मणिपुर में जातीय हिंसा के 600 दिन रविवार को पूरे हो जाएंगे। इन 600 दिनों में पहली बार ऐसा हुआ है, जब लगातार एक महीने से राज्य में हिंसा की कोई घटना नहीं हुई। छिटपुट प्रदर्शन के लिए भी मैतेई-कुकी समुदायों की महिलाएं सड़कों पर नहीं उतरी हैं। सरकारी दफ्तर नियमित रूप से खुल रहे हैं और स्कूल में बच्चों की तादाद भी दिखने लगी है। इसकी वजह यहां चल रहा सेना का कश्मीर जैसा ऑपरेशन ‘क्लीन’ है। दरअसल, कश्मीर में सेना जहां भी सर्च ऑपरेशन चलाती है वहां, पूरे इलाके को आतंक से क्लीन करने के बाद ही वहां की सामाजिक गतिविधियों को पटरी पर लाने का काम होता है। मणिपुर में भी कुछ ऐसा ही ऑपरेशन हो रहा है।
30 दिन में उग्रवादी संगठनों के 20 उग्रवादी कैडर पकड़े गए
इसी ऑपरेशन का असर है कि 30 दिन में न केवल हथियार-गोला बारूद की कोई बड़ी खेप जब्त हुई है, बल्कि उग्रवादी संगठनों के 20 से अधिक कैडरों को भी दबोचा गया है।
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी बताया कि हमारा फोकस उग्रवाद वाले बफर इलाकों में सबकुछ न्यूट्रल करने पर है। इनमें वो संवेदनशील क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां बीते डेढ़ साल में किसी की जाने की हिम्मत नहीं हुई। वहीं, पूरे राज्य में केंद्रीय सशस्त्र बल की 288 कंपनियां तैनात हैं। इस हिसाब से देखें तो करीब 40 हजार जवान हैं।
इतने हथियारों की पहली बार रिकवरी
अब तक सेना ने एके-47 सीरीज की 20 से अधिक राइफल्स के साथ 7.62 एमएम एसएलआर राइफल, 5.5 एमएम इंसास राइफल, पॉइंट 22 राइफल, पॉइंट 303 राइफल, 9 एमएम पिस्टल, पोम्पी गन, सैकड़ों किलो आईईडी बरामद की है। इतने हथियारों की बरामदगी पहली बार हो रही है।
सेना की सख्ती के बाद खुद हथियार जमा कर रहे लोग
एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने बताया कि पहले सेना राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कुछ कर नहीं पा रही थी। इससे सेना नाराज थी, लेकिन जब से इंफाल वैली के 5 थाना क्षेत्रों में अफस्पा लागू हुआ, तब से सेना सख्त हुई, अब लोग खुद हथियार जमा करने पहुंच रहे हैं।
मणिपुर हिंसा में अब तक 237 लोगों की मौत
मणिपुर में कुकी-मैतेई के बीच 570 से ज्यादा दिनों से हिंसा जारी है। इस हिंसा में अब तक 237 से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। अब तक 11 हजार FIR दर्ज की गईं हैं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया।