ओटावा: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने उनके देश में बढ़ती खालिस्तानी गतिविधियों पर बड़ा ही बचकाना बयान दिया है। ट्रूडो ने खालिस्तानी चरमपंथियों की तरफ से हो रही हरकत पर कहा है कि उनके देश में हर किसी को अभिव्यक्ति की आजादी है। अपने इसी बयान के साथ उन्होंने भारत की उन आपत्तियों को भी खारिज कर दिया जिसके तहत उनकी सरकार पर खालिस्तानी चरमपंथियों से निबटने में असफल रहने का आरोप लगाया गया। भारत में ट्रूडो के बयान की जमकर आलोचना हो रही है और विदेश मंत्रालय ने उनके इस बयान को भी खारिज कर दिया है। मगर विदेश नीति के जानकारों की मानें तो उन्हें ट्रूडो के इस रुख पर कोई हैरानी नहीं हुई है। उनकी सरकार तो खुद खालिस्तान के समर्थन से चल रही है।सारा खेल कुर्सी और सत्ता कासाल 2019 में कनाडा में आम चुनाव हुए थे। ट्रूडो ने चुनाव तो जीता लेकिन वह सरकार नहीं बना सकते थे। उनकी लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिलीं थी। जबकि विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। ट्रूडो के पास सरकार बनाने का बहुमत नहीं था। सरकार बनाने के लिए उन्हें 170 सीटें चाहिए थीं। इसके बाद ट्रूडो को 24 सीटों वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का समर्थन मिला। इस पार्टी के मुखिया हैं जगमीत सिंह और जगमीत, खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। ट्रूडो के लिए सत्ता में रहने का मतलब है जगमीत को खुश रखना। उनकी पार्टी का समर्थन ट्रूडो के लिए काफी जरूरी है। कनाडा के पीएम जगमीत को नाराज नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके साथ ट्रूडो की पार्टी हमेशा सत्ता में रह सकती है।
जगमीत और ट्रूडो के बीच एग्रीमेंट
चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस-एंड-सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। यह समझौता 2025 तक लागू रहेगा। अब तक सिंह ट्रूडो के भरोसेमंद साझेदार बने हुए हैं। हाल ही में विपक्ष ने कनाडा के चुनावों में चीन के हस्तक्षेप की जांच की मांग की और ट्रूडो पर जबरदस्त हमला बोला। उस समय जगमीत सिंह की एनडीपी ने ही पीएम का समर्थन किया था। ट्रूडो के समर्थन से सुरक्षित, सिंह भारत के खिलाफ और खालिस्तानी मुद्दे के समर्थन में आगे बढ़ते जा रहे हैं। इस साल मार्च के महीने में जैसे ही पंजाब में खालिस्तानी अलगाववादी अमृतपाल सिंह पर मामला गरमाया तो भारत के इस राज्य में इंटरनेट ही बंद कर दिया गया। इसके बाद जगमीत सिंह अमृतपाल के समर्थन के लिए ट्रूडो का दरवाजा खटखटाने पहुंच गए थे।
इससे पहले जगमीत और गुररतन किसान आंदोलन के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आग उगलते हुए सामने आए थे।
खालिस्तानी समर्थकों का पनाहगार
भारतीय एजेंसियों को संदेह है कि जगमीत सिंह न केवल कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों को पनाह दे रहा था, बल्कि अमेरिका में भी भारत विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। खासकर अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद। सिंह पर लंबे समय से कनाडा में अपनी उपस्थिति से खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववाद को जोड़ने के प्रयासों का संदेह रहा है।