सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) में डॉक्टर्स के स्वीकृत ज्यादातर पद खाली है। वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) में भी डॉक्टर्स की कमी बनी हुई है। साथ ही उप स्वास्थ्य केन्द्रों (एसएचसी) की बागडोर एएनएम के हाथों में है। जिले के शासकीय अस्पतालों के लिए शासन द्वारा भले ही पद स्वीकृत किए गए हो लेकिन नियमित डॉक्टर्स की पदस्थापना न होने से संविदा डॉक्टर्स के सहारे ही जिले की चिकित्सा व्यवस्था चल रही है।
संविदा डॉक्टर्स की पदस्थापना जिला अस्पताल के साथ ही सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में की गई है। संविदा डॉक्टर्स की नौकरी स्थाई न होने के कारण इनके द्वारा अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन बखूबी किया जा रहा है। आने वाले मरीजों को बेहतर उपचार सुविधा उपलब्ध कराने में भी संविदा डॉक्टर्स की दिलचस्पी ज्यादा रहती है। वहीं जो डाक्टर नियमित हैं उनके द्वारा अस्पतालों में मरीजों की समुचित चिकित्सा करने के वजाय अपने आवास से ही मरीजों का उपचार करने को तरजीह दी जाती है। नियमित डॉक्टर्स की प्रायवेट प्रेक्टिस में ज्यादा रूचि बन चुकी है। उनकी मंशा बन चुकी है कि मरीजों का फीस लेकर ही उपचार करेंगे। इसी वजह से जिस समय डॉक्टर्स के अस्पताल के आउटडोर में बैठने का वक्त होता है उस दौरान वो अपने आवास में मरीजों की भीड़ निपटाने में व्यस्त रहते हैं।स्थिति ये है कि जिला अस्पताल में पदस्थ ज्यादातर डाक्टर आउटडोर के समय में नदारत रहते हैं।
नियमित डॉक्टर्स में इस बात की होड़ मची है कि कौन ज्यादा से ज्यादा मरीजों को बगले में देखता है। दरअसल सीधी जिले में पदस्थापना होने के बाद जो नियमित डाक्टर कई साल की सेवा दे चुके हैं उनकी ख्याति मरीजों के बीच बनने लगती है। इसी वजह से वो बाद में अस्पताल की वजाय अपने बगले में ही मरीजों को देखने में व्यस्त हो जाते हैं। जिला अस्पताल की स्थिति ये है कि यहां के डाक्टर सबसे ज्यादा अपने आवास में ही मरीजों को देखते हैं। आउटडोर में इनके बैठने का अधिकतम समय आधे घंटे भी नहीं रहता। कई डाक्टर तो ऐसे हैं कि सुबह वार्डों में भर्ती मरीजों को देखने के बाद सीधे अपने आवास में जमा मरीजों को निपटाने के लिए चले जाते हैं। यही स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की भी बनी हुई है। वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में जो नियमित डाक्टर पदस्थ हैं उनके रोज बैठने को लेकर ही संशय रहता है।
संविदा डाक्टर अवश्य अपनी ड्यूटी में रोजाना पहुंचते हैं और मरीजों की उपचार सेवाएं भी इनके द्वारा ही सुनिश्चित की जाती है। शासकीय अस्पतालों का वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा औचक निरीक्षण न करने की वजह से नियमित डाक्टरो की मनमानी लगातार बढ़ रही है। प्रशासनिक अधिकारी भी अस्पतालों का निरीक्षण करने को बेगारी मानते हैं। जिला, खंड स्तरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित शासकीय अस्पतालों की इसी वजह से दुर्दशा हो रही है। जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
शासकीय अस्पतालों में जाने वाले ज्यादातर मरीज गरीब परिवार के होते हैं। उनके पास डाक्टरो को बगले में जाकर फीस देने, लिखी गई जांच कराने एवं बाजार से महंगी दवाईयां खरीदने के लिए पैसे न होने के कारण वह सरकारी अस्पताल में ही अपना इलाज कराने के लिए जाते हैं। जिनके पास डाक्टरों को फीस देने के लिए पैसे हैं व प्राथमिकता से उनके बगले में उपचार कराने के लिए जाते हैं। डाक्टरों में प्रायवेट प्रेक्टिस करने की हवस इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि अवैधानिक रूप से बगले में ही पैथालॉजी जांच कराने एवं लिखी गई दवाइयां देने की व्यवस्था भी बनाए हुए हैं। ये स्थिति दिनोंदिन गंभीर रूप धारण कर रही है।वही देखा जाए तो जिला अस्पताल में ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के ज्यादातर पद खाली हैं।
मेडिकल आफीसर मरीजों का उपचार करने में जुटे हुए हैं। जिला अस्पताल एवं अन्य अस्पतालों में चिकित्सकों के नियमित डॉक्टरों की भारी कमी के चलते संविदा डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है। यहां डॉक्टरों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद मरीजों के जाने पर कुछ डॉक्टर ही नजर आते हैं। उसमें भी अधिकांश संविदा डॉक्टर ही यहां मरीजों का उपचार करने में लगे हुए हैं। नियमित डॉक्टरों की व्यस्तता अपने बगले में ही मरीजों को देखने में है।