं चाहिए। दूसरी तरफ, बिबेक देबरॉय और आदित्य सिन्हा सवाल उठाते हुए कहते हैं कि केवल जज ही जजों को 'जज' नहीं कर सकते हैं। आइए दोनों पक्षों की महीन बातों को समझते हैं।

के. चंद्रू : कॉलेजियम प्रणाली का सपोर्ट क्यों करें?

'मैं खान हूं लेकिन आतंकवादी नहीं।' मदुरै के एक सीनियर वकील ने यह बात उस समय कही थी, जब मद्रास हाई कोर्ट में जज के लिए पैनल की सिफारिश से उनका नाम हटा दिया गया। उनके नाम का प्रस्ताव हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने आगे बढ़ाया था लेकिन भारत सरकार ने खुफिया एजेंसियों से मिले रिपोर्ट को आगे रखते हुए कुछ आपत्तियां उठाईं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनका नाम खारिज कर दिया और वकील की नाराजगी में गुस्सा देखने को मिला। आमतौर पर जब हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा जज के लिए नाम की सिफारिश की जाती है तो SC कॉलेजियम सबसे पहले राज्य से ताल्लुक रखने वाले जज की राय लेता है। इसके बाद ही कोई फैसला लिया जाता है। खुफिया एजेंसियों से मिली रिपोर्ट भारत सरकार कोर्ट के साथ भी साझा करती है।
ऊपर वाले मामले में एक IB इंस्पेक्टर को बैकग्राउंड चेक करना का टास्क दिया गया था। उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि संबंधित मुस्लिम वकील कई मदरसों और मस्जिद समितियों में जकात डोनेशन देते रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि वह धार्मिक कट्टरपंथी हो सकते हैं और उनका कनेक्शन अलगाववादियों से भी हो सकता है।

के. चंद्रू ऐसे कई और मामले सामने रखते हैं। आखिर में वह लिखते हैं कि अगर इस तरह की खुफिया इनपुट के आधार पर नाम खारिज होता है तो सुप्रीम कोर्ट के पास भी इसकी सत्यता जांचने का कोई तंत्र नहीं है। यह किसी व्यक्ति के साथ अन्याय भी माना जा सकता है जो उच्च न्यायपालिका में जज बनने की इच्छा रखता है। जब सोमशेखर, आर जॉन और सौरभ कृपाल के नाम राजनीतिक आधार पर खुफिया रिपोर्ट मिलने के बाद भारत सरकार ने खारिज किए तो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हां में हां मिलाते हुए उनके नाम वेबसाइट से भी हटा लिए थे।

दूसरा पक्ष: कॉलेजियम क्यों ठीक नहीं?

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय और अतिरिक्त निजी सचिव (रिसर्च) आदित्य सिन्हा लिखते हैं कि संविधान के आर्टिकल 124 और 217 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस समेत अन्य जजों और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति का जिक्र किया गया है। दोनों आर्टिकलों में मामूली अंतर है। लेकिन दोनों में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच परामर्श की बात कही गई है। देश क्या चाहता है? 1. उचित व्यक्ति की नियुक्ति हो। 2. गलत शख्स को नियुक्त न किया जाए। 3. नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। कॉलेजियम सिस्टम 1998-99 से है, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJC) की बात की गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए इसे 2015 में खारिज कर दिया।
अधिकतर संस्थानों में एचआर डिपार्टमेंट मेरिट पर फैसला करता है और ग्रे हेयर की मेरिट के साथ तुलना ठीक नहीं मानी जाती। लेकिन कुछ संस्थान ऐसे भी हैं जहां वरिष्ठता का क्रम ज्यादा मायने रखता है। हम सीनियर-मोस्ट जज को ही चीफ जस्टिस बनता देखते आ रहे हैं।

कॉलेजियम में सब कुछ ठीक नहीं है। 2009 में लॉ कमीशन ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में कहा था कि जजों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया में फौरन समीक्षा की जरूरत है। 2002 में ही एक आयोग ने संविधान के तहत राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित करने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा पाल ने 2011 में एक लेक्चर में सीक्रेट की बात करते हुए कहा था कि जिस प्रक्रिया के तहत हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाती है, वह हमारे देश के सबसे गुप्त रखे गए राज में से एक हैं।

आगे कॉलेजियम vs NJAC की डिबेट तेज हुई। एनजेएसी में कुछ खामियां हो सकती थीं। एनजेएसी संसद के रास्ते आया था लेकिन हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। यह भी चौंकाने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेहतर ड्राफ्ट के लिए भी नहीं कहा, बल्कि एक झटके में इसे असंवैधानिक बता दिया। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनातनी के बीच हम मूल सवाल से भटकते जा रहे हैं। हमें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक बेहतर तरीका चाहिए।

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 11 January 2025
पंजाब-हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन का आज 47वां दिन है। गुरुवार को हुए उनकी टेस्ट की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है।…
 11 January 2025
दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा आज अपने बचे हुए 41 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर सकती है। इसको लेकर शुक्रवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर…
 11 January 2025
प्रयागराज महाकुंभ में संन्यास लेने वाली 13 साल की लड़की का संन्यास 6 दिन में ही वापस हो गया। दीक्षा दिलाने वाले महंत कौशल गिरि को जूना अखाड़े से 7…
 11 January 2025
असम के दीमा हसाओ जिले में 300 फीट गहरी कोयला खदान से शनिवार को एक और मजदूर लिजान मगर का शव पानी पर तैरता हुआ मिला। मजदूर की पहचान 27…
 11 January 2025
कोरोना वायरस जैसे ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) के देश में कुल 15 मामले हो गए हैं। शनिवार को असम में पहला केस सामने आया। यहां 10 महीने का बच्चा पॉजिटिव है।बच्चे…
 10 January 2025
पंजाब के अमृतसर में एक और पुलिस चौकी धमाके की आवाज से दहल गई। यह धमाके की आवाज गुरुवार रात करीब 8 बजे सुनाई दी। पुलिस ने बयान जारी कर…
 10 January 2025
हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में आज सुबह एक उद्योग में भीषण आग लग गई है। फॉर्मा उद्योग में जब आग लगी तो नाइट शिफ्ट के लगभग 35 कर्मचारी…
 10 January 2025
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के लिए लगाई गई पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। 17 अक्टूबर…
 10 January 2025
हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर 46 दिन से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके साथ ही कोर्ट में…
Advt.