डॉ. जीवन एस. रजक
शास्त्रों में कहा गया है :-
पक्षिणां काकचाण्डालः पशुनां चैव कुक्कुरः
अर्थात् प्राणियों में कुछ प्राणी स्वभाव से नीच और चाण्डाल होते है। पक्षियों में कौआ और पशुओं में कुत्ता, स्वभाव से नीच और चाण्डाल प्रवृत्ति वाले होते है। किन्तु कलियुग की गतिशीलता के साथ यह शास्त्रोक्ति असंगत प्रतीत होने लगी है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है, कि सृष्टि के सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वाधिक नीच और चाण्डाल प्रवृत्ति वाला प्राणी है। पशु-पक्षी तो विवेक शून्य होते हैं, उनमें सही-गलत निर्धारित करने की यथोचित क्षमता नहीं होती है, किन्तु मनुष्य तो इस सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी माना जाता है, फिर भी वह चाण्डाल प्रकृति के अनैतिक कार्य करता है, तो निश्चित रूप से वह इस पृथ्वी पर विद्यमान प्राणियों में सबसे बड़ा चाण्डाल है।
हाल ही में भोपाल के एक निजी स्कूल के बस चालक द्वारा स्कूल बस मे एक साढ़े तीन वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है। यह अत्यंत शर्मनाक और चाण्डाली कृत्य है। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अनैतिक कृत्य की यह पहली घटना नहीं है, लगभग प्रतिदिन के अखबार में इस तरह की खबरें पढ़ने को मिलती है। इस तरह की घटनाओं के बारे में जानकर ऐसा लगता है, कि मनुष्य की मनुष्यता मरती जा रही है। मनुष्य ने पशुओं से भी ज्यादा पशुता को प्राप्त कर लिया है। वह पिचाशी प्रवृत्ति का हो गया है। कदाचित स्वयं को मनुष्य कहलाने का अधिकार खोता जा रहा है।
साढ़े तीन साल की बच्ची पुष्प के समान गुड़िया ही तो है, उसके साथ इतनी दरिंदगी करना सिर्फ एक निन्दनीय कृत्य ही नहीं है, बल्कि हमारे समाज के लिए एक चिंता का विषय भी है। हमारा समाज गर्त में जा रहा है। मनुष्य के भीतर मनुष्यता के मूल्य खत्म हो चुके हैं। छोटी-छोटी बच्चियों पर बुरी नजर डालने वालों की आँखें बहसीपन से भर चुकी हैं। ऐसे लोग समाज के लिए खतरा बन गए हैं। इन लोगों को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे लोगों को सरेआम मृत्युदण्ड मिलना चाहिए।
एक और बात जिस बस में छोटी सी बच्ची के साथ बस चालक ने अनैतिक कृत्य किया, उस बस में जो परिचारिका उपस्थित थी उसने इस कृत्य में बस चालक का सहयोग किया है। ये मान भी ले कि बस चालक की आँखों में हैवानियत थी। लेकिन परिचारिका तो एक स्त्री है, एक माँ है। उसका हृदय जरा भी नहीं कांपा। उसने ये सब कैसे स्वीकार कर लिया, ऐसी स्त्री समाज के लिए कलंक है।
कहते हैं, बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं, और छोटी-छोटी कन्याऐं तो स्वयं देवी और शक्ति का स्वरूप है। भारतवर्ष की महान् संस्कृति में छोटी बच्चियों को देवी स्वरूप मानकर उनकी पूजा करने की परम्परा है। समाज के ये बहसी और अनैतिक लोग अपने पापी कृत्यों से न केवल हमारी महान् संस्कृति को कलंकित कर रहे हैं, बल्कि समाज को दूषित भी कर रहे हैं। चिंता इस बात की है, कि लोगों के नैतिक और मानवीय मूल्य जिस तरह लगातार गिर रहे हैं, उससे आने वाला समय और भी ज्यादा भयावह होने की आशंका है। समाज को इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विमर्श और चिंतन करना पड़ेगा।
शास्त्रों के अनुसार जैसे-जैसे कलियुग का समय बीतेगा, वैसे-वैसे लोगों में तमो गुण की वृद्धि होगी। कलियुग 04 लाख 32 हजार वर्ष का है, और शास्त्रों के अनुसार अभी कलियुग के लगभग 05 हजार वर्ष ही व्यतीत हुए है। इतने अल्प समय में ही मानव समाज की यह दुर्दशा है, तो आगे आने वाले समय में मनुष्य कितना नीच और चाण्डाल हो जायेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
कहते हैं मनुष्य इस सृष्टि का सर्वाधिक बृद्धिमान और विवेकशील प्राणी है। मानवता, नैतिकता, संवेदनशीलता और विचारशीलता उसके मूलभूत गुण हैं। सही-गलत, अच्छा-बुरा, पाप-पुण्य ये सब मनुष्य भलीभांति समझता है। इसके बाद भी उसके द्वारा इतने अनैतिक और जघन्य अपराध किया जाना उसके मनुष्य होने पर प्रश्न चिन्ह है। ऐसा लगता है। मनुष्य की मनुष्यता मरती जा रही है। उसकी स्थिति पशुओं और पिचाशों से भी बदतर हो गयी है। छोटी सी बच्ची के साथ इतना जघन्य कृत्य करने वालों को इतना कठोर दण्ड मिलना चाहिए, ताकि समाज में ऐसे पिचाश फिर किसी देवी पर अपनी बहसी नजर न डाल सके।
(लेखक मध्य प्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं साहित्यकार हैं।)