इस्लामाबाद: पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो (Bilawal Bhutto) जो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) तो कभी कश्मीर (Kashmir) पर विवादित बयान देने के आदी रहे हैं, चार और पांच मई को भारत में हैं। 34 साल के बिलावल शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO Summit 2023) के विदेश मंत्रियों की एक मीटिंग में शिरकत करेंगे। साल 2001 में शुरू हुए एससीओ का मकसद एशिया में विकास और सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाना था। इस सम्मेलन से कुछ खास निकलेगा, इस बात की गुंजाइश तो बहुत कम है। लेकिन इसके बाद भी इस सम्मेलन पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं और बिलावल उसकी इकलौती वजह हैं। जुलाई में भारत की राजधानी नई दिल्ली में एससीओ सम्मेलन होना है जिसमें सभी सदस्य देशों के मुखिया शामिल होंगे।
पाकिस्तान की मजबूरियांबिलावल साल 2011 के बाद से भारत आने वाले पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री हैं। विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन ने फॉरेन पॉलिसी मैगजीन में लिखा है कि पाकिस्तान की सरकार बिलावल की भारत यात्रा को एसीसीओ के साथ संपर्क मजबूत करने और विदेश नीति को आग बढ़ाने वाले अवसर के तौर पर ही देख रही है न कि भारत के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश के तहत।पाकिस्तान के लिए एससीओ के काफी फायदे हैं या यूं कहें मजबूरियां हैं। चीन जहां हमेशा से पाकिस्तान का करीबी सहयोगी और परममित्र रहा है तो वहीं रूस के साथ भी उसके रिश्ते अब आगे बढ़ रहे हैं। एससीओ की आधी सदस्यता मध्य एशिया के देशों के पास है। यह वह क्षेत्र है जहां पाकिस्तान हमेशा से व्यापार और संपर्क बढ़ाने के लिए आपसी जुड़ाव को गहरा करने की उम्मीद करता आया है। पाकिस्तान की चाल
कुछ बहुपक्षीय संगठनों में जिनमें भारत और पाकिस्तान दोनों शामिल हैं, वहां वह नुकसान में है क्योंकि भारत इसमें सबसे शक्तिशाली सदस्य है जैसे कि सार्क। लेकिन एससीओ में भारत का दबदबा उसके रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन की उपस्थिति के आगे कमजोर पड़ जाता है। यूक्रेन की जंग ने रूस को चीन के करीब ला दिया है। इसका मतलब यही है कि एससीओ के अंदर रूस का प्रभाव कम हो सकता है और चीन इसमें मजबूत सदस्य बन सकता है।
पाकिस्तान की तरह, भारत भी संसाधनों से अमीर मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और सहयोग को बढ़ाने की उम्मीद करता है। मध्य एशिया अब भारत पाकिस्तान के बीच जंग का नया अखाड़ा बन चुका है। भारत के पास मध्य एशिया के प्रमुख देश अफगानिस्तान में दाखिल होने के लिए डायरेक्ट एंट्री नहीं है। लेकिन इसने क्षेत्र में सरकारों के साथ बातचीत करके नया सिस्टम बनाकर इस कमी को पूरा किया गया। गोवा में पाकिस्तान की मौजूदगी का मकसद यह इशारा हो सकता है कि वह मध्य एशिया भारत को और हावी होने नहीं देगा। पाकिस्तान भी बिलावल की यात्रा को द्विपक्षीय दृष्टिकोण से नहीं देख रहा है।
कमजोर सरकार से बात नहीं
ऐसी खबरें आई थीं कि पाकिस्तान ने बिलावल और उनके भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के बीच एक मीटिंग की रिक्वेस्ट की थी। मगर पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसे खारिज कर दिया। किसी भी तरह से, पाकिस्तानी विदेश मंत्री की यात्रा को सुलह प्रक्रिया शुरू करने के प्रयास के रूप में देखना गलत होगा। कुगलमैन मानते हैं कि भारत, पाकिस्तान में एक कमजोर और अलोकप्रिय प्रशासन के साथ बातचीत करने के लिए अपनी राजनीतिक पूंजी नहीं खर्च करना चाहेगा, खासकर तब जब भारत में बस एक साल बाद ही आम चुनाव होने हैं।
मजबूरी के चलते पहुंचेंगे गोवा
बिलावल की यात्रा पाकिस्तान के लिए एक मजबूरी है और द्विपक्षीय नहीं है। अगर वह गोवा नहीं आते तो पाकिस्तान संगठन में अपनी स्थिति कमजोर कर सकता था। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ दबदबा खोने का जोखिम नहीं उठाएंगे वह भी तब जब इसमें एक सहयोगी यानी चीन का प्रभाव काफी ज्यादा है। साथ ही इसमें वो सदस्य शामिल हैं जो पाकिस्तान के साथ गहरे संबंध बनाने के इच्छुक हैं। पाकिस्तान को लगता है कि ये देश भारत के प्रभाव को सीमित कर सकते हैं।