जर्मनी में आई आर्थिक मंदी, अमेरिका के डिफॉल्ट होने का खतरा, दुनिया की उम्मीद बना भारत
Updated on
26-05-2023 06:51 PM
बॉन/वॉशिंगटन: कोरोना महामारी के बाद दुनियाभर के देशों में आर्थिक संकट विकराल रूप धारण करता जा रहा है। यूरोप का इंजन कहे जाने वाले जर्मनी की अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी में आ गई है। यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने अब खर्च घटाने पर अपनी पूरी ताकत लगा दी है। जर्मनी में आई इस आर्थिक मंदी से यूरोप के आर्थिक संकट में फंसने का खतरा मंडराने लगा है। इस बीच अमेरिका के डिफॉल्ट होने का खतरा प्रबल हो गया है जिससे दुनिया सहमी हुई है। विश्वभर में इस चौतरफा आर्थिक संकट के बीच भारत दुनिया के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरा है।
रेटिंग एजेंसी फिच ने अमेरिका को लेकर चेतावनी दी है। फिच ने कहा कि अगर सांसद कर्ज की सीमा को बढ़ाने के लिए सहमत नहीं हुए तो उसे अमेरिका की रेटिंग घटानी होगी। अमेरिका के डिफॉल्ट होने के खतरे से अब दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन और जापान भयानक टेंशन में आ गए हैं। दरअसल, अमेरिका के सरकारी कर्ज में चीन और जापान सबसे बड़े विदेशी निवेशक हैं। चीन और जापान दोनों ही देश मिलकर अमेरिकी कर्ज का 2 ट्रिलियन डॉलर का हिस्सा रखते हैं। भारत के आर्थिक मंदी में जाने का कितना खतरा ?
चीन ने साल 2000 में अमेरिका के सरकारी कर्ज में निवेश करना शुरू किया था। उस दौरान अमेरिका ने चीन को विश्व व्यापार संगठन में शामिल किए जाने का समर्थन किया था। इससे निर्यात में भारी तेजी आई थी। इससे चीन को बहुत बड़े पैमाने पर डॉलर मिले और उसने इसे अमेरिका के सरकारी कर्ज में निवेश किया। अमेरिका के ट्रेजरी बांड को धरती पर सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। एक समय में तो चीन का अमेरिकी ट्रेजरी बांड में निवेश 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था।
चीन एक दशक से अधिक समय तक अमेरिका के लिए सबसे बड़ा विदेशी कर्जदाता देश रह चुका है। हालांकि ट्रंप के शासनकाल में तनाव भड़कने के बाद चीन ने अपने आपको अमेरिका से दूर करना शुरू कर दिया। जापान ने बाद में चीन की जगह ले ली। अब ये दोनों ही देश अमेरिका के डिफॉल्ट होने के खतरे से घबराए हुए हैं। एक तरफ जहां दुनिया की शीर्ष 4 अर्थव्यवस्थाएं टेंशन में हैं, वहीं दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत विश्वभर के लिए उम्मीद की किरण बन गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने का खतरा शून्य है। चीन के मंदी में जाने का खतरा 12.5 प्रतिशत तक है।