कुंभ मेले में भीड़ प्रबंधन के सार्थक उपाय

Updated on 15-01-2025 01:22 PM

अकसर कुंभ जैसे मेले और बड़े धार्मिक उत्सवों में आकास्मिक दुर्घटनाएं देखने में आती रही हैं। हाल ही में आंध्र प्रदेष के तिरुपति बालाजी मंदिर में भगदड़ मचने से छह लोगों के प्राण चले गए और 150 से भी ज्यादा लोग घायल हो गए। ये घटनाएं इसलिए घटती रही हैं, क्योंकि मेला प्रबंधन पूर्व से दुर्घटना न घटे इस दृश्टि से सतर्क दिखाई नहीं देते हैं। किंतु प्रयागराज में होने वाले कुंभ में इस बार देखा जा रहा है कि कोई दुर्घटना न घटे इस नजरिये से अनेक तरह के भौतिक और तकनीकि प्रबंध किए गए है।  समय के साथ ये बदलाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। देष में लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े मेले कुंभ में अस्थाई रूप से निर्मित की गई ‘कुंभनगरी‘ में 13 जनवरी 2025 से षुरू होकर 31 मार्च तक चलने वाले इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुरक्षा संबंधी निगरानी के उपाय व्यापक स्तर पर कृत्रिम बुद्धि से संचालित उपकरण करने लगे हैं। इस हेतु कुंभनगरी का पूर्णतः डिजिटलीकरण कर दिया है। प्रत्येक 12 साल में प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृष्य सरस्वती नदियों के संगम पर महाकुंभ आयोजित होता है। 45 दिन चलने वाले इस कुंभ में 45 करोड़ तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है। 2013 में 20 करोड़ से ज्यादा यात्री प्रयाग पहुंचे थे। इस बार दोगुने से ज्यादा लोगों के पहुंचने का अनुमान इसलिए है, क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर बनने के साथ वाराणसी में काषी विष्वनाथ मंदिर का भी कायाकल्प हुआ है। साथ ही आवागमन के साधन बढ़े हैं। अतएव 4 तहसील और 67 ग्रामों की 6000 हेक्टेयर भूमि पर मेले में यात्रियों के लिए समुचित प्रबंध करके योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक मिसाल प्रस्तुत की है, जो अनुकरणीय है।

लोगों को आवाजाही में असुविधा न हो ? इसलिए मेला प्राधिकरण और गूगल के बीच हुए समझौते के अंतर्गत आवागमन मानचित्र (नेविगेशन मैप) की सुविधा मोबाइल व अन्य संचार उपकरणों पर दी गई है। इस सुविधा से यात्री गंतव्य की स्थिति और दिशा हासिल कर सकते हैं। इस मानचित्र में मेले की धार्मिक महिमा से जुड़े नदी-घाट, मंदिर, अखाड़े, संतो ंके डेरे, ठहरने के स्थल, होटल और खान-पान संबंधी भोजनालयों की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध होगी। 29 जनवरी को पड़ने वाली मौनी अमावस्या को सबसे बड़ा पर्व स्नान माना है। अतएव इस दिन छह से दस करोड़ लोग गंगा में स्नान करने का अनुमान है। बांकी पांच पर्वों में 2 से 8 करोड़ लोग संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने आ सकते हैं। वैसे तो सुरक्षा के लिए 37000 पुलिस और विभिन्न बलों के जवान तैनात रहेंगे, लेकिन इतने लोगों पर इन जवानों द्वारा निगाह रखना आसान नहीं है, इसलिए समूची कुंभनगरी में कृत्रिम बुद्धि आधारित कैमरे लगा दिए गए हैं। चप्पे-चप्पे पर लगे इन 2400 कैमरों की आंख में एआई लैंस लगे हैं। अतएव ये चेहरे पहचानकर अपराधियों पर नजर रखेंगे। इस नगरी में जगह-जगह डिजिटल और बहुभाषी टच स्क्रीन बोर्ड लगाए गए हैं। जिन पर किसी भी प्रकार की घटना की तत्काल शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी। ये सुविधाएं मेले में दिन-रात उपलब्ध रहेंगी। महाकुंभ के इस पर्व पर ढाई हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं।

