मैसेज के जमाने में चिट्ठियों की महक बरकरार, जानिए जनता की उम्मीदों पर कैसे खरे उतरते हैं डाकघर

Updated on 06-10-2024 01:25 PM
नई दिल्ली: मोबाइल और इंटरनेट के जमाने में पोस्ट ऑफिस या डाकघर कितना पुराना-सा लगता है। लेकिन इसकी अहमियत कम नहीं हुई है। भारतीय डाक की पहुंच आज भी वहां तक है जहां, अभी तक प्राइवेट कुरियर कंपनियां भी नहीं पहुंच पाई हैं। 21वीं सदी में पोस्ट ऑफिस किन बातों से सबके जीवन में प्रासंगिक बना हुआ है विश्व डाक दिवस पर बता रहे हैं, डाक इतिहासकार अरविंद कुमार सिंह


एयरपोर्ट पर चिट्ठियों की छंटाई


बहुत-से लोगों को यह लगता है कि अब डाकघर काम के नहीं रहे पर आज भी डाक की क्या अहमियत है, इसे जानना हो तो नई दिल्ली एयरपोर्ट के AMPC (ऑटोमैटिक मेल प्रोसेसिंग सेंटर) पर जाइए। आपको चारों तरफ चिट्ठियां और डाक की चीजें नजर आएंगी। एक अनुभवी डाक कर्मचारी घंटेभर में आमतौर 1,000 चिट्ठियां छांट सकता है। लेकिन यहां की जर्मन मशीन 33,000 चिट्ठियां छांटकर डिब्बों में रख देती है। दूसरी मशीन मिक्स्ड मेल शॉर्टर एक घंटे में 18,000 डाक की चीजें छांटती है। यहां तीन शिफ्टों में 400 कर्मचारी रात-दिन 3.5 से 4 लाख डाक सामग्री छांटकर हवाई जहाजों पर चढ़ाते हैं। इसी तरह कोलकाता AMPC में रोज करीब 65,000 स्पीड पोस्ट समेत 2.75 लाख डाक सामग्री का निपटारा होता है।

आजकल इस तरह की भूमिका में हैं डाकघर


इंडियन पोस्टल ने देरी से ही सही लेकिन खुद को संचार और सूचना क्रांति की ताकत से लैस किया है। कुरियर की चुनौतियों के बावजूद अपनी स्पीड पोस्ट सेवा की बाजार हिस्सेदारी 40% तक बनाकर रखी है। पासपोर्ट, रेलवे टिकट, आधार अपग्रेडेशन, कॉमन सर्विस सेंटर, आधार से जुड़ी पेमंट सर्विस भी डाकघर मुहैया करा रहे हैं। पैनकार्ड से लेकर तमाम सर्टिफिकेट घर पहुंचा रहे हैं। डिजिटल सर्विस पोर्टल, वोटर रजिस्ट्रेशन से लेकर डिटेल्स में बदलाव, श्रम सेवा, पेंशन, रोजगार सर्विस के साथ कई राज्य सरकारें बहुत-सी उपयोगी सेवाएं दे रही हैं। इस तरह देखें तो हमारे डाकघर डाक टिकट, स्पीड पोस्ट, एक्सप्रेस पार्सल पोस्ट समेत तमाम सेवाओं के माध्यम से खुद को मार्केट में बनाए हुए हैं। हालांकि डाकघर में मौजूद इन सभी सेवाओं के बारे में कम ही लोग जानते हैं।

फाइनैंस का बड़ा रोल


इस वक्त डाकघरों में करीब 26 करोड़ पोस्ट सेविंग्स बैंक अकाउंट हैं। इनमें करीब 12.68 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। इसके अलावा 11.39 करोड़ कैश पत्रों में भी 3.66 लाख करोड़ रुपये की रकम जमा है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’नारे के बाद डाकघरों में सुकन्या खातों को खोलने का सिलसिला शुरू। करीब 3.12 करोड़ सुकन्या खाते डाकघर में हैं। डाकघर निवेश का सुरक्षित जरिया हैं। देश में 5 लाख से ज्यादा छोटे बचत एजेंटों को भी इससे काम मिलता है। PPF, किसान विकास पत्र (KVP), सीनियर सिटिजन बचत योजना (SCSS) आदि योजनाओं के साथ महिला बचत को काफी लोकप्रियता मिली।

डाकघरों की विश्वसनीयता को ध्यान में रखकर सरकार में 1 सितंबर 2018 को इंडिया पोस्ट पेमंट बैंक (IPPB) शुरू किया। करीब 2 लाख पोस्टमैनों को स्मार्टफोन और बायोमेट्रिक डिवाइस मुहैया कराकर आम जनता के दरवाजे पर जाकर बैंकिंग सेवाएं देने की पहल काफी सफल रही। अब 1000 ATM के अलावा कोर बैंकिंग सर्विस दी जा रही हैं। डाकघरों में 13,354 आधार और 426 डाकघर पासपोर्ट सेवा सेंटर भी हैं। ई-कॉमर्स बाजार में भी भारतीय डाक ने प्रवेश कर क्षमता बढ़ाने की कोशिश की है।

