इस्लामाबाद: पाकिस्तान में इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने जमकर बवाल काटा। इमरान के समर्थकों ने सेना से जुड़ी बिल्डिंग पर भी हमला किया, जिसके बाद सेना ने कड़ा रुख अपनाया है। सेना ने कहा है कि सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करने और इससे जुड़े लोगों के खिलाफ आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा। सेना की इस घोषणा के बाद अब सिर्फ पाकिस्तान में आर्मी एक्ट की चर्चा हो रही है। आर्मी एक्ट का खौफ इतना ज्यादा है कि जो इमरान खान अभी तक सेना के जनरलों के खिलाफ बयान देते थे वह भी अब सेना की इज्जत करने की बात कह रहे हैं। आर्मी एक्ट में फंसने के डर से इमरान की पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दिया है। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान आर्मी एक्ट 1952 क्या है?
पाकिस्तान आर्मी एक्ट को 1952 में लागू किया गया था। यह पाकिस्तानी सेना का कानून है जो उसके कामकाज, अनुशासन और प्रशासन से जुड़ा है। इस कानून का इस्तेमाल सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता है। लेकिन इसके कुछ प्रावधान नागरिकों पर भी लागू होते हैं। सेना से जुड़े मामलों में सैन्य कर्मियों और नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए यह अधिनियम था। लेकिन 1966 में सैन्य तानाशाह अयूब खान ने अधिनियम में संशोधन किया। इसके तहत लिखित या मौखिक तरीके से सेना के अंदर विद्रोह पैदा करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है। दुश्मन के साथ सेना से जुड़ी जानकारी साझा करने वाले सिविलियन पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है।
कैसे होता है ट्रायल
अधिनियम के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई की अदालत को फील्ड जनरल कोर्ट मार्शल कहा जाता है। यह सैन्य अदालत सेना के कानूनी निदेशालय की देखरेख में काम करती है, जिसे जज एडवोकेट जनरल ब्रांच भी कहा जाता है। इस अदालत का अध्यक्ष एक सैन्य अधिकारी होता है। इसके साथ ही अभियोजन पक्ष का वकील भी एक सैन्य अधिकारी होता है। आरोपियों को एक वकील रखने का अधिकार होता है। 40 दिनों के अंदर प्रतिवादियों को सेना की ही अदालत में अपील करने का अधिकार है। अगर प्रतिवादी माने कि उसे निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिला तो वह उच्च अदालतों में जा सकता है।
क्या हो सकती है सजा
कागजों में यह आर्मी एक्ट बेहद अच्छा दिखेगा। लेकिन यह उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है। जिस देश में सेना का हुक्म चलता हो वहां हर कोई आर्मी से डरेगा। भारत के कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाने वाला यही कोर्ट है। यहां बेहद गलत तरीके से सुनवाई होती है और इसी वजह से पाकिस्तान को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में जलील होना पड़ा। आरोपों के हिसाब से अलग-अलग सजा हो सकती है। इसमें उम्रकैद के साथ-साथ फांसी की सजा भी हो सकती है। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सेना प्रदर्शन से जुड़े मामले में तीन मिलिट्री कोर्ट बनाने पर विचार कर रही है।
मिलिट्री कोर्ट में किस पर चलता है मुकदमा
पाकिस्तान का सैन्य अदालतों में मामला भेजने का पुराना इतिहास रहा है। पाकिस्तान के एक पूर्व सैन्य अधिकारी के मुताबिक इमरान के पीएम रहने के दौरान 2018 से 2022 तक 20 नागरिकों पर इस मामले में मुकदमा चला है। 2020 में पेशावर हाईकोर्ट ने 200 लोगों की सजा को खारिज कर दिया और किसी अन्य मामले में दोषी न होने पर रिहाई का आदेश दिया। जिन्हें रिहा किया गया था वह कई प्रतिबंधित संगठनों से थे, जिन्होंने नागरिकों और पाक सेना पर हमला किया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि सिविलियन मामले की सुनवाई सैन्य अदालत में न हो।