धरती तो धरती नदी जल में भी नावों की विभाजक पंक्ति (डिवाइडर) बना दी गई है। इस नवाचार से गंगा और यमुना के जलमार्ग पर नावों के आवागमन में बाधा उत्पन्न नहीं होगी। यह अनूठा विभाजक कुछ इस तरह से बना है कि रामसेतु में प्रयोग में लाए गए वायुयुक्त पत्थरों की जगह यहां प्लास्टिक के वर्गाकार क्यूब स्थापित किए गए है। जो तैरते चबूतरे अनुभव होते हैं। इनमें पर्याप्त लचीलापन है, इसलिए भीड़ बढ़ने पर ये फैल जाएंगे और लोग आसानी से संगम पर स्नान करते रहेंगे। इससे श्रद्धालुओं को नौकाएं प्राप्त करने में भी सुविधा रहेगी। आठ हजार से भी ज्यादा नाविकों को यात्रियों से संयम से बात करने और संकट के समय विवेक बनाए रखने का प्रशिक्षण दिया गया है। नाविकों को क्रोध पर नियंत्रण रखने को भी कहा गया है। सुरक्षाकर्मियों को संकट के समय संकेत की भाषा (कोड वर्ड) में बात करने की हिदायत दी गई है। जिससे भगदड़ न मचे। इसी तरह की हिदायतें अग्नि षमन वाहनों के चालकों को दिया गया है। इन्हें आग या अग्नि षब्द का इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है, जिससे लोग दहषत में न आए।

कुंभ मेले में इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, जो कई देषों की आबादी से ज्यादा होते हैं। इस चुनौती को अवसर में बदलकर यह उत्सव निर्बाध चलता रहे इसकी जुम्मेबारी मेला अधिकारी (आईएएस) विजय किरन आनंद को सौंपी गई है। 2019 के कुंभ का नेतृत्व भी इन्होंने ही किया था। ऐसा पहली बार हुआ है कि भीड़ प्रबंधन का प्रषिक्षण किन्हीं विदेषी संस्थानों से लेने की बजाय पूर्व में आयोजित कुंभ मेलों में घटी घटनाओं और उत्तम सुरक्षा व्यवस्थाओं से लिया गया है। यह इसलिए जरूरी था, क्योंकि इतना बड़ा मेला दुनिया में कहीं लगता ही नहीं है। अतएव वहां के लोगों को करोड़ो लोगों की भीड़ का प्रबंध कैसे किया जाए, यह अनुभव ही नहीं है। विषेश पर्वों को अमृत स्नान, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी के दिन अत्यधिक भीड़ रहती है। इसलिए एक साथ समूहों में संगम पर उमड़ने वाली इस भीड़ को डुबकी लगाने के बाद तत्काल वापिस भेजने का प्रबंध किया गया है। यह भीड़ प्रयागराज से अपने गंतव्य स्थलों की ओर रवानगी डाल दें इस दृश्टि से प्रयागराज के रेलवे स्टेषनों पर हर समय 200 से ज्यादा रेलें उपलब्ध रहेंगी। इसी तरह प्रत्येक दस मिनट पर 600 से ज्यादा बसें यात्रियों को भरकर वापसी की तैयारी में खड़ी मिलेंगी। यात्रियों को वापसी के ये प्रबंध इसलिए अहम् है, क्योंकि 2013 में प्रयागराज के एक रेलवे स्टेषन पर भगदड़ मचने से कई लोगों की मौत हो गई थी। 2013 जैसी स्थिति न बनें इस नजरिये से 60,000 लोगों को रोकने के लिए विषेश क्षेत्र निर्मित किए गए हैं। इन्हें इसी क्षेत्र में लगे डिजीटल बोर्ड पर यात्री सेवाओं की उपलब्ध जानकारियों के साथ रेल और बसों के प्रस्थान की जानकारियां भी मिलती रहेंगी। चिन्हित क्षेत्रों में मिलने वाले इस रियल टाइम डाटा की सुविधा भीड़ की रणनीति से निपटने का उपयुक्त उपाय माना रहा है। मेले के बाहर पार्किंग स्थलों पर चार से पांच लाख लोगों को रोकने के पृथक से प्रबंध किए गए हैं।

भारत में पिछले डेढ़ दशक के दौरान मंदिरों और अन्य धार्मिक आयोजनों में उम्मीद से कई गुना ज्यादा भीड़ उमड़ रही ह्रै। जिसके चलते दर्शन-लाभ की जल्दबाजी व कुप्रबंधन से उपजने वाली भगदड़ व आगजनी का सिलसिला हर साल देखने में आ रहा है। धर्म स्थल हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि हम कम से कम शालीनता और आत्मानुशासन का परिचय दें। किंतु इस बात की परवाह आयोजकों और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा पूर्व से नहीं किए जाते हैं। लेकिन इस बार उनकी  सजगता मेले के आरंभ होने के पहले से स्पष्ट दिखाई दे रही है। अन्यथा आजादी के बाद से ही राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र उस अनियंत्रित स्थिति को काबू करने की कोशिश में लगा रहता था, जिसे वह यदि समय पर नियंत्रित करने की कोशिश करता तो हालात कमोबेश बेकाबू ही नहीं होने पाते ? यह सतर्कता इस बार के महाकुंभ में बरती गई है। 



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