कोरोना संकट में निभाया अहम रोल

देशभर में मेल डिलिवरी, पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक और जीवन बीमा समेत कई सेवाएं उन्होंने दरवाजे तक उपलब्ध कराने का काम किया। दवाओं की डिलिवरी के साथ वेंटिलेटर, कोविड-19 टेस्ट किट और दूसरे मेडिकल उपकरणों को कार्गो एयरलाइंस और अपनी मेल मोटर नेटवर्क की मदद से चुनिंदा जगहों तक पहुंचाया। लॉकडाउन में सारी ट्रांसपोर्ट सर्विस ठप थीं, बावजूद इसके 2.3 करोड़ सेविंग्स खातों से 33,000 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन हुआ।

23 लाख आधार आधारित ट्रांजेक्शन से भी 452 करोड़ रुपये और 31.5 लाख मनीआर्डरों की 355 करोड़ रुपये की रकम बांटी गई। इंडिया पोस्ट पेमंट बैंक ने 2,600 करोड़ रुपये पहुंचाए। कई डाक कर्मचारी सर्विस देते समय मौत का शिकार बने। लॉकडाउन में इतिहास में पहली बार डाक विभाग ने अपने वाहनों के साथ 500 किमी. से ज्यादा लंबे 22 रास्तों का ऐसा तंत्र बनाया, जिससे जरूरी वस्तुओं की आवाजाही संभव हो सकी।

चिट्ठी-पत्री की दुनिया बदली

कभी चिट्ठियां ही संचार का सबसे ताकतवर साधन होती थीं। गलियों में डाकिए को देख अजीब रोमांच होता था। जिन घरों में ज्यादा चिट्ठियां आतीं, समाज में उनकी अलग हैसियत थी। तमाम लेखकों, राजनेताओं और जाने-माने लोगों की चिट्ठियों पर जाने कितना साहित्य लिखा गया है। 1854 में देश में सालाना 1.20 करोड़ चिट्ठियों की आवाजाही थी, जो 1985-86 तक बढ़कर 1198 करोड़ हो गई। संचार क्रांति की दस्तक के बाद भी सालाना 1550 करोड़ तक चिट्ठिय़ां आ रही थीं। बेशक चिट्ठियों के साम्राज्य को मोबाइल ने उजाड़ना शुरू किया। 2005-06 में चिट्ठियां घटते हुए 670 करोड़ रहगईं। बीते बरसों में स्पीड पोस्ट, बिजनेस पोस्ट समेत कई सर्विस में डाक की मात्रा बढ़ी है। सामान्य डाक गिरावट के बाद भी 447 करोड़ से ज्यादा है। इनमें पर्सनल चिट्ठियां नाममात्र की हैं। इसीलिए चिट्ठियों को बचाने की मुहिम जारी है। सरकार भी पत्र संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिताएं करती है।

डाक की असली ताकतगांवों में

ग्रामीण इलाके ही भारतीय डाक की असली ताकतहैं। आजादी के बाद उदार सरकारी नीतियों के कारण गांवों की जरूरतों के हिसाब से अनूठे डाकघर खुले। कहीं नावों पर फेरी बोट पोस्ट ऑफिस, मोबाइल पोस्ट ऑफिस, पहाड़ी गांवों में टट्टू और खच्चरों पर डाकघर तो रेगिस्तानी इलाके में ऊंट डाकघर खुले। 1953 में कश्मीर में सैलानियों की सुविधा के लिए डल झील पर तैरता डाकघर खुला। ऐसे कई प्रयोग हुए जो सफल रहे।

चुनौतियां भी कम नहीं


भारतीय डाक के सामने बहुत-सी चुनौतियां हैं। उसके बजट का 91 फीसदी हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च होता है। वहीं डाक विभाग का रेवेन्यू आज के दौर में चुनौती भरा काम है। 2015-16 में इसका रेवेन्यू 12939.79 करोड रुपये और खर्च18946.97 करोड़ रुपये था। 2020-21 में कोरोना संकट के कारण रेवेन्यू घटकर 10632.31 करोड़ हुआ जबकि खर्च बढ़कर 28,327 हो गया। 2018-19 के बाद रेवेन्यू के मामले में इसके सामने काफी गंभीर चुनौती दिख रही है। डाक भवनों के लिए कई जगह प्लॉट खाली हैं। वहीं सालाना 106 करोड़रुपयेसे ज्यादा किराया डाक विभाग दे रहा है। भविष्य में भारतीय डाक अपनी सर्विस बढ़ाने के साथ जो उम्मीदे बांधे हुए है, उसके लिए अभी बहुत रकम के निवेश के साथ श्रम शक्ति बढ़ाने की दरकार है।


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